Photo: दो पैरों पर क्यों चलता है मनुष्य? चिम्पैंजी पर गौर करने से मिलता है इसका जवाब
विशेषज्ञों की मानें तो दो पैरों पर चलने का हमारा इतिहास 45 लाख वर्ष पुराना है. चिम्पैंजी के जीवन, रहने, खाने-पीने के तरीके, आपस में संवाद करने के तरीकों और भावनाओं के बारे में विज्ञान की बढ़ती समझ ने भले ही विशिष्ट रूप से मानव की समझ को धुंधला कर दिया हो, लेकिन हमारा तर्क समय की कसौटी पर खरा उतरा.
दो पैरों पर हमारे चलने के तरीके से अधिक स्पष्ट ऐसा कोई लक्षण नहीं है जो मनुष्यों को अन्य सभी स्तनधारियों से अलग करता हो. अनिवार्य रूप से दो पैरों पर चलना, लंबे समय से हमारी प्रजातियों का एक स्पष्ट गुण रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो दो पैरों पर चलने का हमारा इतिहास करीब 45 लाख वर्ष पुराना है. चिम्पैंजी के जीवन, रहने, खाने-पीने के तरीके, आपस में संवाद करने के तरीकों और भावनाओं के बारे में विज्ञान की बढ़ती समझ ने भले ही ‘‘विशिष्ट रूप से मानव’’ की समझ को धुंधला कर दिया हो, लेकिन हमारा तर्क समय की कसौटी पर खरा उतरा है.
हालांकि, ऐसा क्यों, कब और कहां विकसित हुआ, इस पर बहस जारी है. कई विकासवादी दृष्टिकोण प्रस्तावित किए गए हैं. अधिकांश मामलों में यह दृष्टिकोण दो पैरों पर चलने के अर्थशास्त्र और ऊर्जा के उपयोग से संबंधित है (दौ पैरों पर चलना, चार पैरों पर चलना की तुलना में कहीं अधिक कुशल है). अन्य सिद्धांत वस्तुओं को ले जाने के लाभों का वर्णन करते हैं. मनुष्यों का दो पैरों पर चलना, हाथों को दिलचस्प चीजें करने के लिए मुक्त करता है, जैसे कि उपकरण बनाना और उनका इस्तेमाल करना तथा पेड़ से लटके फलों तक पहुंचना. यह हमें ऊंची घास को देखने में भी सक्षम बनाता है.
लेकिन, लगभग सभी सिद्धांतों का सुझाव है कि दो पैरों पर चलना जमीन पर आवागमन करने के लिए अनुकूल है. यह स्पष्ट है कि प्रारंभिक स्तर पर दो पैरों पर चलना तब शुरू हुआ, जब सवाना घास के मैदान तेजी से कम हो गए क्योंकि 40 से 80 लाख वर्ष पहले वन क्षेत्र में कमी आई थी. दो पैरों पर चलने से यात्रा करना आसान हो गया. लेकिन, ऐसे सबूत भी हैं जो इस विचार का खंडन करते हैं. होमिनिन शरीर रचना, पैलियो-पारिस्थितिकी और कुछ वानर प्रजातियों के व्यवहार इस सिद्धांत को चुनौती पेश करते हैं.
उदाहरण के लिए, शुरुआती होमिनिन के पास पेड़ों में जीवन के अनुकूलन की एक लंबी सूची थी. इनमें लंबे अंग, घुमावदार कंधे और कलाई तथा घुमावदार उंगलियां शामिल थीं. ये सभी विशेषताएं पेड़ों पर रहने वाले हमारे मौजूदा प्राइमेट चचेरे भाइयों में मौजूद हैं. होमिनिन क्या खाते थे और उनके साथ रहने वाले जानवरों (बुशबक्स, कोलोबस बंदर) के अध्ययन से भी पता चलता है कि ये होमिनिन घास के मैदानों में नहीं रहते थे. इसके बजाय, वे मोज़ेक परिदृश्य में बसे हुए थे, जिसमें सबसे अधिक संभावना रिपेरियन जंगलों और वुडलैंड्स के मिश्रण की थी.
अंत में, एकमात्र गैर-अफ्रीकी महान वानर – ऑरंगुटान – के साक्ष्य से पता चलता है कि द्विपादवाद पेड़ों पर रहने के लिए एक अनुकूलन था. इसने वानरों को दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में लचीली शाखाओं पर बसने में मदद की. हमने तंजानिया में इस्सा घाटी में सवाना मोज़ेक में जंगली चिम्पैंजी के व्यवहार का अध्ययन किया.
इनपुट सोर्स: भाषा