विश्व आदिवासी दिवस 2022 के मुख्य कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में एक नाम है अर्चना सोरेंग. अर्चना भारत के ओड़िशा से हैं. 1996 में जन्मीं अर्चना सोरेंग पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. ओड़िशा के सुंदरगढ़ जिला के राजगंगपुर के एक गांव बीहाबांध से हैं. खड़िया जनजाति से आती हैं. पर्यावरण संरक्षण पर उन्होंने बहुत काम किया है. दुनिया को बताया है कि आदिवासी समाज ने किस तरह से सदियों से पर्यावरण का संरक्षण किया है.
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने 7 सदस्यों का एक यूथ एडवाइजरी ग्रुप बनाया है, जिसमें अर्चना सोरेंग को भी जगह मिली है. ओड़िशा के राजगांगपुर में पली-बढ़ी अर्चना सोरेंग ने पिता के निधन के बाद सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. इंडियन कैथोलिक यूथ मूवमेंट में सक्रिय योगदान देना शुरू कर दिया.
Also Read: विश्व आदिवासी दिवस और मुहर्रम को लेकर राजधानी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम, 3000 जवानों की होगी तैनातीअर्चना सोरेंग टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) स्टूडेंट्स यूनियन की अध्यक्ष रहीं. वह ट्राइबल कमीशन की राष्ट्रीय संयोजक भी रहीं. ट्राइबल कमीशन को आदिवासी युवा चेतना मंच के नाम से भी जाना जाता है. ऑल इंडिया कैथोलिक यूनिवर्सिटी फेडरेशन (AICUF) का मुख्य संगठन है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव के सलाहकार समूह की सदस्य अर्चना वर्तमान में वसुंधरा ओड़िशा में रिसर्च ऑफिसर हैं.
बता दें कि वसुंधरा भुवनेश्वर की एक संस्था है, जो प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, आदिवासी अधिकारों और जलवायु परिवर्तन पर काम करती है. यह एक्शन रिसर्च एंड पॉलिसी एडवोकेसी संगठन है. जलवायु परिवर्तन पर उन्होंने कई डॉक्यूमेंट्स तैयार किये हैं. यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एतोनियो गुतरेस ने उन्हें अपने सलाहकार समूह में स्थान दिया है.
क्लाइमेट एक्टिविस्ट अर्चना सोरेंग कहती हैं कि उनके जैसे आदिवासी समुदाय के लोगों की विश्व की कुल आबादी में हिस्सेदारी महज 5 फीसदी है. लेकिन, वे धरती के 20 फीसदी भू-भाग के साथ-साथ 80 फीसदी जैव विविधता की रक्षा करते हैं. आर्कटिक से अंटार्कटिक तक आदिवासी समाज के लोग दुनिया के 2.5 अरब लोगों की मदद करते हैं. उनकी जिंदगी बचाने में, आजीविका चलाने में. लेकिन, खत्म होते जंगलों और वनस्पतियों की वजह से आदिवासी समाज का जीवन खुद खतरे में आ गया है.
अर्चना कहती हैं कि वर्षों से हमें बताया गया कि हम पिछड़े हैं, हम क्रूर हैं, हम अपनी परंपराओं, पहचान और संस्कृति की वजह से पिछड़े हैं. लेकिन, अब दुनिया ने आदिवासी जीवन-शैली के महत्व को समझा है. यही वजह से उनके विचारों को पहली बार इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट में शामिल किया गया. इसमें कहा गया कि इकोसिस्टम और जंगलों को संरक्षित करने में आदिवासियों की अहम भूमिका रही है.