Bengal Assembly Byelection: पश्चिम बंगाल में विधानसभा उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. दूसरी तरफ तारीखों को लेकर असमंजस कायम है. ऐसी खबरें आ रही है कि पश्चिम बंगाल में जल्द उपचुनाव कराने के लिए टीएमसी गुरुवार (15 जुलाई) को चुनाव आयोग को ज्ञापन देने वाली है. सारी कोशिश पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को लेकर की जा रही है. इसका बड़ा कारण है ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं.
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दरअसल, पश्चिम बंगाल विधानसभा के दो मई को चुनाव के निकले नतीजों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट से शुभेंदु अधिकारी से हार गई थीं. इसके बाद पांच मई को ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. अभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं. इसको देखते हुए उन्हें छह महीने के अंदर ही सदस्य बनना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को सीएम पद से त्याग पत्र देना होगा.
भवानीपुर, समशेरगंज, खड़दह, जंगीपुर, दिनहाटा, गोसाबा और शांतिपुर
सूत्रों की मानें तो टीएमसी का प्रतिनिधमंडल सांसद डेरेक ओ ब्रायन, सौगत रॉय, सुखेंदु शेखर रॉय के नेतृत्व में गुरुवार को चुनाव आयोग से मिलकर राज्य में जल्द उपचुनाव कराने की मांग करेगा. टीएमसी नेताओं के मुताबिक उनकी पार्टी राज्य में उपचुनाव को लेकर पूरी तरह तैयार है. इसके पहले सीएम ममता बनर्जी भी राज्य में जल्द उपचुनाव कराने की मांग कर चुकी हैं. सीएम ममता बनर्जी भवानीपुर से चुनाव लड़ सकती हैं. यहां उन्होंने पहले भी चुनाव जीता है. इस बार विजयी टीएमसी विधायक और मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने भवानीपुर विधानसभा सीट से इस्तीफा दिया था. अब, यह सीट खाली है. माना जा रहा है कि सीएम यहां से उपचुनाव लड़ेंगी.
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बड़ी बात यह है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को विधान परिषद के रास्ते भी सीएम बनाए रखने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं. पश्चिम बंगाल विधानसभा ने विधान परिषद बनाने के प्रस्ताव को पास करके केंद्र के पास भेजा है. 6 जुलाई को पश्चिम बंगाल विधानसभा से विधान परिषद बनाने के ममता बनर्जी सरकार के प्रस्ताव के पक्ष में 196 वोट पड़े थे. जबकि, विपक्ष के 69 विधायकों ने प्रस्ताव का विरोध किया था. माना जा रहा है ममता बनर्जी ने विधान परिषद गठन करने का फैसला सत्ता की बागडोर संभाले रखने के लिए लिया है. ऐसा भी हो सकता है कोरोना को देखते हुए उपचुनाव की तारीखों को आगे बढ़ा दिया जाए. इससे निपटने के लिए सरकार ने विधान परिषद बनाने का फैसला लिया. जिससे ममता बनर्जी के हाथ में सत्ता की बागडोर रहे.