मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. रह-रहकर राज्य से गोलीबारी, झड़प की खबरें आ रही हैं. हालांकि शांति बहाली के लिए सेना के जवान लगातार काम कर रहे हैं. मणिपुर हिंसा के बीच अब महिलाओं की भी एंट्री को गयी है. रविवार को कथित रूप से 1200 से 1500 महिलाओं के समूह ने सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उग्रवादी संगठन कांगलेई यावोल कान्ना लुप के 12 सदस्यों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया. महिलाओं ने कह दिया कि सेना यहां से एक भी शख्स को लेकर नहीं जा सकती है. मणिपुर में महिलाओं के आंदोलन का इतिहास रहा है. अंग्रेजों को भी यहां की महिलाएं घुटने टेकने पर मजबूर कर चुकी हैं.
महिलाओं ने किया जोरदार प्रदर्शन
कुकी और मैतेई समुदाय की महिला प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर उतरकर जोरदार आंदोलन किया. उन्होंने सड़क जाम कर दिया और जरूरी सामानों की सप्लाई भी बंद कर दी. मालूम हो मणिपुर हिंसा को लेकर महिलाएं दो बार दिल्ली में भी प्रदर्शन कर चुकी हैं.
मणिपुर में महिलाएं सभी क्षेत्र में आगे
मणिपुर में महिलाएं सभी क्षेत्रों में आगे रहती हैं. इंफाल में एक बाजार ऐसा है, जहां केवल महिलाएं ही नजर आती हैं. इमा कैथेल यानी माताओं की बाजार, यहां हर उम्र की महिलाएं बाजार में सामान बेचती नजर आती हैं. इस बाजार को दुनिया की सबसे बड़ी मार्केट का दर्जा प्राप्त है, जिसमें महिलाओं का हाथ रहता है.
मणिपुर में आंदोलन के केंद्र में महिलाएं
मणिपुर में अबतक जितने भी आंदोलन हुए हैं, उसके केंद्र में महिलाएं ही रही हैं. राज्य में पहला आंदोलन 1904 में हुआ था, जिसे नुपी लान आंदोलन का नाम दिया गया है. जिसमें अंग्रेजों ने पुरुषों के लिए 30 दिन के बाद 10 दिन फ्री में मजदूरी करने का नियम बनाया था. जिसके खिलाफ महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया. अंग्रेज अधिकारी मैक्सवेल के ऑफिस तक महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया. मजबूर होकर अंग्रेजों को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. उसी तरह 1907 में एक आंदोलन हुआ था, जिसमें मणिपुर से बाहर बड़ी मात्रा में चावल भेजने का महिलाओं ने विरोध किया था. करीब 4 हजार महिलाओं ने महाराज के इस आदेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मजबूर होकर महाराज को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. 1970 और 2004 में भी मणिपुर की महिलाओं ने जोरदार आंदोलन किया था.
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मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा
गौरतलब है कि मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच भड़की हिंसा में अब तक लगभग 120 लोगों की मौत हो चुकी है और तीन हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं. मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए छात्रों के एक संगठन द्वारा तीन मई को आहूत ‘आदिवासी एकता मार्च’ में हिंसा भड़क गई थी.