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COVID-19 : कोरोना वायरस से जंग में इस दवा ने फिर जगाई उम्मीद

कोविड-19 ( COVID-19 ) के लिए नये टीके का निर्माण अभी नजर नहीं आ रहा ऐसे में वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अन्य बीमारियों में दी जाने वाली पुरानी दवाओं से क्या इस बीमारी की काट तैयार की जा सकती है.

By Agency | May 23, 2020 7:26 PM

नयी दिल्ली : कोविड-19 के लिए नये टीके का निर्माण अभी नजर नहीं आ रहा ऐसे में वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अन्य बीमारियों में दी जाने वाली पुरानी दवाओं से क्या इस बीमारी की काट तैयार की जा सकती है.

इस कड़ी में एंटीवायरल रेम्डेसिविर संभावित दावेदारों की सूची में सबसे आगे हैं. कोविड-19 का प्रसार लगातार जारी है और दुनिया भर में इसके 52 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं जबकि शनिवार तक तीन लाख 38 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

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विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में इस बीमारी को लेकर कुछ श्रेणियों की दवाओं का नैदानिक परीक्षण चल रहा है. इनमें से रेम्डेसिविर ने कोविड-19 के ठीक होने की दर तेज कर कुछ उम्मीदें जगाई हैं. इस दवा का परीक्षण शुरू में पांच साल पहले खतरनाक इबोला वायरस के इलाज में किया गया था.

अमेरिका के एक स्वतंत्र आर्थिक थिंक टैंक मिल्कन इंस्टीट्यूट के एक ट्रैकर के मुताबिक कोविड-19 के इलाज के लिए 130 से ज्यादा दवाओं को लेकर परीक्षण चल रहा है, कुछ में वायरस को रोकने की क्षमता हो सकती है, जबकि अन्य से अतिसक्रिय प्रतिरोधी प्रतिक्रिया को शांत करने में मदद मिल सकती है.

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अतिसक्रिय प्रतिरोधी प्रतिक्रिया से अंगों को नुकसान पहुंच सकता है. सीएसआईआर के भारतीय समवेत औषध संस्थान, जम्मू के निदेशक राम विश्वकर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया, फिलहाल, एक प्रभावी तरीका है…वह है अन्य बीमारियों के लिये पहले से स्वीकृत दवाओं का इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल कि क्या उनका प्रयोग कोविड-19 के लिये हो सकता है. कोरोना संक्रमण से जुड़ी हर Hindi News से अपडेट रहने के लिए बने रहें हमारे साथ.

एक उदाहरण रेम्डेसिविर का है. विश्वकर्मा ने कहा कि रेम्डेसिविर लोगों को तेजी से ठीक होने में मदद कर रही है और गंभीर रूप से बीमार मरीजों में मृत्युदर कम कर रही है। यह जीवन रक्षक हो सकती है. विश्वकर्मा ने कहा, हमारे पास नई दवाएं विकसित करने के लिये समय नहीं है. नयी औषधि विकसित करने में 5-10 साल लकते हैं इसलिये हम मौजूदा दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह देखने के लिये नैदानिक परीक्षण कर रहे हैं कि वे प्रभावी हैं या नहीं.

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उन्होंने कहा कि एचआईवी और विषाणु संक्रमणों के दौरान उपचार के तौर पर उपलब्ध कुछ अणुओं को नए कोरोना वायरस के खिलाफ इस्तेमाल करके देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर इन्हें प्रभावी पाया जाता है तो औषधि नियामक संस्थाओं से उचित अनुमति हासिल कर कोविड-19 के खिलाफ इनका इस्तेमाल किया जा सकता है.

विश्वकर्मा के मुताबिक इसके अलावा फेवीपीराविर से भी कुछ उम्मीदें हैं और कोविड-19 के खिलाफ इसके प्रभावी होने को लेकर भी नैदानिक परीक्षण का दौर चल रहा है. सीएसआईआर के महानिदेशक शेखर मांडे ने इस महीने घोषणा की थी कि हैदराबाद स्थित भारतीय रसायन प्रौद्योगिकी संस्थान ने फेवीपिरावीर बनाने की प्रौद्योगिकी विकसित कर ली है.

उत्तर प्रदेश में स्थित शिव नादर विश्वविद्यालय में रसायन विभाग के प्रोफेसर शुभव्रत सेन भी इस बात से सहमत हैं कि जिन दवाओं का परीक्षण चल रहा है उनमें रेम्डेसिविर से सबसे ज्यादा उम्मीद है. सेन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि जिन दवाओं का परीक्षण चल रहा है उनमें से कुछ एंटीवायरल है और कुछ एंटीमलेरिया और एंटीबायोटिक हैं.

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