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जानें क्या है जलीकट्टू? क्यों सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था बैन, जानिए कैसे होता है इसमें विजेताओं का चयन

जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव और संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि यह बीते 2000 सालों से खेला जा रहा है, जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है. जितना अनोखा यह खेल है उतना ही अलग इसके नियम भी हैं.

तमिलनाडु में पोंगल उत्सव की धूम के बीच मदुरै के अवनियापुरम में सांड को काबू करने की लोकप्रिय प्रतियोगिता अवनियापुरम जल्लीकट्टू  की भी शुरुआत हो गई है. जलीकट्टू  के दौरान बिदके सांड को काबू करने के चक्कर में तीन दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गये. इनमें से कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है. बता दें. जलीकट्टू तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में खेला जाने वाला पारंपरिक खेल है, जिसमें बैलों से इंसानों की लड़ाई होती है. जलीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है. इसे तमिलनाडु में इरुथाझुवुथल भी कहा जाता है.

कैसे खेला जाता है जलीकट्टू
तमिलनाडु में पोंगल के साथ नव वर्ष की शुरुआत हो जाती है. इस शुभ महीने के पहले दिन जब सूर्य पोंगल मनाया जाता है.इसी के साथ मुदरै के अवनियापुरम समेत कई इलाकों में जलीकट्टू खेल का आयोजन होता है. आमतौर पर 8 राउंड में जल्लीकट्टू का आयोजन किया जाता है. हर राउंड के लिए वादीवासल से पचास से 75 बैल या सांड छोड़े जाते हैं. जो व्यक्ति ज्यादा बैलों को पकड़ता है, उसे अगले राउंड में भेज दिया जाता है. बता दें, जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव और संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि यह बीते 2000 सालों से खेला जा रहा है, जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है.

कैसे होता है विजेता का चयन
जल्लीकट्टू खेल काफी खतरनाक होता है. इसे खेलने के कई नियम होते हैं. खेल के लिए सांड या बैल के कूबड़ को पकड़कर उस पर काबू पाना होता है. इसके अलावा सांड या बैल की पूंछ और उसके सींग को पकड़कर भी रखना होता है.  सांड को एक तय समय में काबू में लाना होता है और ऐसा न होने पर व्यक्ति हारा माना जाता है. वहीं, विजेता का फैसला इस तरह होता कि जो ज्यादा देर तक बैल या सांड के कूबड़ सींग या पूंछ को पकड़ कर रखता है उसे विजेता माना जाता है.

सांडों या बैलों का किया जाता है मेडिकल चेकअप
खेल शुरू करने से पहले सांडों या बैलों का मेडिकल चेकअप किया जाता है. मेडिकल चेकअप के बाद ही इन्हें खेल के लिए सिलेक्ट किया जाता है. इसके अलावा जो जो लोग खेल में हिस्सा लेते हैं उनका भी मेडिकल चेकअप किया जाता है. हर साल इस खेल में कई लोग घायल हो जाते है ऐसे में सांडों को काबू करने वालों के लिए मेडिकल कैंप भी लगाये जाते हैं. इसके अलावा एंबुलेंस भी तैयार रखे जाते हैं. अगर खेल में कोई गंभीर रूप से घायल हो तो उसे तुरंत चिकित्सा सुविधा मिल सके.

सींगों पर बंधे होते हैं पैसे
जलीकट्टू में कई जगहों पर बैलों के सींग पर पैसे को भी बांधा जाता और उन्हें उकसा कर छोड़ दिया जाता है, जो व्यक्ति बैल पर काबू कर लेता है उसे उसके सींग पर बंधा पैसा और इनाम दिया जाता है. खेल में बैलों को उकसाने के लिए उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है. कहा जाता है कि बैलों या सांड को उकसाने के लिए उनकी आंखों में मिर्च पाउडर तक फेंक दिया जाता है. ऐसी अमानवीय व्यवहार के कारण सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में जलीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लोग काफी नाराज थे और फिर अपील करने पर कोर्ट ने जलीकट्टू की अनुमति दे दी.


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