West Bengal: पश्चिम बंगाल में आगामी पंचायत चुनाव को ध्यान में रखते हुए सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने विधानसभा में दो प्रस्ताव पेश करने का फैसला किया है, पहला प्रस्ताव पश्चिम बंगाल को विभाजित करने के प्रयासों के खिलाफ होगा, जबकि दूसरा आदिवासियों के सरना धर्म को मान्यता देने के लिए. राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री सोभनदेब चट्टोपाध्याय ने सर्वदलीय बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि दोनों प्रस्ताव 13 फरवरी को विधानसभा में पेश किये जाएंगे.
सर्वदलीय बैठक का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बहिष्कार किया था. उन्होंने कहा- भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा बंगाल, विशेष रूप से उत्तर बंगाल को विभाजित करने का प्रयास किया गया है. हमें उन प्रतिक्रियावादी ताकतों से राज्य को बचाने के लिए एकजुट होना होगा, जो बंगाल को विभाजित करना चाहते हैं.
सुरम्य दार्जिलिंग सहित आठ जिलों के साथ उत्तरी बंगाल, प्रदेश के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहां धन अर्जित करने वाले चाय उद्योग, लकड़ी और पर्यटन उद्योग हैं. आमतौर पर ‘चिकन नेक’ के रूप में चर्चित सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए यह स्थान रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मुख्य भूमि को उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ता है. पिछले कुछ वर्षों में अलीपुरद्वार के सांसद जॉन बारला सहित कई भाजपा सांसदों ने मांग की है कि उत्तर बंगाल को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए.
टीएमसी सूत्रों के मुताबिक, प्रस्ताव का उद्देश्य भाजपा की मंशा को उजागर करना है. टीएमसी के एक विधायक ने कहा- भाजपा के कुछ नेताओं ने खुले तौर पर मांग की है कि उत्तर बंगाल को एक अलग राज्य बनाया जाए, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है. टीएमसी के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के मुख्य सचेतक मनोज तिग्गा ने कहा कि विधायकों की बैठक के दौरान पार्टी प्रस्ताव पर चर्चा करेगी और विधानसभा की बहस में अपनी भागीदारी पर फैसला लेगी. पुरुलिया, बांकुरा, पश्चिम मेदिनीपुर और उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण आदिवासियों तक पहुंचने के लिए टीएमसी ने सरना धर्म को मान्यता देने के लिए भी एक प्रस्ताव लाने का फैसला किया है.