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कोरोना के इलाज से प्लाज्मा थेरेपी हटाई गई
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कोविड मरीजों में प्रभावी नहीं है प्लाज्मा थेरेपी
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एम्स और आईसीएमआर ने जारी की नई गाइजलाइंस
देश में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज में अब प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल नहीं होगा. प्लाजमा थेरेपी को लेकर आईसीएमआर (ICMR) और एम्स (AIIMS) ने बड़ा फैसला करते हुए इलाज से प्लाज्मा थेरेपी हटा दिया है. इसको लेकर एम्स और आईसीएमआर ने एक नई गाइडलाइन (New Guidelines) भी जारी की है. बता दें, साल 2020 से ही प्लाज्मा थेरेपी मरीजों को दी जा रही थी. इस साल कोरोना की दूसरी लहर में इसकी मांग खासा बढ़ गई थी.
बैठक के बाद लिया गया फैसलाः गौरतलब है कि बीते शनिवार को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR, आईसीएमआर) की नेशनल टास्क फोर्स की बैठक हुई थी, जिसमें परिषद के सभी सदस्य कोविड के उपचार में इस पद्धति के इस्तेमाल के खिलाफ थे. उनकी कहना था कि, पहला तो यह प्रभावी नहीं है, और दूसरा कई मामलों में इसका अनुचित इस्तेमाल भी किया जाने लगा है.
क्यों बंद कर दी गई प्लाज्मा थेरेपीः आईसीएमआर (ICMR) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा ने बीजेएम के आंकडों का हवाला देते हुए बताया कि प्लाज्मा थेरेपी बहुत ज्यादा कारगर नहीं है. इसका मरीजों में कोई खास फायदा नहीं होता है. इसके अलावा प्लाज्मा थेरेपी काफी महंगा प्रोसेस है, जिसकी काफी ज्यादा लागत है. इसके अलावा इलाज के लिए प्लाज्मा की एंटीबॉडीज की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए, जबकि यह कभी सुनिश्चित नहीं रहता है.
आईसीएमआर ने जारी की नई गाइडलाइनः बैठक में आईसीएमआर ने नई गाइडलाइंस भी जारी की है. नई गाइडलाइंस में कोरोना के मरीजों को तीन भागों में बांटा गया है. पहले में उन्हें रखा गया है, जिनमें कोरोना के हल्के लक्षण हैं. इन्हें होम आइसोलेशन में रहने का निर्देश दिया गया है. दूसरे में मध्यम लक्षण वाले मरीजों को रखा गया है, इन्हें कोविड वार्ड में भर्ती होकर इलाज कराने की सलाह दी गई है. वहीं, तीसरे में गंभीर संक्रमण वाले मरीजों को रखा जिन्हे है, जिन्हें आईसीयू की जरूरत होती है.
क्या है प्लाजमा थेरेपीः बता दें, प्लाज्मा थेरेपी के जरिए कोरोना से गंभीर रुप से संक्रमित मरीजों का इलाज होता है. इसके तहत कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के खून में मौजूद एंटीबॉडी को संक्रमित रोगियों को दिया जाता है. लेकिन, बीजेएम ने हजारों मरीजों के परीक्षण और उससे प्राप्त आंकडों का अध्ययन करने के बाद बताया कि इससे मरीजों में कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा है.
Posted by: Pritish Sahay