हिंदी को अपनानी होगी कृत्रिम मेधा : मुरलीधरन
उन्होंने कहा, न केवल हिंदी, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं को और व्यापक बनाना होगा, मौजूदा दौर की चुनौतियों को पहचानना होगा और उन्हें रोजगार से जोड़ना होगा, अन्यथा उनके पिछड़ जाने का खतरा है.
फिजी जैसे आयोजन न केवल हिंदी को सशक्त बनाने की दिशा में एक माध्यम बन कर उभरे है, बल्कि भाषा की जो मौजूदा चुनौतियां हैं, उनसे भी रूबरू कराते है. यह बात विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कही. उनका कहना है कि हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं को मौजूदा दौर में प्रासंगिक बनाये रखने की चुनौती है. ऐसे में हमें तकनीक से रिश्ता बनाना होगा. हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को कृत्रिम मेधा यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाना होगा, तभी वे प्रासंगिक बनी रह सकती हैं. यह समय की मांग भी है.
उन्होंने कहा, न केवल हिंदी, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं को और व्यापक बनाना होगा, मौजूदा दौर की चुनौतियों को पहचानना होगा और उन्हें रोजगार से जोड़ना होगा, अन्यथा उनके पिछड़ जाने का खतरा है. विदेश राज्यमंत्री ने कहा कि हिंदी का तकनीकी विकास और सहज उपयोग जरूरी है, तभी हिंदी वैश्विक रोजगार की भाषा बन पायेगी. वी मुरलीधरन ने कहा कि यही वजह है कि इस पूरे आयोजन का मुख्य विषय हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक रखा गया है.
वे कहते हैं, मोदी सरकार प्रवासी भारतीयों पर विशेष ध्यान दे रही है. प्रवासी भारतीय भारत और अन्य देशों के बीच एक सेतु का काम करते हैं. उनकी भूमिका की पुनर्व्याख्या की गयी है और इस दिशा में लगातार प्रयास जारी हैं. मोदी सरकार उनके हित और सम्मान का ध्यान रखती है. एक नीति के तहत कार्य किया गया है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी के भारतवंशियों के साथ आयोजनों में अनेक देशों के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री आना चाहते हैं. उन्होंने कहा, अब तो स्थिति यह है कि पांचवीं पीढ़ी तक के प्रवासी भारतवंशी भारत से नाता जोड़ रहे हैं, क्योंकि सरकार ने उन्हें एक गर्व का भाव दिया है.