भारत में ओटीटी गाइडलाइन्स आने के बाद शुरू हुई बहस, …जानें किस देश में कैसा है कानून?

OTT, Guidelines, social media : नयी दिल्ली : ओटीटी प्लेटफॉर्म, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लेकर भारत सरकार की ओर से गाइडलाइन्स जारी कर दिये जाने के बाद एक नयी बहस शुरू हो गयी है. आधुनिक युग में सोशल मीडिया पर लोग अपनी अभिव्यक्ति खुल कर रखते हैं. दुनिया भर में करोड़ों उपयोगकर्ता बेबाकी से अपनी राय व्यक्त करते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 26, 2021 11:09 AM

नयी दिल्ली : ओटीटी प्लेटफॉर्म, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लेकर भारत सरकार की ओर से गाइडलाइन्स जारी कर दिये जाने के बाद एक नयी बहस शुरू हो गयी है. आधुनिक युग में सोशल मीडिया पर लोग अपनी अभिव्यक्ति खुल कर रखते हैं. दुनिया भर में करोड़ों उपयोगकर्ता बेबाकी से अपनी राय व्यक्त करते हैं.

भारत सरकार की नयी गाइडलाइन्स के मुताबिक, आपत्तिजनक कंटेंट को समयसीमा के अंदर हटाने के साथ भारत में जिम्मेदार अधिकारी नियुक्त करने होंगे. किसी भी हाल में नये नियम तीन माह में लागू कर दिये जायेंगे.

सोशल मीडिया पर पाबंदी की भारत सरकार की यह पहली कोशिश नहीं है. दुनिया के कई देशों की सरकारें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करती हैं. साथ ही निगरानी और नियमन के लिए संस्थाएं भी बनायी हैं.

सरकारें सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी का पक्ष लेती हैं, लेकिन हिंसा, आतंक, साइबर बुलिंग और चाइल्ड एब्युज जैसे विषयों के कंटेंट को लेकर नियम भी तय किये हैं. इसके अलावा कंपनियों ने भी उपयोगकर्ताओं के लिए नियम बनाये हैं.

अमेरिका

अमेरिका में टीवी-रेडियो, इंटरनेट आदि पर नियमन के लिए फेडरल कम्यूनिकेशन कमीशन है. लेकिन, सोशल मीडिया को लेकर कोई संस्था नही है. अमेरिका सोशल मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन का पक्षधर रहा है. अमेरिका में हाल ही में कैपिटल हिल में हुई हिंसा के बाद हजारों सोशल मिया हैंडल्स बैन कर दिये गये थे. इनमें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल हैं. अमेरिका में फेसबुक जैसी कंपनियों पर वही नियम लागू हैं, जो अन्य कंपनियों पर हैं.

अमेरिका में उपयोगकर्ताओं की निजता को लेकर राज्यों ने बनाये कानून

कैलिफोर्निया कंज्यूमर प्राइवेसी एक्ट जैसे राज्यों के कानून उपयोगकर्ता डेटा संग्रहण और इस्तेमाल को लेकर नियमन करते हैं. अदालतों में शिकायत किये जाने के दौरान कंपनियों की ही जवाबदेही तय की जाती है. इसलिए सेल्फ रेगुलेशन के नियम सख्ती से लागू होते हैं. मलाला युसूफजई को शांति का नोबल पुरस्कार दिये जाने के बाद तालिबानी आतंकी संगठन ने ट्विटर पर पाकिस्तान से धमकी दी थी. इसके बाद ट्विटर ने तुरंत उस हैंडल को बंद कर दिया था. यूट्यूब भी कई विवादित वीडियो अपने प्लेटफॉर्म से हटाते रहा है. इंस्टाग्राम ने भी लाखों पोस्ट अपने प्लेटफॉर्म से हटा चुका है.

यूरोप

यूरोपीय देशों में अमेरिका की तरह है सेल्फ रेगुलेशन पर सरकार का जोर देती है. वहीं, जर्मनी ने नेट्जडीजी कानून बना रखा है. यह कानून उस सोशल मीडिया कंपनियों पर लागू होता है, जिसमें 20 लाख से ज्यादा उपयोगकर्ता हैं. कानून के तहत आपत्तिजनक कंटेंट की शिकायत पर 24 घंटे के अंदर संबंधित कंपनियों को हटाना अनिवार्य है. नियमों का पालन नहीं करने पर व्यक्ति को पांच मिलियन यूरो और कंपनियों पर 50 मिलियन यूरो तक जुर्माना किया जा सकता है. यूरोपीय संघ ने जर्मनी के जीडीपीआर कानून को लागू किया है. इसके तहत सोशल मीडिया समेत अन्य कंपनियों द्वारा उपयोगकर्ताओं के डेटा इस्तेमाल को सुरक्षित करने के उपाय किये गये हैं.

ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया में भी घृणास्पद हिंसात्मक हिंसा अधिनियम के तहत कंटेंट साझा करने पर पाबंदी है. नियमों के उल्लंघन पर कंपनियों पर आपराधिक जुर्माना दर्ज हो सकता है. साथ ही तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. यही नहीं, कंपनी के ग्लोबल टर्नओवर के 10 फीसदी तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

रूस

रूस में आपातकालीन नियम एजेंसियों को अधिकार देता है कि वे किसी भी आपात स्थिति में ‘वर्ल्डवाइड वेब’ को स्विच ऑफ कर सकें. रूस का डेटा लॉ के तहत व्यवस्था की गयी है कि सोशल मीडिया कंपनियां रूस के लोगों से जुड़े डेटा को रूस में ही सर्वर में स्टोर करना करें.

चीन

चीन में सोशल मीडिया कंपनियों पर पूरी तरह पाबंदी है. ट्विटर, गूगल और व्हाट्सऐप जैसी सोशल मीडिया यहां प्रतिबंधित हैं. विकल्प के तौर पर चीन ने Weibo, Baidu और WeChat जैसी सोशल मीडिया

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