Vice President: औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त भारत बनाने की आवश्यकता
भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो औपनिवेशिक मानसिकता से अलग हो और स्वतंत्रता के बाद की हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हो.
Vice President: भारत तेजी से औपनिवेशिक मानसिकता के दायरे से बाहर आ रहा है. अब देश के लोग पहले के औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को महत्व नहीं दे रहे हैं. भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो औपनिवेशिक मानसिकता से परे होने के साथ ही स्वतंत्रता के बाद की हमारी आकांक्षाओं के अनुसार हो. सोमवार को भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) की आम सभा की 70 वीं वार्षिक बैठक को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो औपनिवेशिक मानसिकता से अलग हो और स्वतंत्रता के बाद की हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हो.
औपनिवेशिक मानसिकता को मिल रही है चुनौती
उपराष्ट्रपति ने कहा कि पिछले दशक की घटनाओं पर गौर करें तो यह स्पष्ट दिखता है कि अब लोग पहले से चले आ रहे औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहे हैं. राजपथ अब कर्तव्य पथ बन गया है और रेसकोर्स रोड लोक कल्याण मार्ग बन गया है. जहां कभी किंग जॉर्ज की प्रतिमा हुआ करती थी वहां नेताजी की प्रतिमा छतरी के नीचे स्थापित है. भारतीय नौसेना के ध्वज के रूप में हमारा तिरंगा शामिल किया गया है. औपनिवेशिक काल के 1500 प्रतिमाएं अब कानूनी रूप से मौजूद नहीं है.
मौजूदा जरूरतों के हिसाब से बन रहे हैं कानून
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार भारतीय जरूरतों के हिसाब से पुराने कानूनों को खत्म कर रही है और नये कानून बना रही है. इस कड़ी में तीन नये आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को औपनिवेशिक विरासत से मुक्त करने का काम किया है. यह एक महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी बदलाव है कि दंड संहिता अब न्याय संहिता बन गयी है. नये आपराधिक कानून पीड़ितों के हितों की रक्षा करने, अभियोजन को कुशलतापूर्वक चलाने और कई अन्य पहलुओं में सुधार लाने का काम कर रही है. अब देश के लोगों को चिकित्सा या प्रौद्योगिकी सीखने के लिए अंग्रेजी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है.
वर्ष 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री के भाषण में दोहराए गए ‘पंच प्रण’ का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त भारत बनाने की आवश्यकता है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विकसित भारत का संकल्प,औपनिवेशिक मानसिकता के दायरे से बाहर आना, अपनी विरासत पर गर्व करना, हमारी एकता की ताकत और नागरिकों के कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा करने को प्राथमिकता देनी होगी. हमारा लोक प्रशासन इन मूल्यों को आत्मसात किए बिना राष्ट्र के स्वभाव और भावना के साथ तालमेल नहीं बना सकता है.