नयी दिल्ली : इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में कुलभूषण सुधीर जाधव की फांसी के मामले में भारत के हाथों करारी शिकस्त खाने के बाद बौखलाहट में पाकिस्तान भारत शासित कश्मीर में नये तरीके से आतंकवादी साम्राज्य कायम करने की फिराक में है. खुफिया एजेंसियों से मिल रहे इनपुट में इस बात की आशंका जाहिर की गयी है कि पाकिस्तान ICJ में शिकस्त खाने के बाद एक बार फिर कश्मीर में हिंसा और आतंक फैलाने के लिए अपनी पुरानी रणनीति पर लौट रहा है. बताया जा रहा है कि कश्मीर में स्थानीय आतंकवादियों और अलगाववादियों के बीच बढ़ते मतभेदों के बीच खुफिया एजेंसियों को यह शक हो रहा है कि सीमा पार बैठे आतंकवादी संगठनों के सरगना घाटी में किसी नये संगठन को खड़ा करने की तैयारी में जुटे हैं, जिनका हिज्बुल मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर जाकिर मूसा पर ध्यान केंद्रित होगा.
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मीडिया में खुफिया सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के अनुसार, बीते कुछ दिनों में आतंकी बुरहान वानी के उत्तराधिकारी जाकिर मूसा के बयान और कश्मीरी अलगाववादियों एवं यूनाइटेड जिहाद काउंसिल के चीफ सैयद सलाहुद्दीन की प्रतिक्रिया के साथ ही सोशल मीडिया में घूम रही तस्वीरें, विडियो-ऑडियो क्लिप्स इस बात का संकेत हैं कि कश्मीर में आतंक फैलाने वालों के बीच गहरे मतभेद उभर आये हैं.
हिंदी के अखबार नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, खुफिया सूत्रों ने बताया कि इन हालात में हो सकता है कि पाकिस्तान एक बार फिर कश्मीर के लिए 1990 के दशक वाली रणनीति अपना रहा हो, जब इकलौते आतंकी संगठन, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) की जगह कई नये आतंकी संगठनों ने ले ली थी. याद रहे कि 1993-94 तक कई आतंकी संगठन अस्तित्व में आ गये थे.
एक अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में एक नये आतंकी संगठन को प्रोत्साहित किए जाने की आशंका काफी मजबूत नजर आ रही है. मूसा अलगाववादियों, हिज्बुल और यहां तक कि पाकिस्तान के खिलाफ भी बोल रहा है. उसका फोकस कश्मीरी युवाओं पर है. वह कश्मीर की आजादी के लिए इस्लामिक उदय की वकालत कर रहा है.
3-4 मई को सोशल मीडिया पर 9 ऐसे नकाबपोश आतंकवादियों की तस्वीरें पोस्ट की गयी थीं, जिनके हाथ में आईएस के झंडे से मिलता-जुलता काले रंग का झंडा था. हालांकि, इस झंडे पर सर्फ इस्लामिक कलमा लिखा हुआ था. साथ ही उसपर एके-47 का निशान भी बना हुआ था. खुफिया एजेंसियों को लगता है कि ऐसा करने के पीछे स्थानीय आतंकवादियों की मंशा खुद को आईएस ब्रैंड से अलग दिखाने की है.
पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर सलाहुद्दीन ने अपने बयानों में इन तस्वीरों की निंदा की थी. उनका दावा था कि आईएस और उसके झंडे लहराने वालों से उनका कोई ताल्लुक नहीं है. उन्होंने कश्मीरी युवाओं से अपील की थी कि वे इससे प्रभावित न हों.
फिर 8 मई को अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक ने भी साथ आकर इस धारणा को खारिज करने का प्रयास किया कि कश्मीर का आंदोलन आईएस की राह पर जा रहा है. एजेंसियों को शक है कि अलगाववादी कश्मीरी में अपनी खत्म होती प्रासंगिकता से खासे चिंतित हैं और उन्हें डर है कि आतंकियों से उनके संबंध अगर खुलकर सामने आ जाते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय संस्थानों तक उनकी पहुंच पर असर पड़ सकता है.
इसके बाद 12 मई को मूसा ने एक ऑडियो मेसेज जारी किया, जिसमें उसने कहा कि अगर हुर्रियत नेता आतंकी संगठनों के इस्लाम के लिए ‘संघर्ष’ में हस्तक्षेप करेंगे, तो उनके सिर काटकर श्रीनगर के लाल चौक पर टांग दिए जायेंगे. उसने दावा किया कि यह आंदोलन पूरी तरह इस्लामिक है जो शरिया और शहादत पर आधारित है.
हिज्बुल ने मूसा के बयान से खुद को अलग करने में देर नहीं की. ऐसे में 15 मई को मूसा ने एक और ऑडियो मेसेज जारी किया, जिसमें उसने खुद को हिज्बुल से खुद को अलग करने का ऐलान किया. उसने अल-कायदा के प्रति सम्मान जताया, पर आईएस का कोई जिक्र नहीं किया. उसने उन लोगों की भी आलोचना की जो ‘आजादी की लड़ाई’ के लिए पाकिस्तान से मदद चाहते हैं.
एक खुफिया सूत्र ने बताया कि भारत को शक है कि पाकिस्तान की एजेंसियां कश्मीर के संघर्ष को अब ‘आजादी के लिए इस्लामिक उदय’ की तरह पेश करना चाहती हैं. बुरहान वानी की हत्या के 10 महीने बाद अब पाकिस्तान का फोकस अब मूसा पर है.