कैसे चुना जाता है अमेरिका का राष्ट्रपति? जानें भारत से कितनी अलग है चुनावी प्रक्रिया
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए दौड़ शुरू हो चुकी है. इस साल नवंबर में होने वाले चुनावों के जो भी नतीज़े आएंगे, उनका पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ेगा. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नामांकन के लिए पिछले साल से कैंपेन और चर्चा में जुटे हुए हैं. राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है. भारत की तरह वहां पर भी लोकतंत्र है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है.
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए दौड़ शुरू हो चुकी है. इस साल नवंबर में होने वाले चुनावों के जो भी नतीज़े आएंगे, उनका पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ेगा. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नामांकन के लिए पिछले साल से कैंपेन और चर्चा में जुटे हुए हैं. राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है. भारत की तरह वहां पर भी लोकतंत्र है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 3 नवंबर (मंगलवार) 2020 में होंगे. यहां समझें कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है?
मुख्य राजनीतिक पार्टियां
अमेरिका में मुख्य तौर पर दो ही बड़ी राजनीतिक पार्टियां हैं- डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन. डेमोक्रेटिक पार्टी आधुनिक उदारवाद का समर्थन करती है. यह राज्य के हस्तक्षेप, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, सस्ती शिक्षा, सामाजिक कार्यक्रमों, पर्यावरण संरक्षण नीतियों और श्रमिकों संघों में विश्वास करती है. पिछली बार डेमोक्रेट्स की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलरी क्लिंटन थीं जो राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से हार गई थीं.
रिपब्लिकन पार्टी को भी पुरानी पार्टी माना जाता है. यह एक तरह से अमेरिकी रूढ़िवाद को बढ़ावा देती है, जैसे सरकार के दायरे को सीमित करना, कम करों और मुक्त बाजार पूंजीवाद को, हथियार रखने के अधिकार, श्रमिक संघों के अविनियमन को बढ़ावा देना और आव्रजन तथा गर्भपात जैसे मामलों में प्रतिबंध लगाना शामिल है. अन्य छोटी राजनीतिक पार्टियां हैं लिब्रेटेरियन, ग्रीन और स्वतंत्र पार्टियां. ये भी कई बार अपना उम्मीदवार खड़ा करती हैं. इस बार डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से जो बाइडन को उतारा गया है. वहीं रिपब्लिकन पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रंप ही मैदान में हैं.
प्राइमरी चुनाव राष्ट्रपति चुनाव की पहली सीढ़ी
प्राइमरी चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पहली सीढ़ी है. इस प्रक्रिया के बारे में अमरीकी संविधान में कोई लिखित निर्देश मौजूद नहीं है, ये प्रक्रिया पार्टी और राज्य पर निर्भर करती है. इसे पार्टियां नहीं बल्कि राज्य सरकारें आयोजित करती हैं. राज्य के क़ानूनों के आधार पर ये तय किया जाता है कि प्राइमरीज़ के चुनाव बंद होंगे या खुले. बंद चुनाव में पार्टी के सदस्य ही मतदान कर सकते हैं. खुले चुनाव में वो लोग भी मतदान कर सकते हैं जो पार्टी से जुड़े नहीं हैं. वो डेलीगेट्स चुनकर भेजते हैं, जो कि कन्वेंशन में उम्मीदवार को नॉमिनेट करते हैं.
अगर उम्मीदवार प्राइमरी चुनाव जीत जाता है तो डेलीगेट्स दूसरे चरण कन्वेंशन में उम्मीदवारों के लिए मतदान करते हैं. इसी चरण में औपचारिक रूप से राष्ट्रपति उम्मीदवार तय किया जाता है. अमेरिका से ही मिलते-जुलते चुनाव ऑस्ट्रेलिया और इजरायल में भी होते हैं जिनमें कई उम्मीदवारों में से एक उम्मीदवार चुना जाता है.अगर कोई 35 साल का है और अमेरिका का ‘नेचुरल सिटीजन’ है, या अमेरिका में कम से कम 14 साल से रह रहा है, तो वह राष्ट्रपति पद की दावेदारी पेश कर सकता है
कॉकस क्या है
आयोवा जैसे कुछ राज्य प्राइमरी तरीके की जगह कॉकस का तरीका अपनाते हैं. ये चुनाव पार्टियां आयोजित करती हैं. क्योंकि ये चुनाव राज्य सरकार नहीं कराती तो इससे पार्टियों को नियम तय करने में आसानी हो जाती है. ये भी पार्टियां ही तय करती हैं कि मतदान कौन करेगा. डेमोक्रेट्स के कॉकस में मतपत्र से वोट नहीं होते. एक जगह पर पार्टी के सदस्य इकट्ठा होते हैं और उम्मीदवार के नाम पर चर्चा की जाती है. इसके बाद वहां मौजूद लोग हाथ उठाकर उम्मीदवार चुनते हैं.
नेशनल कन्वेंशन
जो प्रतिनिधि प्राइमरी में चुने जाते हैं वे चुनाव के दूसरे चरण यानी कन्वेंशन में शामिल होते हैं. कन्वेंशन में ये प्रतिनिधि पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं. इसी दौर में नामांकन की प्रक्रिया होती है. इस साल रिपब्लिकन पार्टी का कन्वेंशन 18 से 21 जुलाई और डेमोक्रेटिक पार्टी का 25 जुलाई को आयोजित किया जाएगा. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ही उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चुनते हैं.
चुनाव प्रचार के जरिए जुटाया जाता है समर्थन
तीसरे चरण में चुनाव प्रचार होता है. इसमें अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार मतदाताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं. इसी दौरान उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर कई मुद्दों को लेकर बहस होती है. आखिरी हफ्ते में उम्मीदवार अपनी पूरी ताकत लगा कर स्विंग स्टेट्स को लुभाने में झोंक देते हैं. ‘स्विंग स्टेट्स’ वह राज्य होते हैं जहां का मतदाता किसी के भी पक्ष में मतदान कर सकता है.
कैसे होता है मतदान
ये भी राज्य पर निर्भर करता है. कई राज्यों में जल्दी मतदान होता है, जो पंजीकृत मतदाताओं को चुनाव के दिन से पहले मतदान करने की अनुमति देता है. जो मतदाता बीमारी या अपाहिज होने के कारण, यात्रा या राज्य से बाहर होने के कारण वोट नहीं डाल पाते हैं, उनके पास वोट मेल करने का विकल्प होता है. जो लोग चुनाव के दिन मतदान करते हैं, उन्हें आधिकारी पोलिंग स्टेशन पर जाना होता है. यहां ऑनलाइन वोटिंग नहीं होती है. हर राज्य ख़ुद अपने यहां डाले गए वोटों की गिनती करता है और आमतौर पर उसी रात को नतीजे भी आ जाते हैं.
Posted By: Utpal kant