15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ट्रेंड ‘शेरू’ आज तालिबान के टॉप 7 शासकों में से एक, जानें क्या कहते हैं बैचमेट

शेरू अकादमी के अन्य कैडेटों की तुलना में थोड़ा बड़ा लगता था. उस समय निश्चित रूप से उसके दिमाग में कोई कट्टरपंथी विचार नहीं था.

देहरादून : देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) के 1982 बैच का शेरू उर्फ शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई उन सात तालिबान शासकों में एक बन गया है, जो अफगानिस्तान पर राज करेंगे. 60 वर्षीय शेरू एक समय आईएमए का एक बेहतरीन कैडेट था और उसके मन में कोई भी कट्टरपंथी विचारधारा नहीं थे. शेरू आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी के 45 जेंटलमैन कैडेटों में से एक था.

उसके बैचमेट मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी (सेवानिवृत) ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वह एक दिलकश आदमी था. वह अकादमी के अन्य कैडेटों की तुलना में थोड़ा बड़ा लगता था. उसकी आकर्षक मूंछें थी. उस समय निश्चित रूप से उसके दिमाग में कोई कट्टरपंथी विचार नहीं था. वह एक औसत अफगान कैडेट था जो यहां अपने समय का आनंद ले रहा था.

आजादी के बाद से आईएमए में विदेशी कैडेट भर्ती होते थे. वहीं, 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद से अफगानियों को भी यहा दाखिला मिलना शुरू हुआ था. स्टैनिकजई की अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों से सीधी भर्ती थी. मेजर चतुर्वेदी ने बताया कि मुझे याद है कि एक बार हम ऋषिकेश गये थे और गंगा में स्नान किया था. उस दौर की एक तस्वीर भी मेरे पास है, जिसमें शेरू को मेरे साथ IMA स्विमिंग ट्रंक में देखा जा सकता है.

Also Read: Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान के नये निजाम के ये हैं प्रमुख 5 चेहरे, तालिबान के पुराने नेताओं को भी जानें

शेरू के एक अन्य बैचमैट कर्नल केसर सिंह शेखावत (सेवानिवृत्त) ने बताया कि वह बहुत मिलनसार था. हम सप्ताहांत पर जंगलों और पहाड़ियों पर जाया करते थे. उसने लेफ्टिनेंट के रूप में अफगान नेशनल आर्मी में शामिल होने से पहले डेढ़ साल के लिए आईएमए में अपना प्री-कमीशन प्रशिक्षण पूरा किया. यह अफगानिस्तान पर सोवियतों द्वारा कब्जा किये जाने के ठीक बाद हुआ था.

1996 तक, स्टैनिकजई ने सेना छोड़ दी थी, तालिबान में शामिल हो गया था और अमेरिका द्वारा तालिबान को राजनयिक मान्यता देने के लिए क्लिंटन प्रशासन के साथ बातचीत भी की थी. 1997 के न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में कहा गया है कि तालिबान शासन के कार्यवाहक विदेश मंत्री स्टैनिकजई ने भारत में कॉलेज में अंग्रेजी सीखी थी. बाद के वर्षों में, वह तालिबान के प्रमुख वार्ताकारों में से एक बन गया. उसके अंग्रेजी कौशल और सैन्य प्रशिक्षण ने उसे संगठन के लिए अच्छी स्थिति में रखा.

जब समूह ने दोहा में अपना राजनीतिक कार्यालय स्थापित किया, जहां इसके वरिष्ठ नेताओं ने खुद को तैनात किया, तो शेरू ने इसे 2012 से चलाया और तालिबान की ओर से तालिबान के सह-संस्थापक अब्दुल गनी बरादर के सामने वार्ता का नेतृत्व किया. उसके बैचमेट्स ने कहा, एक तुरुप का पत्ता हो सकता है. चतुर्वेदी ने कहा कि निश्चित रूप से उनके पास भारत में अपने समय की यादगार यादें होंगी.

Posted By: Amlesh Nandan.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें