नयी दिल्ली : मौजूदा समय में देश में 655 मेडिकल कॉलेज हैं. पहले देश में एमबीबीएस की सिर्फ 52 हजार सीट थी, जो अब बढ़कर 1.63 लाख हो चुकी है. लेकिन समय के साथ मेडिकल कॉलेज की संख्या और एमबीबीएस की सीटों में बढ़ोतरी के बावजूद देश के 240 जिलों में मेडिकल कॉलेज नहीं है. देश में मेडिकल कॉलेज की सीमित संख्या के कारण हजारों भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश जाते हैं.
कई देशों में भारत के मुकाबले मेडिकल पढ़ाई का खर्च कम है. ऐसे में कई छात्र दलाल के चक्कर में फंसकर बिना जांच-पड़ताल के दूसरे देशों के मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लेते हैं. विदेशों में मेडिकल पढ़ाई के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन ने एक दिशा निर्देश जारी किया है.
लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि सरकार विदेशों में मेडिकल पढ़ाई करने के खिलाफ नहीं है. लेकिन पढ़ाई से पहले छात्रों को वहां के शिक्षा की गुणवत्ता का ख्याल रखना चाहिए. कई देशों में एमबीबीएस की पढ़ाई के नाम पर नर्स का काम कराते हैं और डॉक्टर का सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं. लेकिन छात्रों को अपने देश में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं देते हैं. ऐसे में विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए सरकार ने तीन मानक तय किया है.
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पहला विदेश में मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाने वाले छात्रों को नीट क्वालीफाई करना होगा, दूसरा भारत की तरह ही 5.6 साल का कोर्स होना चाहिए और तीसरा जिस देश में मेडिकल की पढ़ाई करें वहां छात्रों को प्रैक्टिस करने की मंजूरी मिले. साथ ही विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा पास करना होगा. अगर ऐसा नहीं होगा तो ऐसे छात्रों को भारत में प्रैक्टिस की इजाजत नहीं होगी.