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लिव इन रिलेशन में हैं तो ध्यान दें, इस तरह के संबंध को नहीं मिलेगी कानूनी मान्यता…

हाल के कुछ महीनों में लिव इन रिलेशन का मामला बहुत चर्चा में है, कारण दो मामले, जिसमें कोर्ट ने लिव इन रिलेशन में रह रहे दो कपल को कानूनी सुरक्षा देने से मना कर दिया था. हालिया मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट का है जिसमें कोर्ट ने यह कहा कि हम लिव इन रिलेशन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अगर एक शादीशुदा व्यक्ति लिव इन रिलेशन में रहे और उससे बाद सुरक्षा की मांग करे तो उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि यह समाज में अवैधता को बढ़ाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 20, 2021 7:31 PM

हाल के कुछ महीनों में लिव इन रिलेशन का मामला बहुत चर्चा में है, कारण दो मामले, जिसमें कोर्ट ने लिव इन रिलेशन में रह रहे दो कपल को कानूनी सुरक्षा देने से मना कर दिया था. हालिया मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट का है जिसमें कोर्ट ने यह कहा कि हम लिव इन रिलेशन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अगर एक शादीशुदा व्यक्ति लिव इन रिलेशन में रहे और उससे बाद सुरक्षा की मांग करे तो उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि यह समाज में अवैधता को बढ़ाता है.

दूसरा मामला हरियाणा का था जहां एक दंपति ने शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रहने पर सुरक्षा की गुहार लगायी थी. इस जोड़े का कहना था कि वे शादी करना चाहते हैं लेकिन लड़की के दस्तावेज उसके घर वालों के पास थे जो शादी के खिलाफ थे इसलिए शादी नहीं हो पा रही थी.

इस कपल को जान का खतरा महसूस हो रहा था इसलिए वे कोर्ट की शरण में गये लेकिन कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप को समाज नहीं स्वीकार करता इसलिए वे उन्हें सुरक्षा नहीं दे सकते. ऐसे में सवाल यह है कि लिव इन रिलेशनशिप को जब सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है तो फिर हाईकोर्ट कैसे इससे इनकार कर सकते हैं?

क्या है लिव इन रिलेशनशिप

लिव इन रिलेशनशिप पाश्चात्य संस्कृति से आयी है और वहां के लिए आम बात है, लेकिन भारतीय सभ्यता में बिना शादी के एक स्त्री-पुरुष के साथ रहने को स्वीकार नहीं किया जाता था, लेकिन बदलती जीवनशैली में इसे भारत में भी अपनाया जाने लगा है. चूंकि आज लिव इन रिलेशनशिप में रहना बड़े शहरों में आम हो चुका है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून वैध करार दिया है. चूंकि लिव इन को लेकर भारतीय संसद ने कोई कानून पारित नहीं किया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही इस मामले में कानून की तरह काम करता है और सुप्रीम कोर्ट लिव इन को पूरी तरह वैध मानता है.

लिव इन रिलेशन कब होगा वैध

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2( f ) के अंतर्गत लिव इन कोर परिभाषित किया गया है और इसे कानूनी मान्यता दी गयी है.

  • 1. लिव इन रिलेशन के लिए एक कपल का साथ रहना जरूरी है कि उन्हें पति-पत्नी की तरह एक साथ रहना होगा. हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, लेकिन उनका लगातार साथ रहना जरूरी है. ऐसे संबंध को लिव नहीं माना जायेगा जिसमें कभी कोई साथ रहे हों और फिर अलग हो जायें, फिर कुछ दिन साथ रह लें.

  • 2. लिव इन कपल का एक ही घर में पति-पत्नी की भांति रहना अनिवार्य होगा.

  • 3. उन्हें एक ही घर के सामानों का उपयोग संयुक्त रूप से करना होगा.

  • 4. लिव इन साथी को पति-पत्नी की भांति घर के कामों में एक दूसरे की सहायता करनी होगी.

  • 5. लिव इन में रह रहे कपल के लिए यह जरूरी होगा कि अगर उनके बच्चे हों तो उन्हें भरपूर प्रेम और स्नेह दें तथा उनकी उचित परवरिश करें.

  • 6. समाज को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि कपल लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं, क्योंकि वैध संबंध है इसलिए इसकी जानकारी दी जानी चाहिए.

  • 7. लिव इन रिलेशन में रहने वालों का वयस्क होना बहुत जरूरी है, अगर कपल वयस्क नहीं हुआ तो संबंध वैध नहीं माना जायेगा.

  • 8. लिव इन रिलेशन की सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि दोनों व्यक्ति का पहले से कोई पति या पत्नी नहीं होना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति पूर्व में पति या पत्नी के रहते हुए किसी और के साथ लिव इन रिलेशन बनाता है तो वह अवैध माना जायेगा.

लिव इन में रह रही महिला पक्षकार को भरण पोषण का अधिकार

लिव इन में रह रही महिला को अपने साथी पुरुष से भरण पोषण की मांग करने का अधिकार है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह कहकर महिला को भरणा पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने कानूनी शादी नहीं की है.

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लिव इन से उत्पन्न संतान को माता-पिता की संपत्ति में अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि लिव इन में रहने के दौरान अगर कोई संतान उत्पन्न होती है तो उसे अपने माता-पिता की संपत्ति में पूरा अधिकार होगा और इससे कोई भी भी लिव इन कपल बच नहीं सकता है.

Posted By : Rajneesh Anand

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