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हिमाचल प्रदेश के साथ क्यों नहीं हुआ गुजरात चुनाव ऐलान? जानिए क्या कहते हैं सीईए राजीव कुमार

कुछ विपक्षी नेताओं ने कहा कि गुजरात चुनावों की घोषणा बाद में करने से मौजूदा सरकार को आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले और अधिक कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने का मौका मिल सकता है. राजीव कुमार ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने परंपरा का पालन करते हुए वास्तव में इसे बदलाव किया.

नई दिल्ली : भारत के निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. हालांकि, उम्मीद यह की जा रही थी कि निर्वाचन आयोग हिमाचल प्रदेश के साथ ही गुजरात विधानसभा चुनाव की तिथियों की भी घोषणा कर देगा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान दिवाली के बाद किया जाएगा. सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर, निर्वाचन आयोग ने गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हिमाचल प्रदेश के साथ क्यों नहीं की? इस सवाल का जवाब खुद निर्वाचन आयोग ने ही दिया है.

2017 में शुरू की गई परंपरा का किया निर्वाह

निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश और गुजरात में एक साथ विधानसभा चुनाव की घोषणा नहीं करने के पीछे 2017 में अपनाई गई परंपरा का जिक्र किया है. आयोग ने कहा कि इस बार आदर्श आचार संहिता को अनावश्यक रूप से बढ़ाया नहीं गया है. निर्वाचन आयोग ने एक साथ दोनों राज्यों में चुनावों की घोषणा क्यों नहीं की, इस बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार ने कहा कि निर्वाचन आयोग वास्तव में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने में परंपरा का पालन करता है. आयोग ने पिछली परंपरा का निर्वाह किया है.

तो क्या 8 दिसंबर को ही होगी गुजरात चुनाव की मतगणना

बता दें कि वर्ष 2017 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए अलग-अलग तारीखों पर चुनाव की घोषणा की गई थी, लेकिन मतगणना 18 दिसंबर को एक साथ हुई थी. निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की. अधिसूचना 17 अक्टूबर को जारी की जाएगी और मतदान 12 नवंबर को होगा. मतों की गिनती 8 दिसंबर को होगी. यह पूछे जाने पर कि क्या गुजरात के लिए मतों की गिनती 8 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के साथ ही होगी, कुमार ने कहा कि जब हम गुजरात चुनाव की घोषणा करेंगे, तो हम आपको यह बताएंगे.

परंपरा का पालन करने के लिए बदलाव

तकनीकी तौर पर देखें, तो नवंबर-दिसंबर की अवधि में गुजरात चुनाव कराना अभी भी संभव है, ताकि मतों की गिनती एक ही दिन की जा सके. निर्वाचन आयोग ने 2017 में भी ऐसा ही किया था. कुछ विपक्षी नेताओं ने कहा कि गुजरात चुनावों की घोषणा बाद में करने से मौजूदा सरकार को आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले और अधिक कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने का मौका मिल सकता है. राजीव कुमार ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने परंपरा का पालन करते हुए वास्तव में इसे बदलाव किया.

2012 और 2017 में घटाई गई थी आचार संहिता की अवधि

राजीव कुमार ने कहा कि 2017 और 2012 में जब दोनों चुनाव साथ हुए थे, तब आदर्श आचार संहिता की अवधि 70 दिनों से घटाकर 57 दिन (2017) और 81 दिनों से घटाकर 57 दिन (2012) कर दी गई थी. साल 2017 के चुनाव की तुलना में परिणाम का इंतजार दो हफ्ते कम कर दिया गया है. सीईसी ने कहा कि चुनाव की तैयारी और संचालन बहुत विस्तृत कवायद है और इसमें विभिन्न कारकों, सभी हितधारकों के साथ परामर्श और अन्य कारकों को ध्यान में रखा जाता है.

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हिमाचल में मौसम का रखना पड़ता है ख्याल

राजीव कुमार ने कहा कि एक चुनाव के परिणाम का दूसरे पर प्रभाव जैसे मुद्दों पर भी विचार किया जाता है. उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में मौसम बहुत महत्वपूर्ण कारक है, खासकर ऊंचाई वाले इलाकों में. उन्होंने कहा कि हर चीज की पड़ताल करने के बाद, निर्वाचन आयोग ने उस परंपरा का पालन करने का फैसला किया, जिसका पालन पिछली बार किया गया था…एक ओर हमने परंपरा का पालन किया, वहीं उसे बदलाव भी किया, ताकि आदर्श आचार संहिता की अवधि अनावश्यक रूप से न बढ़े.

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