बेरोजगारी श्रम के प्रति सम्मान की भावना नहीं होना, बेरोजगारी के मुख्य कारणों में से एक है. यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कही है. उन्होंने लोगों से सभी तरह के काम का सम्मान करने एवं नौकरियों के पीछे भागना बंद करने की अपील की और कहा कि किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं कहा जा सकता.
कारोबारी नगरी मुंबई के एक कार्यक्रम में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि लोग चाहें किसी भी तरह का काम करें, उसका सम्मान किया जाना चाहिए. श्रम के लिए सम्मान की कमी समाज में बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है. काम के लिए चाहे शारीरिक श्रम की आवश्यकता हो या बुद्धि की, चाहे इसके लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता हो या ‘सॉफ्ट’ कौशल की – सभी का सम्मान किया जाना चाहिए.
आगे मोहन भागवत ने कहा कि हर कोई नौकरी के पीछे भागता है. सरकारी नौकरियां केवल करीब 10 प्रतिशत हैं, जबकि अन्य नौकरियां लगभग 20 प्रतिशत हैं. दुनिया का कोई भी समाज 30 प्रतिशत से अधिक नौकरियां उत्पन्न नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि जिस काम में शारीरिक श्रम की जरूरत होती है, उसे अब भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है.
भागवत ने कहा कि जब कोई जीविकोपार्जन करता है, तो समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी बनती है. उन्होंने कहा कि जब हर काम समाज के लिए हो रहा है तो वह छोटा या बड़ा अथवा एक-दूसरे से अलग कैसे हो सकता है. ईश्वर की दृष्टि में हर कोई समान है और उसके सामने कोई जाति या सम्प्रदाय नहीं है.
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मोहन भागवत ने कहा कि देश में ऐसे बहुत से किसान हैं जो खेती से बहुत अच्छी आय अर्जित करने के बावजूद विवाह करने के लिए संघर्षरत हैं. उन्होंने कहा कि विश्व में स्थिति देश के ‘विश्वगुरु’ बनने के अनुकूल है. देश में कौशल की कोई कमी नहीं है, लेकिन हम दुनिया में प्रमुखता हासिल करने के बाद अन्य देशों की तरह नहीं होंगे.
संघ प्रमुख ने कहा कि इस्लामी आक्रमण से पूर्व अन्य हमलावरों ने हमारी जीवनशैली, हमारी परंपराओं एवं चिंतन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया. लेकिन उनका (मुस्लिम हमलावरों का) एक तर्क था: पहले, उन्होंने हमें अपनी ताकत के दम पर पराजित किया और फिर उन्होंने हमें मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दबाया. उन्होंने कहा कि समाज में व्याप्त अस्पृश्यता का संतों और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे जानेमान लोगों ने विरोध किया.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि अस्पृश्यता से परेशान होकर, डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ दिया लेकिन उन्होंने किसी अन्य धर्म को नहीं अपनाया और गौतम बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग को चुना. उनकी शिक्षाएं भारत की सोच में भी बहुत गहराई तक समाई हुई हैं.