वॉशिंगटन/ लंदन : चंद्रमा के अनछुए दक्षिणी ध्रुव पर रोवर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने का भारत का ऐतिहासिक मिशन भले ही अधूरा रह गया हो, लेकिन उसके इंजीनियरिंग कौशल और बढ़ती आकांक्षाओं ने अंतरिक्ष महाशक्ति बनने के उसके प्रयास को गति दी है. दुनिया भर की मीडिया ने शनिवार को यह टिप्पणी की. न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट, बीबीसी और द गार्जियन समेत अन्य कई प्रमुख विदेशी मीडिया संगठनों ने भारत के ऐतिहासिक चंद्रमा मिशन ‘चंद्रयान-2′ पर खबरें प्रकाशित एवं प्रसारित कीं.
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अमेरिकी पत्रिका ‘वायर्ड’ ने कहा कि चंद्रयान-2 कार्यक्रम भारत का अब तक का ‘सबसे महत्वाकांक्षी’ अंतरिक्ष मिशन था. पत्रिका ने कहा कि चंद्रमा की सतह तक ले जाये जा रहे विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर से संपर्क टूटना भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक बड़ा झटका होगा, लेकिन मिशन के लिए सबकुछ खत्म नहीं हुआ है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत की “इंजीनियरिंग शूरता और दशकों से किए जा रहे अंतरिक्ष कार्यक्रमों के विकास” की सराहना की.
खबर में कहा गया है कि भले ही भारत पहले प्रयास में लैंडिंग नहीं करा पाया हो, उसके प्रयास दिखाते हैं कि कैसे उसकी इंजीनियरिंग शूरता और अंतरिक्ष विकास कार्यक्रमों पर की गयी दशकों की. उसकी मेहनत उसकी वैश्विक आकांक्षाओं से जुड़ गयी है. इसमें कहा गया कि चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक विफलता चंद्रमा की सतह पर समग्र रूप से उतरने वाले देशों के विशिष्ट वर्ग में शामिल होने की देश की कोशिश में थोड़ी और देरी करेगा.
ब्रिटिश समाचारपत्र ‘द गार्जियन’ ने अपने लेख “इंडियाज मून लैंडिंग सफर्स लास्ट मिनट कम्यूनिकेशन लॉस” में मैथ्यू वीस के हवाले से कहा कि भारत वहां जा रहा है जहां अगले 20, 50, 100 सालों में संभवत: मनुष्य का भावी निवास होगा. वीस फ्रांस अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस के भारत में प्रतिनिधि हैं. वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी हैडलाइन “इंडियाज फर्स्ट अटेंप्ट टू लैंड ऑन द मून अपीयर्स टू हैव फेल्ड” में कहा कि यह मिशन “अत्याधिक राष्ट्रीय गौरव” का स्रोत है.
वहीं, अमेरिकी नेटवर्क सीएनएन ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि चंद्रमा के ध्रुवीय सतह पर भारत की ऐतिहासिक लैंडिंग शायद विफल हो गयी. बीबीसी ने लिखा कि मिशन को दुनिया भर की सुर्खियां मिलीं, क्योंकि इसकी लागत बहुत कम थी. चंद्रयान-2 में करीब 14.1 करोड़ डॉलर की लागत आयी है. उसने कहा कि उदाहरण के लिए एवेंजर्स: एंडगेम का बजट इसका दोगुना करीब 35.6 करोड़ डॉलर था, लेकिन यह पहली बार नहीं है कि इसरो को उसकी कम खर्ची के कारण तारीफ मिली हो. इसके 2014 के मंगल मिशन की लागत 7.4 करोड़ डॉलर थी, जो अमेरिकी मेवन ऑर्बिटर से लगभग 10 गुणा कम थी.
फ्रेंच दैनिक ल मोंद ने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की सफलता दर का उल्लेख किया. उसने अपनी खबर में लिखा कि अब तक जैसा कि वैज्ञानिक बताते हैं, ऐसे उद्देश्य वाले केवल 45 फीसदी मिशनों को ही सफलता मिली है.