पटना : राज्यसभा में फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन संशोधन बिल-2020 पर चर्चा के दौरान जेडीयू सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने कहा कि इसे पारदर्शी बनाने के लिए जो कदम इसमें उठाये गये हैं, वे काफी सराहनीय हैं. बिल में प्रावधान किया गया है कि जो भी लोग फॉरेन कंट्रीब्यूशन स्वीकार करेंगे, सबसे पहले उन्हें आधार का एकाउंट खोलना पड़ेगा. पहले यह होता था कि कोई भी बैंक एकाउंट में सीधे फॉरेन कंट्रीब्यूशन का पैसा आ जाता था.
सरकार ने अब प्रावधान किया गया है कि ऐसे लोगों को पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में अपना खाता खोलना होगा. फॉरेन कंट्रीब्यूशन का पैसा पहले एसबीआइ में आयेगा, इसके बाद ही इसको खर्च किया जा सकता है. इससे फॉरेन कंट्रीब्यूशन के मॉनिटरिंग में सहूलियत होगी. साथ ही इस राशि को संबंधित योजना पर खर्च करना जरूरी होगा.
आरसीपी सिंह ने कहा कि फॉरेन कंट्रीब्यूशन हासिल करने पर तो नजर रहेगी, साथ ही पब्लिक सर्वेंट को इसके दायरे से अलग रखा गया है. एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सपेंडिचर पर भी ध्यान दिया गया है. शुरुआती दिनों में जब 1976 में यह कानून बना था, तो सौ फीसदी राशि एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सपेंडिचर पर खर्च कर दिया जाता था. 2010 में इस मद की खर्च को 50 फीसदी किया गया, अब इसे 20 फीसदी पर लाया गया है.
ऑकुपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड-2020, द इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड-2020 व द कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी-2020 पर चर्चा के दौरान आरसीपी सिंह ने राज्यसभा में कहा कि इन तीनों कोड में 25 से अधिक कानूनों को समाहित किया गया है. पहले अलग-अलग कानून थे और अलग-अलग व्यवस्थाएं थी. अब परिभाषा, कानून, व्यवस्था, अथॉरिटी, सेफ्टी व वर्किंग कंडीशन सभी एक जगह समाहित हो गये हैं. इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा. श्रमिकों को ध्यान में रखकर इसमें प्रावधान किये गये हैं.
उन्होंने कहा कि इस कानून में मीडियाकर्मियों को भी शामिल किया गया है. कोविड-19 के दौर में पत्रकारों ने भी अच्छा काम किया है. इस कानून के जरिये प्रबंधन के साथ उनके रिश्ते बेहतर हो सकेंगे. श्रमिकों के स्वास्थ्य का मामला सबसे अहम है. आप देखेंगे कि बीड़ी मजदूरों को अलग प्रकार के स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बहुत सारी बीमारियां उद्योग के प्रभाव के कारण आती है. जिस प्रकार का वातावरण उद्योग का होता है, उससे स्वास्थ्य संबंधी परेशानी सामने आती है. लेबर कानून को किसी के हार या किसी के जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.