आज विश्व साक्षरता दिवस है. यह दिन शिक्षा का महत्व बताता है. निरक्षरता को समाप्त करने का संकल्प याद दिलाता है़ इसी उद्देश्य के साथ 17 नवंबर 1965 को निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष आठ सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाया जायेगा़ 1966 में पहला विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया था़ इस खास दिन पर पूजा सिंह और लता रानी की यह रिपोर्ट ऐसे जुनूनी लोगों की कहानी बता रही है, जो समाज में शिक्षा का दीप जलाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. उनका सपना हर किसी को साक्षर बनाना है़ ताकि हमारे विकास का पहिया तेजी से घूमे. सभी अपने अधिकार के प्रति सजग बने.
रोट्रेक्ट ऑफ संत जेवियर कॉलेज : मां और बच्चों को साथ-साथ बना रहे साक्षर : बच्चों को शिक्षित करने में रोट्रेक्ट ऑफ संत जेवियर कॉलेज ग्रुप बड़ी भूमिका निभा रहा है़ इस ग्रुप ने कडरू के एक स्लम एरिया में बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है़ ग्रुप के शुभम सोनी ने कहा : हम लोगों ने कई जगहों पर देखा कि कैसे बच्चे पढ़ने-लिखने की उम्र में नशा से जुड़ रहे हैं. इस कारण ही बच्चों को साक्षर करने के उद्देश्य से कुछ जगहों का सर्वे किया. फिर बच्चों की मां को पढ़ने के लिए आग्रह किया. हमारा उद्देश्य है कि अगर अभिभावक शिक्षित होंगे, तो वे बच्चों को भी पढ़ा सकते हैं.
यही सोच कर कडरू के स्लम एरिया को चुना और कुछ महिलाओं को पढ़ाना शुरू किया़ खास बात है कि अब महिलाएं अपने बच्चों को भी साथ लाती हैं. अभी 40-50 महिलाएं पढ़ रही हैं. प्रत्येक शनिवार और रविवार को 10-10 युवाओं की टीम पढ़ाती है़ कोरोना काल में हम सभी उनके लिए बुक तैयार कर रहे हैं, जिससे उन्हें बेसिक जानकारी मिल सके.
वर्ष 2018-19 : झारखंड में 496 पंचायतें पूर्ण साक्षर रांची में 41 : झारखंड में 4398 पंचायतें हैं. 2018-19 के अनुसार 496 पंचायतों को पूरी तरह से साक्षर घोषित कर दिया गया है. साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत 95 फीसदी से अधिक संख्या में साक्षरता का मानक पूरा करने वाली पंचायत को पूर्ण साक्षर घोषित किया जाता है. हालांकि अभी यह अभियान बंद है. झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में सबसे अधिक 93 पंचायतें पूर्ण साक्षर हैं. वही हजारीबाग में 64, गिरिडीह में 61, देवघर में 51, पलामू में 50 और रांची में 41 पंचायतों को पूर्ण साक्षर घोषित किया गया है. हजारीबाग, कोडरमा और पश्चिमी सिंहभूम के एक-एक प्रखंड को पूर्ण साक्षर घोषित किया जा चुका है.
साक्षर भारत अभियान बंद होने के बाद एक नयी योजना प्रस्तावित की गयी है. इस योजना का नाम पढ़ना-लिखना अभियान. हालांकि यह अभियान कागजों पर ही सिमटा हुआ है. झारखंड में साक्षर योजना प्रस्तावित है. साक्षर योजना का प्रस्ताव स्टेट लिटरेसी मिशन अॉथोरिटी झारखंड ने तैयार किया है. यह प्रस्ताव कैबिनेट की स्वीकृति के लिए भेजा गया है. स्वीकृति मिलने के बाद प्रक्रिया शुरू होगी.
अच्छी बात़़ साक्षरता में बढ़ रहे झारखंड के कदम
झारखंड का औसत
2001 53.08%
2011 66.13%
राष्ट्रीय औसत
73 %
80.90 %
64.60 %
महिला
2001 38.87%
2011 55.42%
पुरुष
2001 67.30%
2011 76.84%
द वॉयस ऑफ चेंज : कोरोना काल में भी नहीं थमा इनका अभियान : द वॉयस ऑफ चेंज से जुड़े युवा शिक्षा का दीप जला रहे हैं. ग्रुप के टीम लीडर आयुष कहते हैं : पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण शिक्षित होना है, इसलिए छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया. जब मैं 11वीं कक्षा में था, तब कॉलेज गेट के बाहर बच्चों को भीख मांगते देखता, तो काफी तकलीफ होती़ हमेशा यही सोचता कि इन्हें भी शिक्षा पाने का अधिकार है. तभी निर्णय लिया कि ऐसे बच्चो को प्राथमिक शिक्षा के साथ जोड़ूंगा. फिर डॉ श्यामा प्रसाद मुखजी विवि में पढ़ाई के साथ द वॉयस ऑफ चेंज कंपेन की शुरुआत की़
डेढ़ वर्षों से बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के साथ जोड़ने की कोशिश हो रही है़ यह ग्रुप झारखंड के पांच इलाकों में बच्चों को पढ़ा रहा है. अभी 100 से भी अधिक युवा नि:स्वार्थ साक्षरता मुहिम में जुटे हुए हैं. रांची में पहाड़ी टोला, महादेव मंडा लोअर चुटिया, गेतलसूद , कांके में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. 450 बच्चों को अक्षर ज्ञान दे चुके हैं. यह अभियान कोरोना के बीच भी चल रहा है़
आशा संस्था : भट्ठा मजदूरों के बच्चों की जिंदगी में आशा की किरण : आशा संस्था 2009 से ईंट-भट्ठों पर काम करनेवाले मजदूरों के बच्चों को साक्षर बना रही है़ संस्था सचिव अजय कुमार जायसवाल बताते हैं कि 2009 से 2011 तक ईंट भट्टों के पास ही रहा, ताकि यहां काम करनेवाले जरूरतमंदों के बच्चों को शिक्षित किया जा सके़ शुरू में इन बच्चों को पढ़ाने में काफी परेशानी हुई़ इसलिए विभिन्न गतिविधियों से जोड़ना शुरू किया़ जैसे खेल, पेंटिंग, कहानी, खाना बनाना़ 2011 में झारखंड के तीन जिलों में इन बच्चों के लिए हॉस्टल बनाया गया़ अभी 200 बच्चे सेंटर में रह रहे हैं. 34 बच्चे मैट्रिक पास कर चुके हैं.
रेवा चक्रवर्ती : 72 वर्ष की उम्र में हर दिन तय करती हैं 30 किमी का सफर : रेवा चक्रवर्ती अपने खर्च पर गांव के बच्चों को साक्षर बनाने में जुटी हैं. इस मुहिम में बुंडू के पच्चा गांव में नौ वर्षों से जुटी हुई हैं. कभी जो बच्चे ए,बी,सी,डी बोलने में हिचकते थे, आज अंग्रेजी में बातचीत करते हैं. रेवा चक्रवर्ती का जुनून ऐसा है कि हर दिन 30 किमी का सफर तय करती हैं. वह कहती हैं कि इन बच्चों को पढ़ाकर आंतरिक खुशी मिलती हैं. इन बच्चों में सीखने की ललक होती है और ऐसे ही बच्चों से शिक्षा का स्तर ऊपर उठता है. आज इन बच्चों ने गांव के शिक्षा स्तर को सुधार दिया है. बच्चे अभी अंग्रेजी बोलते हैं. आदिवासी बच्चे संस्कृत का श्लोक बोलते हैं. शिक्षा के साथ संस्कार भी सीख रहे हैं.
उर्मिला देवी, नगड़ी : ग्रामीण महिलाओं के बीच जला रहीं शिक्षा का दीप : उर्मिला देवी नेट क्वालिफाइ हैं. इनका सपना पीएचडी करना है़, लेकिन ग्रामीण महिलाओं के आंगन में शिक्षा का दीप जले, इस मुहिम में भी जुटी हुई हैं. इनका यह प्रयास 13 वर्षों से जारी है़ उर्मिला बताती हैं : मेरी शादी 10वीं क्लास के बाद ही हो गयी़ शादी के बाद इंटर, ग्रेजुएशन, पीजी और बीएड किया़
नेट क्वालिफाइ की़ इस दौरान लगा कि शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है. फिर अपने इलाके की ग्रामीण महिलाओं को साक्षर बनाने का संकल्प लिया़ दो-तीन ग्रुप बनाकर इन महिलाओं को शिक्षित करने के साथ बैंक व अन्य छोटे-छोटे काम सिखाने लगी. अब तक 300 महिलाओं को जोड़ चुकी हैं. उर्मिला कहती हैं : प्रत्येक सप्ताह बुधवार को इन महिलाओं को एकत्रित करती हूं. खास बात यह है कि ये महिलाएं घरों में अपने बच्चों को भी पढ़ा रही हैं. इसमें करीब 20 से 50 वर्ष की महिलाएं हैं.
Post By : Pritish Sahay