Explainer: यशवंत सिन्हा ने भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र पर उठाए सवाल, द्रौपदी मुर्मू को कहा प्रतीकात्मक चेहरा

राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने अपने बयान में कहा कि यदि किसी समुदाय का कोई एक व्यक्ति ऊपर उठ जाता है, तो उससे पूरे समुदाय ऊपर नहीं उठता. उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल से जो राष्ट्रपति हैं, वे भी एक विशेष समुदाय से आते हैं. क्या उनके समुदाय की सभी समस्याओं का समाधान हो गया?

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2022 10:54 AM
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नई दिल्ली : राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने मौजूदा भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि मैं जिस भाजपा का हिस्सा था, उसमें आतंरिक लोकतंत्र था और आज की मौजूदा भाजपा में लोकतंत्र का अभाव है. उन्होंने केंद्र में सत्तारूढ़ दल पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंतर्गत भाजपा में आतंरिक लोकतंत्र की कमी बनी हुई है. इसके साथ ही, उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की प्रत्याशी और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू कोराजनीतिक का प्रतीकात्मक चेहरा करार दिया है.

मोदी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड पर भी उठाए सवाल

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में विदेश और वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल चुके यशवंत सिन्हा ने अनुसूचित जाति (एससी) और जनजाति (एसटी) मोदी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा राष्ट्रपति एक विशेष समुदाय से आते हैं. इसका अर्थ यह तो नहीं कि इससे उस समुदाय के लोगों को इसका फायदा मिला है.

राष्ट्रपति चुनाव पहचान नहीं, विचारधारा का मुकाबला है

राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने आगे कहा कि राष्ट्रपति चुनाव दो विचारधाराओं के बीच का है. उन्होंने कहा कि यह पहचान का नहीं, विचारधारा का मुकाबला है. उन्होंने कहा कि किसी समुदाय को कोई एक व्यक्ति ऊपर उठ जाता है, तो पूरा समुदाय ऊपर नहीं उठ जाता. पिछले पांच साल से जो राष्ट्रपति हैं, वे भी एक विशेष समुदाय से आते हैं. क्या उनके समुदाय की सभी समस्याओं का समाधान हो गया?

मौजूदा वक्त में पंगु हो गया है प्रजातंत्र

यशवंत सिन्हा ने कहा कि मेरे नाम की घोषणा द्रौपदी मुर्मू से पहले हुई थी. राष्ट्रपति पद इतनी गरिमा का पद होता है कि बेहतर यह होता कि सबकी सहमति वाला एक उम्मीदवार होता. सरकार ने सर्वोच्च संवैधानिक पद के चुनाव के लिए सर्वसम्मति बनाने का प्रयास नहीं किया. उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा समय में प्रजातंत्र पंगु हो गया है. इससे भी बड़ी बात है कि सरकार अपनी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि देश के बड़े-बड़े नेता ईडी के दफ्तर में पहुंच रहे हैं और 50 घंटे से अधिक पूछताछ हो रही है. सरकार की मंशा जांच करना नहीं है, बल्कि बेइज्जत करना है.

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