चांद हमेशा से ही इंसान के लिये एक कौतूहल का विषय रहा है. चांद को लेकर हमेशा से ही वैज्ञानिकों और पूरी मानव जाति जिज्ञासु रही है. पृथ्वी के सबसे करीब और सबसे ठंडे इस ग्रह को पृथ्वी से बाहर जीवन के लिये काफी उपयुक्त माना जाता रहा है. यही वज़ह है कि अनेक देशों की अंतरिक्ष एजेंसियाँ समय-समय पर चाँद पर अपने यान भेजती रही हैं. भारत भी इस कार्य में पीछे नहीं है. भारत ने अंतरिक्ष में लगातार नई उपलब्धियाँ हासिल की है. पहले चंद्रमिशन चंद्रयान-1 उसके बाद चंद्रमिशन चंद्रयान-2 और अब चंद्रयान-3. तमाम चुनौतियों को पार करता हुआ भारत आज अंतरिक्ष की दुनिया में काफी ऊँची छलांग लगाने के साथ ही वैश्विक स्तर पर अपनी मज़बूत पहचान बना चुका है. अगर भारत का चंद्रयान मिशन 3 सफलता पूर्वक लॉन्च हो जाता है आज भारत एक नया इतिहास लिखेगा.
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15 साल पहले भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसी उपलब्धि हासिल की जो कि कुछ ही चुनिंदा देशों के पास थी.
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15 साल पूर्व देश के पहले चंद्र अभियान में किसी अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक दाखिल कराया गया जो कि भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिये मील का पत्थर साबित हुआ था.
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भारत सरकार ने नवंबर 2003 में पहली बार भारतीय मून मिशन के लिये इसरो के प्रस्ताव चंद्रयान -1 को मंज़ूरी दी.
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इसके करीब 5 साल बाद 22 अक्तूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया.
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चंद्रयान-1 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, यानी PSLV-C 11 रॉकेट के ज़रिये सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया.
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चंद्रयान-1 पाँच दिन बाद 27 अक्तूबर, 2008 को चंद्रमा के पास पहुँचा था.
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वहाँ पहले तो उसने चंद्रमा से 1000 किलोमीटर दूर रहकर एक वृत्ताकार कक्षा में उसकी परिक्रमा की. तत्पश्चात वह चंद्रमा के और नज़दीक गया और 12 नवंबर, 2008 से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर से हर 2 घंटे में चंद्रमा की परिक्रमा पूरी करने लगा.
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इस अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 वैज्ञानिक उपकरणों को भी लगाया गया था.
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इस अंतरिक्ष यान का वज़न 1380 किलोग्राम था. चंद्रयान-1 पृथ्वी की कक्षा से परे भारत का पहला अंतरिक्ष यान मिशन था.
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इसका मकसद पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह के बारे में अपने ज्ञान का विस्तार करना था. चंद्रयान-1 का उद्देश्य
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चंद्रमा के चारों ओर की कक्षा में मानव रहित अंतरिक्ष यान स्थापित करना चंद्रमा की सतह के खनिज और रसायनों का मानचित्रण करना. देश में तकनीकी आधार को उन्नत बनाना.
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चंद्रयान-1 के ज़रिये चंद्रमा की सतह पर जल तथा बर्फ की तलाश के साथ खनिज और रासायनिक तत्त्वों का पता लगाना तथा चंद्रमा के दोनों ओर की 3-डी तस्वीर तैयार करना था.
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सभी प्रमुख उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद 19 मई, 2009 को चंद्रयान-1 की कक्षा 100 से 200 किलोमीटर तक बढ़ाई गई थी.
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चंद्रमा की सतह पर एक हॉरिजॉन्टल गुफा जैसी संरचना प्राप्त हुई जिसे लावा क्यूब कहते हैं. यह लगभग 1.7 किलोमीटर की लम्बाई और 120 मीटर की चौड़ाई में पाई गई.
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इस मिशन को 2 साल के लिये भेजा गया था लेकिन 29 अगस्त, 2009 को इसने अचानक रेडियो संपर्क खो दिया. इसके कुछ दिनों बाद ही इसरो ने आधिकारिक रूप से इस मिशन को ख़त्म करने की घोषणा कर दी थी.
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उस वक्त तक अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की 3400 से ज़्यादा बार परिक्रमा पूरी कर ली थी. वह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन तक रहा और परिष्कृत सेंसरों से व्यापक स्तर पर डेटा भेजता रहा. इस वक्त तक यान ने अधिकांश वैज्ञानिक मकसदों को पूरा कर लिया था.
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यान ने चंद्रमा की सतह की 70 हज़ार से ज़्यादा तस्वीरों को भेजने के अलावा चंदमा के ध्रुवीय क्षेत्र के स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों में पहाड़ों और क्रेटर के लुभावने दृश्यों को कैमरे में कैद किया.
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इस अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा पर पाई गई रासायनिक और खनिज सामग्री से संबंधित मूल्यवान डेटा भी उपलब्ध कराया. यान से मिले डेटा की गुणवत्ता काफी अच्छी थी.
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चंद्रयान-1 के सभी प्राथमिक लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्रक्षेपण के 8 महीने के दौरान ही सफलतापूर्वक हासिल कर लिया गया था.
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चंद्रयान-1 का डेटा यूज़ करके चाँद पर बर्फ संबंधी जानकारी एकत्र की गई. चंद्रमा पर बर्फ की पुष्टि
चंद्रयान-2, 2019 में चांद की सतह पर सुरक्षित तरीके से उतरने में विफल रहा था जिससे इसरो का दल काफी निराश हो गया था. तब भावुक हुए तत्कालीन इसरो प्रमुख के. सिवान को गले लगा कर ढांढस बंधाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीरें आज भी लोगों को याद हैं.
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चंद्रयान-2 के वैज्ञानिक उद्देश्य और विशेषताएं चंद्रयान-2 भारत का चंद्रमा पर दूसरा मिशन था.
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यह भारत का अब तक का सबसे मुश्किल मिशन था.
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यह 2008 में लॉन्च किये गए मिशन चंद्रयान का उन्नत संस्करण था.
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गौरतलब है कि चंद्रयान मिशन ने केवल चन्द्रमा की परिक्रमा की थी, परन्तु चंद्रयान-2 मिशन में चंद्रमा की सतह पर एक रोवर भी उतारने की तैयारी थी.
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इस मिशन के सभी हिस्से इसरो ने स्वदेशी रूप से भारत में ही बनाये हैं. इसमें ऑर्बिटर, लैंडर व रोवर शामिल थे.
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चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो ग्राम था.
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इस मिशन का सबसे पहला उद्देश्य चाँद की सतह पर सुरक्षित उतरना और फिर सतह पर रोबोट रोवर संचालित करना था.
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इसका मुख्य उद्देश्य चाँद की सतह का नक्शा तैयार करना, खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना, चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना और किसी न किसी रूप में पानी की उपस्थिति का पता लगाना था.
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इस मिशन का एक और उद्देश्य चाँद को लेकर हमारी समझ को और बेहतर करना और मानवता को लाभान्वित करने वाली खोज करना था.
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चंद्रयान-2, 2019 में चांद की सतह पर सुरक्षित तरीके से उतरने में विफल रहा था.
देश के महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान-3 को ‘फैट बॉय’ एलवीएम-एम4 रॉकेट ले जाएगा. आज दोपहर दो बजकर 35 मिनट पर श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से इसे प्रक्षेपित किया जाएगा. सबकुछ ठीक रहा तो यह अगस्त के आखिर में चंद्रमा पर उतरेगा. वैज्ञानिक यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में घंटों कड़ी मेहनत करने के बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग तकनीक में महारथ हासिल करने का लाक्ष्य साधे हुए हैं. अगर भारत ऐसा कर पाने में सफल हो जाता है वह अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद इस सूची में चौथा देश बन जाएगा
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अंतरिक्ष संस्थान ने कहा कि चंद्रयान-3, तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है, जो एलवीएम3 प्रक्षेपक के चौथे परिचालन मिशन (एम4) में रवानगी के लिए पूरी तरह से तैयार है.
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इसरो अपने चंद्र मॉड्यूल से चांद की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग कर उसकी जमीन पर चहलकदमी का प्रदर्शन कर नई ऊंचाइयों को छूने जा रहा है.
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यह मिशन भावी अन्तरग्रहीय मिशनों के लिए भी सहायक साबित हो सकता है.
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चंद्रयान-3 मिशन में एक स्वदेशी प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और एक रोवर शामिल हैं, जिसका उद्देशय अन्तरग्रहीय मिशनों के लिए जरूरी नई प्रौद्योगिकियों का विकास एवं उनका प्रदर्शन करना है.
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मिशन के तहत 43.5 मीटर लंबा रॉकेट दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया जाना है. सबसे लंबे और भारी एलवीएम3 रॉकेट (पूर्व में जीएसएलवी एमके3 कहलाने वाले) की भारी भरकम सामान ले जाने की क्षमता की वजह से इसरो के वैज्ञानिक उसे प्यार से ‘फैट बॉय’ भी कहते हैं.
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इस ‘फैट बॉय’ ने लगातार छह सफल अभियानों को पूरा किया है.
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एलवीएम3 रॉकेट तीन मॉड्यूल का समन्वय है, जिसमें प्रणोदन, लैंडर और रोवर शामिल हैं. रोवर लैंडर के भीतर रखा है.
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शुक्रवार का यह मिशन एलवीएम3 की चौथी परिचालन उड़ान है, जिसका मकसद ‘चंद्रयान-3’ को भू-समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करना है.
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इसरो ने कहा कि एलवीएम3 वाहन ने अपनी दक्षता को साबित किया है और कई जटिल अभियानों को पूरा किया है, जिसमें बहु-उपग्रहों का प्रक्षेपण, अन्तरग्रहीय मिशनों सहित दूसरे अभियान शामिल हैं.
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इसके अलावा यह सबसे लंबा और भारी प्रक्षेपक वाहन है, जो भारतीय और अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता उपग्रहों को लाने-ले जाने का काम करता है.
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जुलाई महीने में प्रक्षेपण करने का कारण ठीक चंद्रयान-2 मिशन (22 जुलाई, 2019) जैसा ही है क्योंकि साल के इस समय में पृथ्वी और उसका उपग्रह चंद्रमा एक-दूसरे के बेहद करीब होते हैं.
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शुक्रवार का मिशन भी चंद्रयान-2 की तर्ज पर होगा, जहां वैज्ञानिक कई क्षमताओं का प्रदर्शन करेंगे.
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इनमें चंद्रमा की कक्षा पर पहुंचना, लैंडर का उपयोग कर चंद्रमा की सतह पर यान को सुरक्षित उतारना और लैंडर में से रोवर का बाहर निकलकर चंद्रमा की सतह के बारे में अध्ययन करना शामिल है.
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चंद्रयान-2 मिशन में लैंडर सुरक्षित रूप से सतह पर नहीं उतर सका था और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसकी वजह से इसरो का प्रयास असफल हो गया था.
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वैज्ञानिकों ने अगस्त महीने में लैंडर को सफलतापूर्वक उतारने के प्रयास में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
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श्रीहरिकोटा में मंगलवार को प्रक्षेपण रिहर्सल संपन्न हुआ, जिसमें प्रक्षेपण की तैयारी और प्रक्रिया आदि शामिल थी और यह पूर्वाभ्यास 24 घंटे से अधिक समय तक चला.
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इसके अगले दिन, वैज्ञानिकों ने मिशन तैयारी से संबंधित समीक्षा पूरी की.
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15 अगस्त 2003 : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चंद्रयान कार्यक्रम की घोषणा की.
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22 अक्टूबर 2008 : चंद्रयान-1 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी. आठ नवंबर 2008 : चंद्रयान-1 ने प्रक्षेपवक्र पर स्थापित होने के लिए चंद्र स्थानांतरण परिपथ (लुनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री) में प्रवेश किया.
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14 नवंबर 2008 : चंद्रयान-1 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गया लेकिन उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि की.
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28 अगस्त 2009 : इसरो के अनुसार चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति हुई. 22 जुलाई 2019 : श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया गया.
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20 अगस्त 2019 : चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया.
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दो सितंबर 2019 : चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में चांद का चक्कर लगाते वक्त लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया था लेकिन चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया.
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14 जुलाई 2023 : चंद्रयान-3 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लॉन्चपैड से उड़ान भरेगा.
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23/24 अगस्त 2023 : इसरो के वैज्ञानिकों ने 23-24 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की योजना बनायी है जिससे भारत इस उपलब्धि को हासिल करने वाले देशों की फेहरिस्त में शामिल हो
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