चीनी जलपोत को लेकर क्या हैं भारत की चिंताएं ?
युआन वैंग 5 एक रिसर्च शिप है, जिसे वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है. पर वास्तविकता यह है कि यह एक जासूसी जहाज ही है. श्रीलंकाई बंदरगाह पर जहाज के रुकना से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और चुनौतियां बढ़ जाएगी.
भारत दक्षिण एशिया को अपना सामरिक क्षेत्र (स्ट्रेटेजिक बैकयार्ड) मानता है, जहां चीन ने अपनी बहुत पैठ बना ली है. इस क्षेत्र में चीन की निरंतर और बढ़ती उपस्थिति यहां भारत के दबदबे को चुनौती देती है. ऐसे में हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जलपोत की उपस्थिति को भारत और उसके पड़ोसी देशों की सुरक्षा के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. इसके अतिरिक्त, यह भी माना जा रहा है कि चीन के इस कदम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और चुनौतियां बढ़ेंगी.
-
युआन वैंग 5 का श्रीलंकाई बंदरगाह पर रुकना, इस आशंका को भी जन्म देता है कि वह भारतीय तटों पर हो रही गतिविधियों की जासूसी करने के प्रयास में है.
-
भारत सरकार को लगता है कि चीनी जहाज के ट्रैकिंग सिस्टम भारतीय रक्षा प्रतिष्ठानों की जासूसी करने की कोशिश कर रहे हैं. इस संभावना ने भी भारत को आशंकित किया है.
-
एक संभावना यह भी है और इस पर चर्चा भी हुई है कि इस जहाज का उपयोग महासागर का सर्वेक्षण करने के लिए भी किया जा सकता है. जो इस क्षेत्र में पनडुब्बी संचालन की योजना बनाने में चीन की सहायता करेगा.
-
रिपोर्ट यह भी है कि युआन वैंग 5 जैसे जलपोत भारत व अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करने के साथ इस क्षेत्र में उपग्रह की गतिविधियों और मिसाइल परीक्षण की निगरानी भी कर रहे हैं.
पोत मार्ग को अवरुद्ध कर सकता है चीन : विशेषज्ञ
चूंकि चीन और भारत, दोनों श्रीलंका में अपने प्रभाव का विस्तार करने में लगे हैं, ऐसे में समुद्री विशेषज्ञों को डर है कि चीन एशिया और यूरोप के बीच पोत मार्गों को अवरुद्ध करने के लिए हंबनटोटा बंदरगाह का उपयोग कर सकता है. जबकि सैन्य योजनाकारों का कहना है कि हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पोत संचालन को लेकर चीन दीर्घकालिक योजना के जरिये आगे बढ़ रहा है. इसके तहत वह बांग्लादेश (बंगाल की खाड़ी) में पहले ही दो पनडुब्बी अड्डा स्थापित कर चुका है. इसके बदले उसने बांग्लादेश को दो पनडुब्बियां दी हैं. इतना ही नहीं, बीजिंग ने म्यांमार को भी एक पुरानी पनडुब्बी दी है. अरब सागर की तरफ चीन पाकिस्तान को आठ पनडुब्बियां मुहैया करा रहा है. इसके बाद चीन इस क्षेत्र में भी काम कर सकेगा.