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Weather News : खतरनाक है जलवायु परिवर्तन की आहट, जिम्मेदार सिर्फ मनुष्य

मौसम विभाग ने बढ़ती गर्मी के बीच अलर्ट जारी किया है, जिसके अनुसार यह जलवायु परिवर्तन की आहट है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 6, 2024 11:03 AM

-डॉ सुधांशु कुमार-
(Associate Professor, Bihar Institute of Public Finance and Policy, Patna)

Weather News : अभी हाल ही में मौसम विभाग द्वारा बिहार, झारखंड सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अत्यधिक गर्मी और गर्म हवाओं को ले कर चेतावनी जारी की गयी है. आप सोच रहे होंगे की गर्मी, वर्षा और शीत ऋतु तो पहले भी आते रहे हैं, फिर इसमें इतनी कौन सी बड़ी बात है. अगर ऐसा है तो आपको, हमको, सबको चिंतित होने, चुनौती को समझने और उसके समाधान को ले कर काम करने की जरूरत है. मौसम के बदलाव के पैटर्न को देखने भर से या फिर अपने बुजुर्गों के अनुभव के आधार पर गंभीर बात करने से यह समझ में आ जाता है कि मौसम को ले कर ये सूचनाएं सामान्य नहीं हैं. बल्कि यह एक ऐसी चेतावनी भी है जो बदलते मौसम को लेकर जारी सूचनाओं से अधिक जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले व्यापक असर और इसके कारण आने वाले समय की चुनौतियों को भी रेखांकित कर रही हैं.

ऋतुओं में परिवर्तन की स्वाभाविक और विशेष भूमिका


ऐसा इसलिए भी है कि हमारे जीवन जीने के तौर-तरीके में किसी खास स्थान पर होने वाले ऋतुओं में परिवर्तन की स्वाभाविक और विशेष भूमिका बनी हुई है. हर वर्ष इस परिवर्तन के साथ हमारी कई आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों की शुरुआत और अंत तय होती रहती हैं. खास कर कृषि से संबंधित गतिविधियां, तमाम तकनीकी उपयोग और पद्धति में बदलाव की गुंजाइश के बावजूद मौसम से ही जुड़ी हुई हैं. प्रमुख खाद्य उपज के लिए आज भी वर्षा सिंचाई का एक प्रमुख स्रोत है. साथ ही हमारे सांस्कृतिक क्रियाकलाप जैसे की शादी-विवाह, पर्व-त्यौहार आदि भी ऋतुओं से संबद्ध रहे हैं. इस प्रकार हमारी जीवन और जीविका की गतिविधियां ऋतु परिवर्तन से काफी हद तक जुड़ी रही हैं. ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की पृथ्वी पर जीवन और उससे जुडी गतिविधियों का अर्थशास्त्र भी मौसम, ऋतु और जलवायु से संबद्ध रहा है.

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ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है


यहां यह जानना भी उपयोगी होगा कि मौसम किसी स्थान विशेष पर, किसी खास समय, वायुमंडल की स्थिति से संबद्ध है, वहीं ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम एक खास प्रकार का रहता है. वर्ष भर में किसी स्थान के मौसम की बदलती परिस्थितियों के आधार पर उस स्थान का ‘जलवायु’ निर्धारित किया जाता है. साथ ही यह भी समझना महत्वपूर्ण है की मौसम हर दिन या फिर दिन में कई बार बदल सकता है, पर किसी स्थान का जलवायु आसानी या फिर तेजी से नहीं बदलता. यह किसी स्थान की दीर्घकालीन पहचान होता है.

मनुष्य ने किया प्रकृति का दोहन


मनुष्यों द्वारा प्रकृति के अत्यधिक दोहन के दौर से पहले तक ऐसा माना जाता था की किसी स्थान की जलवायु बदलने में कई हजार ही नहीं बल्कि लाखों वर्ष भी लगते रहे हैं. इसीलिए हम ‘बदलते मौसम’ की बात करते हैं, ऋतु बदलती है ऐसा देखते सुनते या पढ़ते रहे हैं, परंतु ‘बदलते हुए जलवायु’ की बात आम बोलचाल या फिर साहित्य की रचना में भी सामान्यतः नहीं देखी गई है. ऐसे में अगर बात हो कि जलवायु परिवर्तित ही नहीं अपितु तेजी से बदल रहा है, तो यह व्यापक चिंता की वजह होना चाहिए. हम आप गौर करेंगे तो जलवायु परिवर्तन के व्यापक संकेत हमारे आसपास की पारिस्थितिक व्यवस्था में भी दिखने लगे हैं. यह संकेत है कि हमारी जीवनशैली के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियां व्यापक तौर पर प्रभावित होंगी या फिर कहें की हो रही है. इस संदर्भ में जो अभी तक शोध आधारित साक्ष्य सामने आ रहे हैं उसके आधार पर यह कहा जा सकता है की दुर्भाग्य से हम आज उस संक्रमण के दौर में जी रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन का साक्षी बन रहा है. साथ ही यह भी स्पष्ट है कि इस जलवायु परिवर्तन के जिम्मेदार केवल और केवल मनुष्य की गतिविधियां ही रही हैं, जबकि इसका असर मनुष्य सहित धरती के सभी जीव-जंतु पर होगा.

जलवायु परिवर्तन का असर खाद्यान्न संकट

संक्षेप में यह जान कर आपको आश्चर्य होगा की जलवायु परिवर्तन का असर खाद्यान्न संकट, जल संकट, कुपोषण सहित कई स्वास्थ्य संकट, महंगाई सहित जीवन और जीविका के विभिन्न क्षेत्रों पर व्यापक रहेगा. भारत में या फिर बिहार, झारखंड क्षेत्र में ही देखें तो 1950 के दशक के बाद से मानसूनी वर्षा में काफी गिरावट पहले ही देखी जा चुकी है. साथ ही वर्षा की आवृत्ति में भी तेजी से बदलाव हुआ है. गर्म मौसम के असामान्य और अभूतपूर्व दौर पहले से कहीं अधिक बार घटित होने और बहुत बड़े क्षेत्रों को कवर करने की संभावना जताई जा रही है. ऐसा कहा जा रहा है कि मानसून में अचानक बदलाव से एक बड़ा संकट पैदा हो सकता है, जिससे भारत के बड़े हिस्से में बार-बार सूखा पड़ने के साथ-साथ बाढ़ भी आ सकती है. शहरी क्षेत्र तेजी से ‘गर्म-द्वीप’ बन रहे हैं. इस तरह की तमाम चुनौतियों का असर पृथ्वी की पारिस्थितिकी पर व्यापक रहेगा, जिससे हम आप सभी काफी हद तक प्रभावित होंगे.

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