‘न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण किसका होगा, इसे लेकर खींचतान जारी’, बोले प्रधान न्यायाधीश
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि इस बात को लेकर लगातार खींचतान बनी रहती है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण किसका होगा. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यहां तक कि रिक्तियां होने और नियुक्तियों को लंबे समय तक लंबित रखने के बावजूद भी ऐसा होना जारी है.
D.Y Chandrachud: प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि इस बात को लेकर लगातार खींचतान बनी रहती है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण किसका होगा. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यहां तक कि रिक्तियां होने और नियुक्तियों को लंबे समय तक लंबित रखने के बावजूद भी ऐसा होना जारी है. वह केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की मुंबई पीठ के नए परिसर के उद्घाटन के मौके पर संबोधित कर रहे थे.
न्यायाधिकरण बेहद महत्वपूर्ण
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों में मामलों में देरी को रोकने और न्याय के समग्र वितरण में सहायता करने में न्यायाधिकरण बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘न्यायाधिकरणों का एक उद्देश्य हमारी अदालतों में मामलों की देरी से निपटना था और यह आशा की गई थी कि ये न्यायाधिकरण, जो साक्ष्य और प्रक्रिया के सख्त नियमों से बंधे नहीं हैं, अदालतों के बोझ को कम करने में मदद करेंगे और न्याय प्रदान करने में सहायक होंगे.’’
‘न्यायाधिकरण बड़े पैमाने पर समस्याओं से ग्रस्त’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हालाकि, हमारे न्यायाधिकरण बड़े पैमाने पर समस्याओं से ग्रस्त हैं और फिर हम खुद से पूछते हैं कि क्या इतने सारे न्यायाधिकरणों का गठन करना वास्तव में आवश्यक था.’’ उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि, आपको न्यायाधीश नहीं मिलते हैं, जब आपको न्यायाधीश मिलते हैं, तो रिक्तियां उत्पन्न होती हैं जिन्हें लंबे समय तक लंबित रखा जाता है… और फिर यह लगातार झगड़ा होता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण किसे मिलेगा.’’
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उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में बार और बेंच के सदस्यों (वकीलों और न्यायाधीशों) को उन अनुकूल परिस्थितियों को नहीं भूलना चाहिए जिनमें वे देश के बाकी हिस्सों के विपरीत काम करते हैं क्योंकि यहां शासन की संस्कृति है. प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘यहां शासन की एक संस्कृति है जहां सरकार न्यायाधीशों के काम में हस्तक्षेप नहीं करती है.
वे उन परिणामों को स्वीकार करते हैं जो अनुकूल हैं… वे उन परिणामों को भी स्वीकार करते हैं जो प्रतिकूल हैं क्योंकि यही महाराष्ट्र की संस्कृति है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अक्सर हम उस काम के महत्व को भूल जाते हैं जो सरकार न्यायिक बुनियादी ढांचे के समर्थन में करती है.’’ प्रधान न्यायाधीश ने अदालत कक्षों को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.