नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने विकास दुबे मुठभेड़ कांड और आठ पुलिसकर्मियों के नरसंहार की घटनाओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग के गठन पर सवाल उठानेवाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी. उपाध्याय ने आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति डॉ चौहान के भाई उत्तर प्रदेश में विधायक हैं, जबकि उनकी पुत्री का विवाह एक सांसद से हुआ है.
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की तीन सदस्यीय पीठ ने इस संबंध में दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि कानुपर में हुई मुठभेड़ की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए समुचित उपाय किये गये हैं.
शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय की याचिका पर सुनाई के दौरान उन्हें मीडिया की खबरों के आधार पर जांच आयोग की अध्यक्षता कर रहे उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पर लांछन लगाने की अनुमति नहीं दी.
पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डा बलबीर सिंह चौहान, उच्च न्यायाय के पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता की सदस्यतावाले जांच आयोग के पुनर्गठन के लिए उपाध्याय की याचिका पर यह फैसला सुनाया.
जांच आयोग को कानपुर के चौबेपुर थाने के अंतर्गत बिकरू गांव में तीन जुलाई को आधी रात के बाद विकास दुबे को गिरफ्तार करने गयी पुलिस की टुकड़ी पर घात लगाकर किये गये हमले में पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा सहित आठ पुलिसकर्मियों के मारे जाने की घटना की जांच करनी है.
इसके अलावा आयोग को 10 जुलाई को विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत की घटना और इससे पहले अलग अलग मुठभेड़ में दुबे के पांच साथियों के मारे जाने की घटना की जांच करनी है.