भारत में भी आ सकता है तुर्की- सीरिया जैसा भूकंप, जानिए इसके कारण और बचाव के तरीके

भूकंप से होने वाले विनाश के मामले में भारत भी अछूता नहीं है. भारत के कई क्षेत्र भूकंप को लेकर अतिसंवेदनशील हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम इस प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय सोचें और समय रहते सचेत हो जाएं.

By Prabhat Khabar News Desk | February 14, 2023 1:40 PM
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Earthquake in India: तुर्की व सीरिया में हालिया आये भूकंप ने जबरदस्त तबाही मचायी है. भूकंप से होने वाले विनाश के मामले में भारत भी अछूता नहीं है. भारत के कई क्षेत्र भूकंप को लेकर अतिसंवेदनशील हैं. वैज्ञानिक भी समय-समय पर चेताते रहे हैं कि यहां के हिमालयी क्षेत्र में कभी भी अत्यधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है, जिसमें अनगिनत लोग मारे जा सकते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम इस प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय सोचें और समय रहते सचेत हो जाएं, क्योंकि ऐसी आपदाओं से केवल जान-माल का ही नुकसान नहीं होता, जीवित बचे लोगों की मन:स्थिति भी बुरी तरह प्रभावित होती है. जानते हैं, भूकंप से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में…

भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. इसकी वजह गतिशील स्थल-मंडलीय (मूविंग लिथोस्फेरिक) या क्रस्टल (भूपटल) प्लेटों के संचरित दबाव का हटना है. पृथ्वी की परत सात विशाल प्लेटों में विभाजित है. प्लेट की मोटाई अमूमन 50 मील होती है और ये प्लेटें पृथ्वी के अंदर तथा कई छोटी प्लेटों के ऊपर धीमी गति से निरंतर गतिशील होती हैं. भूकंप के झटके इसी गतिशीलता से आते हैं.

भारत में भूकंप के खतरे

यदि हम अपने देश के मानचित्र पर नजर डालें, तो 59 फीसदी क्षेत्र में गंभीर भूकंप आने की आशंका है, यानी ऐसे चिह्नित क्षेत्रों में आठ या उससे अधिक तीव्रता के झटके लग सकते हैं. सवा सौ वर्षों में ऐसे चार भूकंप आ चुके हैं- शिलांग, 1897 (तीव्रता 8.7), कांगड़ा, 1905 (तीव्रता 8.0), बिहार-नेपाल, 1934 (तीव्रता 8.3) और असम-तिब्बत, 1950 (तीव्रता 8.6). बीते डेढ़-दो दशकों में लगभग एक दर्जन बड़े भूकंप आ चुके हैं, जिनमें हजारों लोगों की मौत हुई है. अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट चेतावनी दी गयी है कि हिमालयी क्षेत्र में (इसमें हिमालय के निकटवर्ती मैदानी इलाके भी शामिल हैं) अत्यधिक तीव्रता का भूकंप कभी भी आ सकता है. ऐसी किसी आपदा से देश के करोड़ों लोग प्रभावित हो सकते हैं.

भारत का भूकंपीय मानचित्र

कभी ऐसा माना जाता था कि हिमालय से दूर स्थित क्षेत्रों तथा अन्य इंटर-प्लेट बाउंड्रीज में विनाशकारी भूकंप आने की आशंका कम है, पर भूकंपों की आवृत्ति को देखते हुए भारत के भूकंपीय मानचित्र में समय-समय पर अनेक संशोधन करना पड़ा है. भले ही ऐसे इलाकों में आये भूकंपों की तीव्रता हिमालयी क्षेत्र के आये झटकों से कम रही, लेकिन उनमें भी तबाही लाने की क्षमता थी. भूकंप की तीव्रता की आशंका के आधार पर देश के आशंकित 59 फीसदी हिस्से को चार जोन या क्षेत्रों में बांटा गया है. जोन पांच में भारत का 11 प्रतिशत, जोन चार में 18 प्रतिशत और जोन तीन में 30 प्रतिशत हिस्से हैं. शेष इलाके जोन दो में आते हैं. पहले जोन में भूकंप की आशंका नहीं होती.

सबसे खतरनाक जोन पांच में जम्मू-कश्मीर की कश्मीर घाटी, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश, पूर्वी उत्तराखंड, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार के इलाके, पूर्वोत्तर के सभी राज्य तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह आते हैं. चौथे जोन में जम्मू-कश्मीर के बचे हुए इलाके, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के शेष क्षेत्र, हरियाणा एवं पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली, सिक्किम, उत्तर प्रदेश का उत्तरी भाग, बिहार एवं पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्र, गुजरात, पश्चिमी राजस्थान के कुछ क्षेत्र, तथा पश्चिमी तट के निकट महाराष्ट्र के कुछ इलाके आते हैं. ये दोनों जोन सर्वाधिक जोखिम भरे हैं. केरल, गोवा, लक्षद्वीप, छत्तीसगढ़ के साथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना के कुछ हिस्से, गुजरात एवं पंजाब के शेष क्षेत्र, पश्चिमी राजस्थान, झारखंड का उत्तरी क्षेत्र तीसरे जोन में आते हैं. दूसरे जोन में राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं तेलंगाना के शेष हिस्से हैं.

आपदा के कारण कई इलाकों में हुए बदलाव

हाल ही में तुर्की में आये विनाशकारी भूकंप के कारण उसकी जमीन के छह मीटर तक खिसकने का अनुमान है. इससे पहले भी भूकंप के कारण जापान, नेपाल समेत भारत के कई इलाकों की जमीन अपनी जगह से खिसक चुकी हैं. कुछ क्षेत्रों में नदियों ने भी अपना रास्ता बदला है. विशेषज्ञ की मानें, तो इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर वर्ष 15 से 20 मिलिमीटर की रफ्तार से तिब्बतन प्लेट की तरफ बढ़ रही है.

कच्छ में बदली सिंधु नदी की धारा

वर्ष 1819 के 16 जून को कच्छ के रण में 7.7 से 8.2 तीव्रता का भूकंप आया था. जिसमें पंद्रह सौ से अधिक लोगों की जान चली गयी थी. भूकंप की वजह से भुज के उत्तर-पश्चिम में पूर्णा नदी के ऊपर छह मीटर ऊंचा और 150 किलोमीटर लंबा बांध जैसा एक प्राकृतिक ढांचा बन गया, जिसे अल्लाह बांध कहा गया. इस कारण सिंधु नदी की सहायक नदी, ‘नारा’ का कच्छ के रण में होने वाला जल प्रवाह बंद हो गया और धीरे-धीरे यह इलाका सूख गया. सिंधु नदी की धारा भी पश्चिम की तरफ खिसक गयी. लेकिन लगभग 200 वर्षों बाद यह नदी वापस भारत में आ गयी और अब यह अहमदाबाद के पास स्थित नाल सरोवर को जल देती है.

नदियों ने बदला रास्ता

वर्ष 1897 में शिलांग में 8.7 तीव्रता का भूकंप आया था. इसके चलते ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर साढ़े सात फीट से ऊपर चला गया था. नदी के जलस्तर के ऊंचा उठने के कारण यहां के गोलपारा क्षेत्र का बाजार पूरी तरह डूब गया था. वहीं पंदह अगस्त, 1950 को असम के उत्तरी क्षेत्र में 8.6 तीव्रता का भूकंप आया जिसमें 11 हजार से अधिक लोग मारे गये थे. भूकंप के कारण दोनों जगह न केवल नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया था, बल्कि भूमि के उभार में भी स्थायी परिवर्तन आ गया था और पत्थर ऊपर की ओर उठ गये थे.

अपनी जगह से खिसके अंडमान के द्वीप

वर्ष 2004 के 26 दिसंबर को इंडोनेशिया के सुमात्रा में 9.1 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप के बाद सुनामी आने का असर कई देशों पर पड़ा था. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस हादसे में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के कई द्वीप अपनी जगह से खिसक गये. निकोबार के सुदूर स्थित इंदिरा प्वाइंट पानी के अंदर चला गया.

भूकंप से हिमालय में दरार

आठ अक्तूबर, 2005 को कश्मीर में आये 7.6 तीव्रता के भूकंप में भारत और पाकिस्तान में 80 हजार से ज्यादा लोग मारे गये थे. ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के भूगर्भशास्त्री के एक अध्ययन में पता चला कि भूकंप के कारण पाकिस्तान, कश्मीर से होते हुए नेपाल तक हिमालय के भीतर एक दरार पड़ गयी है. इतना ही नहीं, इस कारण नीलम नदी का रास्ता भी बदल गया था.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के निर्देश

मुख्य चुनौतियां

  • भूकंपीय जोखिम के बारे में जागरूकता का अभाव

  • इंजीनियरिंग शिक्षा पाठ्यक्रम में संरचनात्मक कमियों को ठीक करने के उपायों पर पूरा ध्यान न देना

  • भूकंपरोधी इमारत बनाने के नियमों को लेकर अपर्याप्त निगरानी और पालन

  • इंजीनियरों और मिस्त्रियों को लाइसेंस देने की प्रणाली

  • का अभाव

  • उपनगरों और ग्रामीण क्षेत्रों के निर्माण कार्यों में भूकंपरोधी विशेषताओं का अभाव

  • भूकंपरोधी निर्माण से संबंधित गतिविधियों में लगे कारोबारियों में औपचारिक प्रशिक्षण की कमी

  • संबंधित समूहों में आवश्यक तत्परता और आपदा के बाद की स्थिति से निपटने की क्षमता में कमी

प्राधिकरण द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों में भूकंप प्रबंधन के छह प्रमुख स्तंभ रेखांकित किये गये हैं-

  • 1. नयी संरचनाओं के निर्माण में भूकंपरोधी डिजाइन व विशेषताओं का समावेश

  • 2. भूकंप के जोखिम वाले क्षेत्रों में मुख्य और बड़ी मौजूदा संरचनाओं को सशक्त करना

  • 3. निर्देशों की अनुपालन व्यवस्था में सुधार

  • 4. सभी संबंधित पक्षों द्वारा सतर्कता और बेहतर तैयारी

  • 5. भूकंप प्रबंधन के लिए आवश्यक शिक्षण एवं प्रशिक्षण, शोध एवं अनुसंधान तथा दस्तावेज तैयार करने पर ध्यान देना

  • 6. आपदा की स्थिति में कार्य क्षमता को सशक्त करना

मुख्य दिशा-निर्देश

सभी नये निर्माण भूकंपरोधी हों- भूकंप की स्थिति में मकान और अन्य इमारतों के साथ-साथ बिजली व पानी की आपूर्ति प्रणाली तथा सड़क, बांध, पुल आदि को भी भारी नुकसान पहुंचता है. भूकंपों के अध्ययन से पता चलता है कि 95 फीसदी मौतों की वजह ऐसी इमारतों का ध्वस्त होना है, जो भूकंपरोधी नहीं थे. भूकंप के संभावित इलाकों में निर्माण के लिए नियम-कानून हैं, पर उनका ठीक से पालन नहीं होता. केंद्र और राज्य सरकारों के लिए निर्देश है कि हर निर्माण की डिजाइन आदि भूकंपरोधी होने चाहिए. ऐसा देखा गया है कि भूकंपरोधी निर्माण तकनीकों के ठीक से नहीं अपनाये जाने की वजह संबंधित नियमों और निर्देशों का उपलब्ध नहीं होना है. इस अभाव को दूर करने की कोशिश होनी चाहिए.

  • पहले के निर्माणों को मजबूत करना- प्राधिकरण के निर्देश में राष्ट्रीय महत्व की इमारतों, संस्थाओं, सार्वजनिक उपयोग की जगहों, बांधों, पुलों, बहुमंजिला इमारतों आदि का भूकंपरोधी क्षमताओं के अनुसार पुनरुद्धार होना चाहिए.

  • लोगों में जागरूकता अभियान चलाना– सरकार की ओर से समाज के हर हिस्से को भूकंप से बचाव और आपदा की स्थिति में समुचित व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान और कार्यक्रम होने चाहिए.

  • इनके अलावा, भूकंपरोधी निर्माण के वास्तुकारों और इंजीनियरों के प्रशिक्षण और पंजीकरण की समुचित व्यवस्था करना, संबंधित कारोबारियों को लाइसेंस एवं प्रमाणपत्र देना, अनुपालन को लेकर समय-समय पर समीक्षा करना, ग्रामीण और अर्द्धशहरी क्षेत्रों में निर्माण पर निगरानी बढ़ाना आदि से संबंधित निर्देश हैं.

आपदा से निपटने की पूर्व तैयारी

आपदा की स्थिति में तुरंत क्या किया जाना चाहिए, इस संबंध में भी स्पष्ट निर्देश हैं. जागरूकता प्रसार के साथ सार्वजनिक स्थानों और संस्थानों में पूर्वाभ्यास, यानी मॉक ड्रिल कराये जाने चाहिए. सिनेमाघरों और भवनों के प्रबंधकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. ऐसी जगहों पर कम-से-कम छह माह पर एक बार मॉक ड्रिल किया ही जाना चाहिए. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाए और उनकी सूची बने. इस संबंध में चिकित्सा संबंधी तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है ताकि आपदा में घायल लोगों को तुरंत प्राथमिक चिकित्सा देकर उनकी जान बचायी जा सके. राहत और बचाव के लिए विशिष्ट दलों का गठन भी एक आवश्यक निर्देश है.

वैज्ञानिकों ने भारत में बड़े भूकंप की आशंका जतायी

आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर जावेद मलिक ने आशंका जतायी है कि जल्दी ही 7.5 की तीव्रता का भूकंप भारत के कुछ हिस्सों में आ सकता है. प्रोफेसर मलिक भारत में भूकंप के कारणों पर लंबे समय से शोध कर रहे हैं. उनका आकलन है कि इस भूकंप का केंद्र हिमालय में या अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में हो सकता है. सोशल मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, तुर्की और सीरिया में भयंकर भूकंप आने के तीन दिन पहले नीदरलैंड के वैज्ञानिक फ्रैंक होगरबीट्स ने तुर्की में बड़े भूकंप की आशंका जतायी थी.

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