Bhabanipur Bypolls पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद अब भवानीपुर सीट के लिए हुए उपचुनाव में भी ममता बनर्जी को रिकार्ड जीत मिली है. ममता बनर्जी को मिली इस जीत से यह साफ होने लगा है कि राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद और बढ़ेगा. ऐसे में अब उनकी नजर साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर होगी. बता दें कि हाईप्रोफाइल मानी जाने वाली भवानीपुर सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने प्रतिद्वंदी भाजपा की प्रियंका टिबरेवाल को 58,832 मतों से हरा दिया है.
इस जीत पर तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा कि मैंने निर्वाचन क्षेत्र के हर वार्ड में जीत दर्ज की है. यहां लगभग 46 फीसदी लोग गैर-बंगाली हैं और उन सभी ने मुझे वोट किया है. उन्होंने कहा कि जब बंगाल का चुनाव शुरू हुआ था, तब से हमारी पार्टी के खिलाफ बहुत षड्यंत्र हुआ था. केंद्र सरकार ने षड्यंत्र करके हमलोगों को हटाने का बंदोबस्त किया था. लेकिन, मैं जनता की आभारी हूं कि जनता ने हमें जिताया. वहीं, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने ममता बनर्जी की जीत का स्वागत किया है. बता दें कि टीएमसी ने भाजपा के कड़े मुकाबले के बाद विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी.
2021 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का कद बढ़ा था. विधानसभा चुनाव में जीत के बाद ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी और अब विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश में जुटी थी. इसके साथ ही अन्य राज्यों में भी अपना विस्तार शुरू किया है. बता दें कि ममता बनर्जी के इस चुनाव अभियान के केंद्र में राष्ट्रीय राजनीति थी. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर ममता बनर्जी इस चुनाव में हार जातीं, तो न केवल राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने की उनकी योजना और रणनीति विफल हो जाती, बल्कि उनके राजनीतिक करियर पर भी एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो जाता.
राजनीतिक प्रेक्षक ममता बनर्जी को मिली इस जीत के कई मायने निकाल रहे हैं. कहा जा रहा है कि ममता की जीत की यह लहर पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर निकलकर 2024 के लोकसभा चुनाव को छूने के लिए है. इससे देश की राष्ट्रीय राजनीति के भी प्रभावित होने की पूरी संभावना जताई जा रही है. सियासी गलियारों में चर्चा तेज है कि अब ममता बनर्जी खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद को प्रमुख दावेदार के तौर पर पेश कर सकती हैं.
भवानीपुर सीट के लिए उपचुनाव को कई मायनों में अहम माना जा रहा था. अप्रैल-मई में हुए विधानसभा चुनाव में अपने पूर्व सहयोगी और भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी से नंदीग्राम सीट हारने के बाद ममता के लिए यह वजूद की लड़ाई थी. यह चुनाव ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच एक तरह की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई थी. ममता के लिए मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए यह चुनाव जीतना बहुत जरूरी था. इधर, भाजपा की कोशिश थी कि यहां ममता को मात देकर उनके बढ़ते सियासी कद को छोटा किया जाए. इन सबके बीच, चर्चा है कि इस बार तृणमूल कांग्रेस ने वोट शेयर बढ़ाने के लिए खास रणनीति तैयार की थी.
बता दें कि अगले साल यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले है. ऐसे में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की जीत से यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी अजेय नहीं है. इससे यूपी में मायावती की बसपा और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश जाएगा कि अगर ममता जीत सकती हैं तो हम क्यों नहीं?. ठीक इसी तरह का संदेश पंजाब और उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में जाने की बात कही जा रही है. ऐसे में पश्चिम बंगाल के बाहर भी ममता बनर्जी के प्रभावी नेता बनकर उभरने की चर्चा जोर पकड़ रही है.