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Year Ender 2023: मोदी का करिश्मा बरकरार, विपक्ष ने बनाया गठबंधन, देखें राजनीति का सालभर का लेखा-जोखा

समय परिवर्तनशील है. जो आज है, कल इतिहास का हिस्सा होगा. यही सत्य है और प्रकृति का नियम भी. इसी के तहत यह वर्ष भी अपने अंत की ओर बढ़ रहा है और नववर्ष के आगमन की प्रतीक्षा है. अवसान की ओर अग्रसर 2023 में राजनीति से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में क्या कुछ घटित हुआ इस पर एक नजर डालना भी आवश्यक है.

भारतीय राजनीति की परिपाटी कुछ ऐसी है कि यहां लगभग हर वर्ष चुनावी मौसम बना रहता है. लोकसभा चुनाव से देश का सामना भले ही पांच वर्षों में एक बार होता हो, परंतु सभी राज्यों के चुनाव एक ही समय हों, ऐसी व्यवस्था अभी बनी नहीं है. सो हर वर्ष किसी न किसी राज्य को चुनाव में उतरना ही पड़ता है. इस वर्ष भी देश के अनेक राज्यों में विधानसभा के लिए मतदान हुआ और राज्यों ने अपने प्रतिनिधियों का चुनाव किया. कर्नाटक और तेलंगाना में जहां कांग्रेस ने जीत दर्ज कर सरकार बनायी वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में विजय दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी ने साबित किया कि राजनीति की बिसात पर उसका पलड़ा कितना भारी है. उत्तर भारत के इन तीनों राज्यों में हुए चुनाव में मोदी का करिश्मा अपने चरम पर दिखा. पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों के चुनाव परिणाम भी इस बार लीक से हटकर रहे. विपक्ष भी एकजुट हुआ और 2024 चुनाव के लिए उसने एक गठबंधन बनाया.

मोदी पर भरोसा और तीन राज्यों में भाजपा की प्रचंड जीत

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीति के खेल के सबसे आकर्षक चेहरे हैं. उनकी लोकप्रियता ने राजनीति के अनेक दिग्गजों को दूर कहीं पीछे छोड़ दिया है. नवंबर 2023 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुए चुनाव में मोदी का यही आकर्षण मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला. इन तीनों राज्यों में भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किये बिना ही चुनाव मैदान में उतरी थी. तीनों ही राज्यों में पूरा चुनाव अभियान प्रधानमंत्री मोदी के ही इर्द-गिर्द घूमता रहा. यह मोदी पर भरोसा ही था कि अपनी योजनाओं के कारण खासे लोकप्रिय व सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया. ‘एमपी के मन में मोदी है, मोदी के मन में एमपी है’ नारे के साथ मोदी ने राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण इस राज्य में अनेक रैलियां और रोड शोज किये और बड़ी जीत दर्ज की. छत्तीसगढ़ में भी भाजपा ने प्रयोग किया. वह मोदी के करिश्मे के भरोसे बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव मैदान में उतरी और विजयी होकर निकली. राजस्थान में तो कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर बतायी जा रही थी. यहां कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत ने कमान संभाली थी, जबकि भाजपा ने मुख्यमंत्री के लिए किसी चेहरे को आगे नहीं किया था. इस भरोसे के साथ कि ‘मोदी है तो जीत मुमकिन है’. यहां भी मोदी भरोसे पर खरे उतरे. नतीजा, चुनाव में विजय के रूप में सामने आया.

मध्य प्रदेश में फिर से भाजपा राज

हिंदी पट्टी का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में विधानसभा के 230 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा प्रचंड जीत दर्ज कर एक बार फिर सत्ता पर काबिज हुई. भाजपा जहां 48.55 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 163 सीटें जीतने में सफल रही, वहीं 40.40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कांग्रेस महज 66 सीटों पर सिमट गयी. भारत आदिवासी पार्टी को एक सीट मिली. पिछले चुनाव में दो सीट जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार अपना खाता भी नहीं खोल सकी. वर्ष 2018 की तुलना में इस बार भाजपा को 54 सीटें अधिक प्राप्त हुईं, जबकि कांग्रेस को 48 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. चुनावी पंडितों को जितना आश्चर्य राज्य में भाजपा की जीत से हुआ, उतना ही आश्चर्य नये चेहरे, मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने से हुआ. क्योंकि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान खासे लोकप्रिय रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में बदल गयी सरकार

‘मोदी की गारंटी’ नारे के साथ छत्तीसगढ़ में जिस चुनाव अभियान को भाजपा ने परवान चढ़ाया, उसने यहां की सरकार ही बदल दी. विधानसभा की 90 सीटों के लिए दो चरणों में हुए मतदान में जनता ने भाजपा पर भरपूर प्यार लुटाया. परिणाम, पिछले चुनाव में कांग्रेस से बुरी तरह मात खायी भाजपा को इस बार 54 सीटें हासिल हुईं. इस तरह भाजपा को 2018 की तुलना में 39 सीटों का लाभ हुआ. जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस 33 सीटों की हानि के साथ मात्र 35 सीटों पर सिमट गयी. एक सीट अन्य के खाते में गयी. चुनाव में भाजपा को जहां 46.27 प्रतिशत मत मिला, वहीं कांग्रेस को 42.23 प्रतिशत. सभी कयासों को धत्ता बताते हुए भाजपा ने नये चेहरे विष्णु देव साय को राज्य की कमान सौंपी.

राजस्थान में भाजपा ने लहराया परचम

राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों में से 199 के लिए पिछले महीने हुए चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और अपनी सरकार गंवानी पड़ी. भाजपा ने जहां 41.69 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 115 सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं 69 सीटों (39.53 प्रतिशत वोट शेयर) के साथ कांग्रेस बहुमत से काफी पीछे रह गयी. भारत आदिवासी पार्टी ने तीन, बसपा ने दो और अन्य ने दो सीटों पर जीत दर्ज की. चुनाव में आठ निर्दलीय उम्मीदवार भी जीते. पिछले चुनाव की तुलना में जहां भाजपा को 42 सीटों का लाभ हुआ, वहीं कांग्रेस को 30, बसपा को चार और अन्य को आठ सीटों की हानि उठानी पड़ी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले भजन लाल शर्मा राज्य के नये मुख्यमंत्री बनाये गये.

तेलंगाना में कांग्रेस पहली बार सत्तारूढ़

तेलंगाना के 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए इस वर्ष नवंबर में चुनाव हुआ. जिसमें कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को सत्ता से बाहर कर दिया. वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर नये राज्य बनने के समय से ही तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) यहां शासन कर रही थी. परंतु बीत नौ वर्षों की सत्ता विरोधी लहर बीआरएस की कल्याणकारी योजनाओं पर भारी पड़ी और उसे महज 39 सीटों से संतोष करना पड़ा. कांग्रेस ने 64 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा प्राप्त किया. इस तरह उसे पहली बार राज्य में सत्तारूढ़ होने का अवसर मिला. रेवंत रेड्डी राज्य के नये मुख्यमंत्री बने. चुनाव में भाजपा को जहां आठ सीटें मिलीं, वहीं एआईएमआईएम को सात व कांग्रेस की सहयोगी सीपीआई को एक सीट मिली. इस चुनाव में कांग्रेस को 45 सीटों का लाभ हुआ और भाजपा को सात सीटों का. बीआरस को 49 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.

कर्नाटक में कांग्रेस की ऐतिहासिक विजय

कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों के लिए इस वर्ष मई में चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. वर्ष 2018 के 80 सीटों के उलट इस बार कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और राज्य में अकेले दम सरकार बनाने में सफल रही. जबकि 2018 में 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही भाजपा महज 66 सीटों पर सिमट गयी. वहीं पिछले चुनाव में 37 सीटें जीत किंगमेकर बनने वाली जेडी (एस) महज 19 सीटें ही जीत सकी. अन्य दलों ने चार सीटों पर जीत दर्ज की. पिछले चुनाव की तुलना में इस वर्ष जहां कांग्रेस को 55 सीटों का लाभ हुआ, तो अन्य को एक सीट का. भाजपा को 38 और जेडी (एस) को 18 सीटों की हानि उठानी पड़ी. कांग्रेस के लिए यह चुनाव ऐतिहासिक रहा, क्योंकि 1989 चुनाव के बाद से पहली बार उसने न केवल इतनी बड़ी जीत दर्ज की, बल्कि सर्वाधिक वोट शेयर (43.88 प्रतिशत) भी प्राप्त किया. सिद्धारमैया राज्य के मुख्यमंत्री बने.

जी-20 शिखर सम्मेलन : विश्वगुरु बनने की ओर भारत अग्रसर

भारतीय कूटनीति के लिहाज से साल 2023 भाग्यशाली सितारा साबित हुआ और जी-20 देश की इस साल की कूटनीतिक उपलब्धि रही. अपनी जी 20 अध्यक्षता के माध्यम से भारत दुनिया के सबसे प्रभावशाली, शक्तिशाली और परिणामी देशों को मेज के चारों ओर इकट्ठा करने और दुनिया से संबंधित सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दों पर चर्चा करने, सहमत होने में सक्षम था. जी-20 नेताओं का 18वां शिखर सम्मेलन नौ और 10 सितंबर को नयी दिल्ली में आयोजित किया गया था. भारत ने जी20 के स्वरूप को बदल कर जी21 कर दिया. भारत ने विश्वगुरु की तरह दुनिया को राह दिखायी और सभी को साथ लेकर चला भी गया. जी20 समिट में ही भारत ने स्पाइस रूट का एलान कर दिया. भारत से यूरोप तक जिस ट्रेड रूट को बनाने की संकल्पना प्रधानमंत्री मोदी ने पेश की है, वह पश्चिम एशिया से होकर ही गुजरेगा.

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