Uttarakhand Glacier Burst: जब-जब नदियों के प्रवाह ने तटबंध तोड़े हैं, तब विनाशलीला की एक नई कहानी सामने आयी है. उत्तराखंड के चमोली में सात फरवरी को एक बार फिर प्रकृति ने ऐसा ही कहर बरपाया है़ जोशीमठ के पास नंदा देवी ग्लेशियर भारी मात्रा में पिघल कर धौलीगंगा नदी में उतर आया, जिससे नदी का जल प्रवाह तेज हो गया और जल सैलाब आ गया. दिखते-देखते यहां सबकुछ जलमग्न हो गया. पावर प्लांट, पुल, लोगों के घर, सब कुछ पानी में बह गये़ इस आपदा में अब तक करीब 18 लोग मारे गये हैं, वहीं, दो सौ से अधिक लापता हैं.
तबाही की मुख्य वजह: भू गर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय के जिस हिस्से में तबाही का यह मंजर देखा गया है, उस क्षेत्र में ग्लेशियरों की संख्या एक हजार से अधिक है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस बात की संभावना अधिक है कि हिमालयी क्षेत्र में तापमान बढ़ने की वजह से हिमखंडों में दरार आ रही है और उसके टूटने की वजह से वहां से भारी मात्रा में जलराशि निकली हो. तीव्र प्रवाह के कारण हिमस्खलन हुआ होगा और चट्टानें तथा मिट्टी का मलबा टूटकर नीचे आ गया होगा.
भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसे मृत हिमखंड कहा जाता है. ये ग्लेशियरों के पीछे हटने के समय अलग हो जाते हैं. सामान्यतः इस विशाल खंड में चट्टानों और कंकड़ों का मलबा भी होता है. मौजूदा आपदा में देखा गया है कि नीचे की तरफ भारी मात्रा में मलबा बहकर आया है. दूसरी वजह यह भी मानी जा रही है कि ग्लेशियर की झील में तीव्र हिमस्खलन हुआ होगा, जिससे भारी जलराशि अनियंत्रित होकर नीचे आ गयी हो, इससे निचली इलाकों में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया.
तपोवन टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन तेज, बचाव कार्य में जुटे हैं सेना के भी जवान: भारतीय सेना, एयरफोर्स, नेवी, आईटीबीपी और एनडीआरएफ के जवान लगातार बचाव राहत कार्य में लगे हैं. सशस्त्र बलों की टुकड़ियां जहाजों और हेलीकॉप्टर के माध्यम से एनडीआरएफ की टीमों को मौके पर एयरलिफ्ट करा रहे हैं. बता दें, इस त्रासदी में अबतक 36 लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं. वहीं, अभी भी करीब 170 लोग लापता हैं. तपोवन की सुरंग में भी 35 लोग फंसे हुए बताए जा रहे हैं, जिन्हें बचाने के लिए युद्धस्तर पर काम चल रहा है.
#WATCH | Rescue operation continues at Tapovan tunnel in Chamoli, Uttarakhand pic.twitter.com/eIeAkndKY9
— ANI (@ANI) February 9, 2021
ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न हो रही आपदा की स्थिति: वहीं, हिमालयी क्षेत्र का अध्ययन करनेवाले कुछ विशेषज्ञों की माने तो, उस क्षेत्र में किसी ग्लेशियर झील के होने की स्पष्ट जानकारी नहीं है. हालांकि, इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि ग्लेशियर में स्वतः झील निर्मित हो सकती है. हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में वैश्विक तापन की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. हिमखंडों के पिघलने की वजह से ग्लेशियर झीलें खतरनाक विस्तार ले रही हैं, साथ ही कई नयी झीलें भी बन रही हैं. इन झीलों का जलस्तर जब खतरनाक बिंदु पर पहुंच जाता है, तब एक बार बहाव के हद पार करने के बाद तबाही शुरू हो जाती है.
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उत्तराखंड के लिए प्राकृतिक आपदाएं नयी नहीं है़ं हालिया हादसा से पहले भी यह क्षेत्र अनेक आपदाओं का गवाह रहा है़ एक नजर, उत्तराखंड में आयी कुछ प्राकृतिक आपदाओं पर…
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केदारनाथ में, 16 जून, 2013 को आयी भयावह बाढ़ ने जहां साढ़े चार हजार लोगों की जान ले ली थी, वहीं अनेक लोग लापता हो गये थे़ प्रकृत्ति प्रदत्त इस आपदा के कारण चार हजार से अधिक गांवों का संपर्क टूट गया था़ तबाही के उस मंजर में अनेक इमारतें, भवन आदि बह गये थे. इस आपदा के बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आइटीबीपी की टीमों ने रास्ते में फंसे करीब नब्बे हजार यात्रियों और तीस हजार से ज्यादा लोगों को बचाया था़
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उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील में अगस्त 2019 में बादल फटने और भारी बारिश की वजह से अनेक लोग मारे गये थे, वहीं करोड़ों की संपति का नुकसान हुआ था़ इतना ही नहीं, आराकोट में भी बादल फटने के कारण अनेक लोग मारे गये थे़
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वर्ष 1991 में उत्तरकाशी में आये भूकंप में हजारों लोग मारे गये थे और काफी संपत्ति का नुकसान हुआ था़ इस कारण यहां की चट्टानें कमजोर हो गयी थी़ं
Posted by: Pritish Sahay