विश्विद्यालय की अंतिम वर्ष की परीक्षा कराने के यूजीसी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को देर तक देश की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई चली. सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. बता दें कि 30 सितंबर को विश्विद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने परीक्षा की तारीख निर्धारित की थी.
सॉलिसिटर-जनरल ने जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ के समक्ष मामले में अपनी प्रस्तुतिया दीं. उन्होंने खंडपीठ के समक्ष दी गई दलीलें में कहा कि दिशानिर्देशों को रद्द करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के दायरे में हैं, बेंच को पहले यह तय करना कि क्या केंद्र राज्य को अधिक्रमित कर देगा. उन्होंने कहा कि वह केंद्र बनाम राज्य का विवाद नहीं खड़ा करना चाहते हैं. उन्होंने बेंच से यूजीसी अधिनियम और यूजीसी की शक्तियों को पढ़ने का अनुरोध किया.
Supreme Court reserves judgement on a batch of pleas challenging University Grants Commission's (UGC) July 6 circular and seeking cancellation of final term examination in view of #COVID19 situation. pic.twitter.com/86jUdiIKyN
— ANI (@ANI) August 18, 2020
यूजीसी की ओर से पेश सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील दी कि यूजीसी यानी यूनिवर्सिटी यूजीसी दिशानिर्देशों के तहत समय सीमा के विस्तार की मांग कर सकती हैं, लेकिन वे परीक्षा कराए बिना डिग्री देने का फैसला नहीं ले सकती है. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें यूजीसी के 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं करा लेने के दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है.
यूजीसी द्वारा (30 अप्रैल और 6 जुलाई) को जारी दिशानिर्देशों का उल्लेख करते हुए सॉलिसिटर-जनरल ने कहा कि पहले के दिशानिर्देश अनिवार्य नहीं थे. उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान में कई विश्वविद्यालय ऑनलाइन, ऑफलाइन और हाइब्रिड मोड में, परीक्षा आयोजित कर रहे हैं. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय को परीक्षाओं के सुचारू संचालन का उदाहरण पेश किया. सॉलिसिटर-जनरल ने अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “परीक्षा में प्रदर्शन छात्रवृत्ति और पहचान के साथ-साथ नौकरी के अवसरों को भी पैदा करता है.”
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर विश्वविद्यालयों के लिए यूजीसी द्वारा तय मानकों को कम करना संभव था. “अगर यह अनुमति है, तो हर विश्वविद्यालय में छात्रों को पास करने की एक अलग प्रणाली होगी. आप मानकों को कम नहीं कर सकते.”
यूजीसी की ओर से पेश सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील दी. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें यूजीसी के 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं करा लेने के दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है.
शीर्ष अदालत यूजीसी के 6 जुलाई को अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने के आदेश के खिलाफ छात्रों द्वारा दायर याचिका पर 30 सितंबर तक सुनवाई कर रही थी. यूजीसी ने अपने 6 जुलाई के आदेश में देशभर के सभी 900 विश्वविद्यालयों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया था. उपरोक्त दोनों के ऑनलाइन, ऑफ़लाइन या मिश्रित मोड.
इससे पहले शुक्रवार, 14 अगस्त को उसी सुप्रीम कोर्ट (SC) पीठ ने मामले को 18 अगस्त के लिए स्थगित कर दिया था। याचिकाकर्ताओं के लिए तर्क देते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 15 अप्रैल, 1 मई और जून में जारी यूजीसी की पूर्व सूचनाओं ने महामारी की स्थिति का एहसास कराया. अब जब महामारी अपने चरम पर है, तो यूजीसी अनिवार्य परीक्षा आयोजित करने का फैसला कैसे करेगा जब शिक्षण आयोजित नहीं किया गया है.
पिछले हफ्ते, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि उसने देश भर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को छूट दी है और उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने के लिए खोलने की आयोग (UGC) ने अनुमति दी है.
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कोविड-19 (Covid- 19) स्थिति के कारण जेईई मेन्स और NEET परीक्षा को स्थगित करने के लिए छात्रों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.
Published By: Shaurya Punj