केंद्र को एक बड़ा झटका देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) प्रमुख संजय कुमार मिश्रा को दिए गए सेवा के तीसरे विस्तार को अवैध करार दिया, ऐसा होने की वजह से उन्हें पद छोड़ने के लिए 31 जुलाई तक का समय मिल गया. जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन-जस्टिसों की पीठ ने कहा कि, 2021 में सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के मद्देनजर मिश्रा को नवंबर 2022 से आगे विस्तार नहीं दिया जा सकता था. मिश्रा के विस्तार को याचिकाओं के एक समूह द्वारा चुनौती दी गई थी, जो सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2021 के आदेश पर आधारित थी. याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला, जया ठाकुर और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा समेत अन्य शामिल हैं.
संजय मिश्रा को शुरू में नवंबर 2020 में समाप्त होने वाले दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्हें एक साल का विस्तार दिया गया था, जिसे एक गैर सरकारी संगठन, कॉमन कॉज़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. जबकि, कोर्ट ने सितंबर 2021 के फैसले में विस्तार की अनुमति दी थी, क्योंकि उनका कार्यकाल लगभग दो महीने में समाप्त हो रहा था, यह स्पष्ट था कि मिश्रा को कोई और विस्तार नहीं दिया जाना था.
केंद्र सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में संशोधन पेश किया, जिसमें प्रत्येक एक साल का विस्तार देकर ईडी और सीबीआई प्रमुखों को उनके दो साल के कार्यकाल से परे तीन साल की अवधि के लिए सेवा विस्तार की अनुमति दी गई. संशोधन के तहत, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, मिश्रा को नवंबर 2021 से नवंबर 2022 तक विस्तार मिला. बता दें पिछले नवंबर में, उनके कार्यकाल को एक अधिसूचना द्वारा नवंबर 2023 तक बढ़ा दिया गया था.
संजय कुमार मिश्रा 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी हैं. 1984 बैच के आईआरएस अधिकारी संजय कुमार मिश्रा को पूर्णकालिक प्रमुख बनाए जाने से पहले अक्टूबर 2018 में तीन महीने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था. सीएनबीसी के अनुसार, 63 वर्षीय मिश्रा एक आर्थिक विशेषज्ञ हैं और कहा जाता है कि उन्होंने आयकर के कई हाई लेवल मामलों की शानदार ढंग से जांच की है, जिसके कारण उन्हें ईडी प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था. अपनी नियुक्ति से पहले, मिश्रा दिल्ली में मुख्य आयकर आयुक्त के रूप में तैनात थे. उनके कार्यकाल के दौरान, कई हाई-प्रोफाइल राजनीतिक नेता, अक्सर विपक्षी दलों से, ईडी की जांच के दायरे में आए हैं. विपक्षी दल अक्सर सरकार पर उनके नेताओं को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते रहे हैं.