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सुपरसोनिक लड़ाकू विमान तेजस की नींव रखने वाले पद्मश्री डॉ. मानस बिहारी वर्मा का हार्ट अटैक से निधन, पूर्व राष्ट्रपति कलाम के लिए थे खास

Scientist Manas Bihari Verma Death रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) बेंगलुरु में रक्षा वैज्ञानिक रहे पद्मश्री डॉ. मानस बिहारी वर्मा का सोमवार की देर रात निधन हो गया. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के लिए खास अहमियत रखने वाले साथियों में शामिल डॉ‍. मानस बिहारी वर्मा ने 35 वर्षों तक डीआरडीओ में एक वैज्ञानिक के रूप में अपना योगदान दिया. बिहार के दरभंगा जिला स्थित घनश्यामपुर प्रखंड के बाउर गांव से निकल कर देश और दुनिया में अपना नाम रौशन करने वाले वैज्ञानिक डॉ. मानस बिहारी वर्मा के निधन की खबर से जिले में शोक की लहर है. देश के पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान तेजस को बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 4, 2021 6:50 PM
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Scientist Manas Bihari Verma Death रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) बेंगलुरु में रक्षा वैज्ञानिक रहे पद्मश्री डॉ. मानस बिहारी वर्मा का सोमवार की देर रात निधन हो गया. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के लिए खास अहमियत रखने वाले साथियों में शामिल डॉ‍. मानस बिहारी वर्मा ने 35 वर्षों तक डीआरडीओ में एक वैज्ञानिक के रूप में अपना योगदान दिया. बिहार के दरभंगा जिला स्थित घनश्यामपुर प्रखंड के बाउर गांव से निकल कर देश और दुनिया में अपना नाम रौशन करने वाले वैज्ञानिक डॉ. मानस बिहारी वर्मा के निधन की खबर से जिले में शोक की लहर है. देश के पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान तेजस को बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी.

जानकारी के मुताबिक, अपनी मौत के वक्त डॉ. मानस बिहारी वर्मा दरभंगा के लहेरियासराय स्थित अपने निवास पर थे और यहां उन्होंने अंतिम सांस ली. मिसाइल मैन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के अभिन्न मित्र रहे डॉ. मानस बिहारी वर्मा ने 1986 में तेजस फाइटर जेट विमान बनाने के लिए टीम में बतौर मैनेजमेंट प्रोग्राम डायरेक्टर के रूप में अपना योगदान दिया था. उस समय लगभग करीब सात सौ इंजीनियर को इस टीम में शामिल किया गया था. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने डॉ. मानस बिहारी वर्मा को साइंटिस्ट ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया था. वहीं, 2018 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था.

जुलाई, 2005 में डीआरडीओ से सेवानिवृत्त होने के बाद बेंगलुरु छोड़कर वे अपने गांव बाउर पहुंच गए और दरभंगा जिले के करीब सभी गांवों में अपनी टीम का दौरा करवाया. इतना ही नहीं, जिन स्कूलों में विज्ञान शिक्षक का अभाव रहता था, वहां टीम के सदस्य बच्चों को प्रयोग कराते थे. साथ ही मोबाइल वैन के जरिये एक स्कूल में दो से तीन माह कैंप कर बच्चों को विज्ञान और कंप्यूटर की बेसिक जानकारी देने का प्रयास किया जाता था. डॉ. मानस बिहारी वर्मा अलग-अलग एनजीओ के जरिए बच्चों और शिक्षकों के बीच विज्ञान का प्रसार करने में जुटे रहते थे.

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