Chhattisgarh Assembly Elections 2023: छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इससे पहले आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ चुकीं हैं. आरक्षण के मामले को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि आरक्षण को लेकर भाजपा का डबल फेस सामने आ गया है. जब वे कर्नाटक में आरक्षण लागू कर सकते हैं तो छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं ? क्या दोनों राज्यों के राज्यपालों के कर्तव्य अलग-अलग हैं? या ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा वहां सत्ता पर काबिज है.
क्या गेम चेंजर साबित होगा आरक्षण का मामला
यहां चर्चा कर दें कि 19 सितंबर 2022 में हाईकोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को रद्द करने का काम किया था. जिसके बाद छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को मिल रहा 32 प्रतिशत आरक्षण घटकर 20 प्रतिशत हो गया जिससे प्रदेश के आदिवासी समाज में नाराजगी पैदा हो गयी. इस नाराजगी को दूर करने के लिए सरकार की ओर से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया और आदिवासी आरक्षण 32 प्रतिशत करने का विधेयक पारित कर दिया. इस विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा गया, लेकिन विवाद यहां थमा नहीं और प्रदेशभर में यह फैल गया.
राज्यपाल ने एक महीने से नहीं दी मंजूरी
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने आदिवासी ही नहीं ओबीसी और जनरल का भी आरक्षण बढ़ाने का काम किया. सरकार ने ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस का 4 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया जिसके बाद प्रदेश का कुल आरक्षण 76 प्रतिशत हो गया. वर्गवार आरक्षण पर नजर डालें तो, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, ओबीसी- 27, एसटी- 32 और ईडब्ल्यूएस को 4 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने किया. लेकिन सरकार के इस विधेयक को राज्यपाल ने एक महीने से मंजूरी नहीं दी है जिसके बाद भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गये हैं.
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चुनाव में गूंज सकता है आरक्षण का मुद्दा
विधानसभा में आरक्षण का मामला सुनाई दे सकता है. आरक्षण पर कांग्रेस और भाजपा की जुबानी जंग तेज हो चली है और दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. कांग्रेस 3 जनवरी को आरक्षण पर चुनावी साल का सबसे बड़ा प्रदर्शन करती नजर आयी और मंच से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरक्षण की लड़ाई लड़ने की घोषणा की.