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बिहार के राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लेने का रास्ता साफ, SC ने संविधान मसौदे पर BCCI से मांगे सुझाव

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के संविधान के मसौदे पर मंगलवारको राज्य क्रिकेट एसोसिसएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से सुझाव मांगे. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने न्यायालय के पहले के आदेश पर अमल नहीं करने के कारण […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के संविधान के मसौदे पर मंगलवारको राज्य क्रिकेट एसोसिसएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से सुझाव मांगे.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने न्यायालय के पहले के आदेश पर अमल नहीं करने के कारण बीसीसीआई के अधिकारियों के खिलाफ क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ बिहार की अवामनना याचिका का भी निबटारा कर दिया. क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ बिहार ने 20 अप्रैल को दायर याचिका में आरोप लगाया था कि रणजी ट्राफी सहित राष्ट्रीय स्तर के घरेलू टूर्नामेंट में बिहार को खेलने की अनुमति देने के आदेश पर अमल नहीं किया जा रहा है. इस बीच, पीठ ने बीसीसीआई, प्रशासकों की समिति और न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम के इस कथन पर विचार किया कि बिहार सितंबर से शुरू होनेवाले क्रिकेट के सत्र में राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में हिस्सा लेगा. ज्ञात हो कि पिछले 18 साल से बिहार किसी भी राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगित भाग नहीं ले पा रहा था.

पीठ ने कहा कि संविधान के मसौदे को वह मंजूर करेगा और यह बीसीसीआई के लिए बाध्यकारी होगा. हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 2016 का फैसला वापस लेने के लिए दायर याचिकाओं पर उसका आदेश संविधान के मसौदे की वैधता के सवाल पर भी गौर करेगा. न्यायालय ने राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से कहा कि वे संविधान के मसौदे पर अपने सुझाव न्याय मित्र गोपाल सुब्रमणियम को 11 मई को सौंपे. इस मामले में अब 11 मई को आगे सुनवाई होगी.

पीठ ने महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन को निर्देश दिया कि वह बुधवार को होनेवाले अपने चुनाव स्थगित कर दे. प्रशासकों की समिति ने पिछले साल अक्तूबर में बीसीसीआई के संविधान का मसौदा न्यायालय में पेश किया था जिसमें बोर्ड में सुधार के बारे में आरएम लोढ़ा समिति के सुझावों को शामिल किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के मसौदे में लोढ़ा समिति के सुझाव पूरी तरह शामिल किये जायें ताकि अंतिम निर्णय के लिए एक समग्र दस्तावेज उपलब्ध हो सके.

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