त्रिपुरा विधानसभा चुनाव: आसान नहीं होगी बीजेपी की डगर! सत्ता पर काबिज होने के लिए करनी होगी कड़ी मशक्त
Tripura assembly elections 2023 : 16 फ़रवरी को त्रिपुरा में मतदान, दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी को करनी होगी मशक्त, बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए सीपीएम और कांग्रेस आये साथ.
Tripura assembly elections 2023 : त्रिपुरा, मेघालय और नागलैंड में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही वहां की राजनीतिक जमीन गर्म हो गयी है, इन तीनों राज्यों में जहां त्रिपुरा में 16 फ़रवरी को चुनाव होना है वहीं मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को चुनाव होगा. तीनों राज्यों में एक साथ 2 मार्च को मतगणना होगी. वहीं अगर हम त्रिपुरा की बात करें तो वहां पिछले चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत की थी मगर क्या इस बार भी बीजेपी वैसा ही प्रदर्शन कर पाएगी?
2018 में बीजेपी को मिली थी ऐतिहासिक जीत
त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च को समाप्त हो जायेगा इससे पूर्व ही 2023 के चुनाव सम्पन्न हो जायेंगे, पर सवाल अब भी यही है कि त्रिपुरा की सत्ता पर काबिज बीजेपी क्या दोबारा वैसा ही प्रदर्शन दोहरा सकेगी. साल 2018 में त्रिपुरा की 60 सीटों में से 59 सीटों पर चुनाव कराए गए थे. चारीलाम सीट से सीपीएम प्रत्याशी निधन के कारण इस सीट पर चुनाव नहीं हो सका था. इस चुनाव में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल करते हुए 35 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि सीपीएम सिर्फ 16 सीटों पर ही सिमट गई। भाजपा की सहयोगी पार्टी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने 8 सीटों पर जीत का परचम लहराया था।
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बीजेपी के सामने चुनौतियां
त्रिपुरा जैसे राज्य में जहां कभी बीजेपी की एक भी सीट नहीं थी वहां उसने लंबे समय से सत्ता पर काबिज सीपीएम को उखाड़ फेंका था, मगर इस बार समीकरण कुछ अलग ही तरीके से बन रहा है. मुख्य विपक्षी दल सीपीएम बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी है, हांलाकि विपक्षी एकता को ममता बनर्जी की टीएमसी के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से नुकसान जरूर पहुंचा है, मगर ये कितना कारगर होगा ये चुनाव के नतीजे बताएंगे. राज्य विधानसभा में वर्तमान में सदस्यों की कुल संख्या 53 है, जबकि 7 सीट रिक्त हैं. जिसमे भाजपा के 33, आईपीएफटी के चार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के 15 और कांग्रेस का एक सदस्य शामिल हैं.
विप्लव देव को सीएम पद से हटाने का फैसला कितना सही?
2014 में केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद बीजेपी ने भारतीय राजनीति में कई नए शोध किये, बीजेपी ने राजनीति में इस्तीफे देने की परम्परा को बिलकुल खत्म सा कर दिया, चाहे केंद्र हो या राज्य पिछले 8 सालों बीजेपी जहां भी सत्ता पर काबिज रही वहां कम से कम राजनीतिक इस्तीफे देखने को मिले, ऐसे में चुनाव से ठीक डेढ़ साल पूर्व त्रिपुरा में विप्लव देव को मुख्यमंत्री पद से हटा कर कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया गया. अब देखना दिलचस्प होगा की क्या ये निर्णय क्या आने वाले चुनाव के नतीजों पर असर डालेगी.