फिर देशद्रोह कानून को हटाने पर चर्चा तेज, जानें क्यों उठ रही है मांग ? क्या है इस कानून में ?
इस कानून को लेकर सबसे बड़ा तर्क यही है कि इसे अंग्रेजों ने बनाया था और इसकी समीक्षा जरूरी है. कई बार खबरें आयी कि केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन का मन बना रही है. इस बीच भी लगातार कई मौकों पर इसके संशोधन की मांग उठती रही है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने देशद्रोह कानून खत्म करने की बात कही है. उन्होंने एक कार्यक्रम में इसके कुछ हिस्सों को हटा देना चाहिए. देशद्रोह कानून को हटाने की चर्चा यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी कई लोगों ने इसकी वकालत की है. आखिर क्या है इस कानून में जिसे हटाने की मांग की जा रही है. आइये जानते हैं.
इस कानून को लेकर सबसे बड़ा तर्क यही है कि इसे अंग्रेजों ने बनाया था और इसकी समीक्षा जरूरी है. कई बार खबरें आयी कि केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन का मन बना रही है. इस बीच भी लगातार कई मौकों पर इसके संशोधन की मांग उठती रही है.
संविधान के जानकार यह स्पष्ट करते रहे हैं कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है. आलोचना के लिए लोगों को पर केस नहीं किया जाना चाहिए. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना भी देशद्रोह नहीं है लेकिन भारत के टुक़ड़े होंगे जैसे नारे देशद्रोह जरूर हैं. देशद्रोह का केस लगाने के लिए हिंसा होना जरूरी नहीं है. अगर आरोप सही साबित होते हैं और पक्के सबूत हैं तो जरूर सजा मिलनी चाहिए.
Also Read: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, देशद्रोह कानून की जरूरत है ?
यह कानून 1860 में बना था देशद्रोह की धारा आईपीसी 124ए को 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर लिया गया. इस कानून को बनाने के पीछे उद्देश्य था कि अंग्रेजों की सत्ता को चुनौती देने वाले हर व्यक्ति पर इसे लगाया जा सकता है और उसे सलाखों के पीछे डाल दिया जाता था. भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले हर नायक को जेल के पीछे इसी कानून की मदद से डाला जाने लगा. 1898 में मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो. साल 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस परिभाषा को बदल दिया.
124ए के तहत लिखित या मौखिक शब्दों, चिन्हों, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या असंतोष जाहिर करने पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा सकता है. 124ए के तहत केस दर्ज होने पर दोषी को तीन साल से उम्रकैद की सजा हो सकती है. इस कानून को लेकर साल 1962 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी देशद्रोह की इसी परिभाषा पर सहमति दी. 1962 में केदारनाथ सिंह पर राज्यो सरकार द्वारा लगाए गए देशद्रोह के मामले पर कोर्ट ने खारिज कर दिया. हाल में देशद्रोह के बढ़ते मामलों के बीच इस कानून की समीक्षा की मांग उठने लगी है.
देशद्रोह के केस में गिरफ्तार होने वाले लोंगों की लिस्ट लंबी हो रही है. कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, काटूर्निस्ट् असीम त्रिवेदी, बिनायक सेन, अरुंधति रॉय, हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी सहित कई ऐसे नाम है जिन पर मामला दर्ज हुआ है और कुछ सजा भी काट रहे हैं. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 में देशद्रोह के 47 मामले दर्ज हुए. इनके 72 फीसदी मामले सिर्फ बिहार-झारखंड में हैं.