नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने न्यायालय में लंबित पड़े मामलों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सामूहिक रूप से, हम न्यायिक प्रणाली का मजाक उड़ा रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि एक आम आदमी को हमारी बारीकियों या बड़े कानूनी सिद्धांतों में कोई दिलचस्पी नहीं है, जिसके बारे में हम बात करते रहते हैं. एक वादी जानना चाहता है कि उसके द्वारा दायर किये गये मामले में उसके लिए क्या है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी आम आदमी यह जानने के लिए अनिश्चित काल तक प्रतीक्षा नहीं करना चाहता कि वह सही था या नहीं. 10 साल या 20 साल लगने वाले फैसले के साथ वह क्या करता है. जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की बेंच ने यह टिप्पणी की.
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मैंने एक मामले को निपटाया है जिसमें दीवानी मुकदमा 45 वर्षों से लंबित था. हम पुराने मामले तय कर रहे हैं. निजी तौर पर, मैं पुराने मामलों को जल्द निपटाने की कोशिश कर रहा हूं ताकि उनमें से कम से कम कुछ में कम हो सके लेकिन हम विविध मामलों, अग्रिम जमानत, जमानत, अंतरिम राहत आदि से बमबारी कर रहे हैं और पुराने मामले को खत्म करने के लिए समय नहीं बचा पाते हैं.
2 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में 69,476 मामले लंबित थे. इसमें से 50,901 मामले (73 फीसदी) अंतरिम चरणों में राहत से संबंधित विविध मामले हैं. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में एक दशक से अधिक पुरानी दीवानी और फौजदारी अपीलें लंबित हैं. हमें यह कहते हुए खेद है लेकिन कानूनी बिरादरी भी केवल इन अंतरिम राहत मामलों में रुचि रखती है. कोई भी अंतिम मामलों पर बहस नहीं करना चाहता. सामूहिक रूप से हम न्यायिक व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट मोटर दुर्घटना के मामलों में मुआवजे से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रहा था. जब उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अंधाधुंध रूप से दायर किये जा रहे अंतरिम राहत के लिए आवेदनों और याचिकाओं के स्कोर पर नाराजगी जतायी.
Posted By: Amlesh Nandan.