कानून और न्याय राज्य मंत्री सत्य पाल सिंह बघेल ने सोमवार को एक ऐसा बयान दिया है जो चर्चा का केंद्र बना हुआ है. जी हां…उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि देश में बहुत कम सहिष्णु मुसलमान हैं, और यहां तक कि जो सहिष्णु दिखते हैं, वे सार्वजनिक जीवन में मुखौटा पहनकर रहते हैं. राज्यपाल और उपराष्ट्रपति के पद पर ये आसीन होते हैं.
मंत्री ने आरएसएस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है. इनकी संख्या हजारों में भी नहीं है. ये मास्क लगाकर सार्वजनिक जीवन व्यतीत करते हैं. आगे उनका रास्ता राज्यपाल और उपराष्ट्रपति या कुलपति के घर की ओर जाता है. लेकिन जब वे वहां से सेवानिवृत्त होते हैं, तो वे अपने मन की बात करने लगते हैं. बघेल ने संविधान के मूल ढांचे पर बहस का जिक्र करते हुए कहा कि देश का मूल ढांचा हिंदू राष्ट्र है.
कानून और न्याय राज्य मंत्री सत्य पाल सिंह बघेल महाराष्ट्र सदन में आयोजित वार्षिक नारद पत्रकार सम्मान समरोह में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे थे. यहां उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि लोग संविधान की मूल संरचना के बारे में बात करते रहते हैं. इस राष्ट्र की मूल संरचना 1192 से पहले अखंड भारत हिंदू राष्ट्र की है. उन्होंने कहा कि मैं (राम मनोहर) लोहिया जी के विचारों से कभी सहमत नहीं हूं कि गौरी और गजनवी लुटेरे थे जबकि अकबर, दारा शिकोह और रजिया सुल्तान हमारे पूर्वज थे. दिल्ली सल्तनत शरीयत के आधार पर चलती थी. यह एक कट्टर शासन था.
कानून और न्याय राज्य मंत्री सत्य पाल सिंह बघेल ने उक्त टिप्पणियां सूचना आयुक्त उदय माहुरकर द्वारा दिये गये एक भाषण के संदर्भ में कीं. माहुरकर ने कहा था कि भारत को इस्लामी कट्टरवाद से लड़ना चाहिए, इसे अकबर जैसे लोगों को गले लगाना चाहिए, जो सहिष्णु थे. महुरकर ने कहा था कि भारत में उदार और सहिष्णु मुसलमानों को गले लगाना चाहिए. बघेल ने अकबर की धार्मिक सहिष्णुता को महज रणनीति करार दिया.
बघेल ने कहा कि अकबर समझ गया था कि यह बहुसंख्यक हिंदुओं का देश है. वह जानता था कि वह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर अखंड भारत पर शासन नहीं कर सकता, लेकिन यह एक रणनीति थी. उन्होंने कहा कि यदि अकबर वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होता तो चित्तौड़गढ़ का नरसंहार न होता. दीन-ए-इलाही और सुलह-ए-कुल भी उसकी सोची समझी साजिश थी. यहीं नहीं नवरत्नों में हिंदुओं को शामिल करना भी एक रणनीति का हिस्सा था. उनका [जोधाबाई से] विवाह भी एक राजनीतिक विवाह था. जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके अंतिम शब्द थे ‘या अल्लाह!’