‘व्हाइट फंगस’ सामान्य फंगल इंफेक्शन, ब्लैक फंगस ज्यादा खतरनाक : विशेषज्ञ

White fungus, Fungal infection, Black fungus : नयी दिल्ली : कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में गिरावट आने से एक ओर जहां राहत मिली है, वहीं दूसरी ओर ब्लैक फंगस म्यूकर माइकोसिस के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड कोरोना मरीजों को प्रभावित कर रही है, जिसे व्हाइट फंगस कहा जा रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 21, 2021 7:10 PM
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नयी दिल्ली : कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में गिरावट आने से एक ओर जहां राहत मिली है, वहीं दूसरी ओर ब्लैक फंगस म्यूकर माइकोसिस के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड कोरोना मरीजों को प्रभावित कर रही है, जिसे व्हाइट फंगस कहा जा रहा है.

हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा है कि व्हाइट फंगस जैसी कोई बीमारी नहीं है. यह कैंडिडिऑसिस के अलावा कुछ नहीं है. बताया जाता है कि व्हाइट फंगस का पहला मामला बिहार की राजधानी पटना से आयी थी. हालांकि, पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने ऐसी खबरों को खारिज कर दिया है. अब नया मामला उत्तर प्रदेश से आया है.

इंडिया टूडे से बातचीत में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि व्हाइट फंगस मूल रूप से कैंडिडिऑसिस है. यह एक प्रकार का कवक संक्रमण है, जिसे कैंडिडा कहा जाता है. यह आम फंगल है. साथ ही विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि इस बात का कोई आधार नहीं है कि ब्लैक फंगस से व्हाइट फंगस ज्यादा खतरनाक है.

बॉम्बे अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ कपिल सालगिया के मुताबिक, म्यूकर माइकोसिस अधिक आक्रामक था. इससे साइनस, आंखों, मस्तिष्क को बहुत नुकसान हो सकता है. इससे बचाव के लिए बड़े स्तर की सर्जरी की जरूरत होती है. साथ ही उन्होंने कहा कि कैंडिडा से होनेवाले संक्रमण को ब्लैक फंगस के मुकाबले आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है.

म्यूकर माइकोसिस आम तौर पर मानव में नहीं पाया जाता है. जबकि, कैंडिडिऑसिस का निदान आसानी से किया जाता है. इससे जीवन को खतरा नहीं है. कमजोर इम्युनिटी वाले, डायबिटीज से पीड़ित और कोरोना संक्रमण के उपचार के दौरान लंबे समय से स्टेरॉयड पर रहे मरीजों में कैंडिडिऑसिस की चपेट में आ रहे हैं.

विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंडिडिऑसिस का सबसे आम संक्रमण मुंह के छाले हैं. यह संक्रमण शरीर के उन हिस्सों को प्रभावित करता है, जिनकी परत पतली होती है. होंठ, नाक, मुंह और जननांग क्षेत्र के अंदर म्यूकोक्यूटेनियस जंक्शन होते हैं. डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि संक्रमण का पता लगाने के लिए 10 फीसदी केओएच (पोटेशियम हाइड्राक्साइड) के तहत एक साधारण सूक्ष्म जांच की जा सकती है.

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