पुण्यतिथि विशेष तीस जनवरी मार्ग : एक शोक संतप्त सड़क
30 January Road : गांधी जी ने अपने जीवन के 144 दिन यहीं बिताये थे. तेरह से 18 जनवरी तक उपवास रखने के कारण वे बहुत कमजोर हो गये थे. उन्होंने यह उपवास दिल्ली में दंगों को रुकवाने के लिए रखा था, जिसमें वे सफल रहे थे. वे मारे जाने से तीन दिन पहले 27 जनवरी, 1948 को अंतिम बार एक खास मिशन के लिए निकले थे.
30 January Road : आप नयी दिल्ली के दिल स्थित तीस जनवरी मार्ग तक जनपथ, अकबर रोड या किसी अन्य रास्ते से पहुंच सकते हैं. यहां पहुंचते ही एक अजीब-सी उदासी आपको घेर लेती है. जब तीस जनवरी मार्ग के आस-पास की सड़कों पर भारी यातायात होता है, तब भी यहां दिन में लगभग सन्नाटा पसरा रहता है. ऐसा लगता है जैसे शोक यहां का स्थायी भाव बन गया है. यहां लगे नीम, अर्जुन और जामुन के पुराने पेड़ भी उदास खड़े नजर आते हैं, मानो वे अब तक 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी के हत्या के शोक से उबर नहीं पाये हैं.ये पेड़ उस मनहूस शाम 5:17 बजे के गवाह हैं, जब 79 वर्षीय महात्मा गांधी प्रार्थना सभा के लिए बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति) जा रहे थे और नाथूराम गोडसे ने उन पर गोलियां चला दी थीं.
गांधी जी ने अपने जीवन के 144 दिन यहीं बिताये थे. तेरह से 18 जनवरी तक उपवास रखने के कारण वे बहुत कमजोर हो गये थे. उन्होंने यह उपवास दिल्ली में दंगों को रुकवाने के लिए रखा था, जिसमें वे सफल रहे थे. वे मारे जाने से तीन दिन पहले 27 जनवरी, 1948 को अंतिम बार एक खास मिशन के लिए निकले थे. गांधी जी सुबह साढ़े आठ बजे के आसपास बिड़ला हाउस से अपने कुछ सहयोगियों के साथ महरौली की तरफ निकले. वे महरौली में कुतुबउद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह जा रहे थे. वे इससे पहले अपनी 1915 की पहली दिल्ली यात्रा के समय महरौली में कुतुब मीनार को देखने गये थे. दरगाह इसलिए जा रहे थे ताकि देख सकें कि दंगाइयों ने दरगाह को कितना नुकसान पहुंचाया है.
दरअसल दिल्ली में देश विभाजन के बाद भड़के दंगों में दरगाह के बाहरी हिस्से को दंगाइयों ने क्षति पहुंचायी थी. इस घटना से बापू दुखी थे. तब तक महरौली पूरी तरह ग्रामीण इलाका था. वे दरगाह का जायजा लेकर वापस बिड़ला हाउस लौटे. अब यहां से उनकी शव यात्रा ही निकली थी. तीस जनवरी मार्ग के पेड़ों ने 31 जनवरी को बापू की शवयात्रा को यहां से राजघाट जाते हुए भी देखा था. उस जाड़े की सुबह, हजारों-लाखों लोग यहां रो रहे थे. गांधी जी में कुछ तो ऐसा था कि उनकी मृत्यु पर सैकड़ों देशवासियों ने अपने सिर मुंडवा लिये थे. तब इस सड़क का नाम अलबुर्कर रोड था. वर्ष 1947 में देश के स्वतंत्र होने के बाद, अलबुर्कर रोड का नाम बदलकर तीस जनवरी मार्ग कर दिया गया. यह राजधानी की पहली सड़क थी जिसका नाम बदला गया थे. अफांसो अलबुर्कर (1453-1515) गोवा के गवर्नर थे. यह सड़क उन्हीं के नाम पर थी. उनका जन्म पुर्तगाल में हुआ था और उनकी मृत्यु गोवा में हुई थी. इससे पता चलता है कि ब्रिटिश सरकार ने नयी दिल्ली की कुछ सड़कों के नाम कुछ गैर-ब्रिटिश और गैर-भारतीय हस्तियों के नाम पर भी रखे थे.
तीस जनवरी मार्ग पर गांधी जी से प्रेरित होने वाले लोग आज भी उदास या नम आंखों से यहां से जाते हैं. ‘गांधी’ फिल्म में गांधी का किरदार निभाने वाले बेन किंग्सले, जब पहली बार गांधी स्मृति में उस जगह पर गये जहां बापू को गोली मारी गयी थी, तो वे अपने आंसू नहीं रोक पाये थे. एक बार मेरिडियन होटल में खादी का कुर्ता-पायजामा पहने किंग्सले ने इस लेखक को बताया कि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनकी आंखों से गांधी स्मति में आंसू क्यों बह रहे थे. अमेरिका में अश्वेतों के अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष करने वाले मार्टिन लूथर किंग 1959 में अपनी पत्नी कोरेटा किंग के साथ राजघाट और गांधी स्मृति गये थे. दोनों ही स्थानों पर पहुंचते ही उनकी आंखें नम हो गयी थीं.
बाद में पत्रकारों ने किंग से पूछा कि ‘आप दोनों की आंखों से आंसुओं की धारा क्यों बह रही थी?’ मार्टिन लूथर किंग ने जवाब दिया, ‘गांधी उनके मार्गदर्शक हैं. वे गांधी के दिखाये सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही अमेरिका में दबे-कुचले अश्वेतों के लिए संघर्ष कर पा रहे हैं. वे दूसरे देशों में एक पर्यटक के रूप में जाते हैं, पर भारत को गांधी की वजह से तीर्थ स्थल मानते हैं.’ आप कभी गांधी स्मृति के बाहर खड़े होकर देखें. वहां दुनियाभर से लोग आते हैं. जब वे वहां से निकलें, तो उनके चेहरे के भाव देखें. उनके चेहरों पर उदासी छा जाती है. वहां से निकलते समय, हर कोई एक बार यही सोचता है कि ‘अरे, इस देश ने गांधी को मार दिया था.’ आपको एक अपराध बोध घेर लेता है.
आज तीस जनवरी है. तीस जनवरी मार्ग पर सामान्य से अधिक हलचल है. देश के आम-खास लोग गांधी स्मृति में आने वाले हैं. यहां पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन भी होगा. इसकी शुरुआत कात्सू सान करेंगी. वह जापानी बुद्ध प्रार्थना करेंगी. वह लगभग आधी सदी से यहां पर दो अक्तूबर और 30 जनवरी को होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में भाग ले रही हैं. मूल रूप से जापानी कात्सू सान अब भारतीय हो चुकी हैं. वे गांधी और बुद्ध को अधिक करीब से जानने के लिए भारत आयीं तो यहां पर ही बस गयीं. अट्ठासी वर्ष की कात्सु के साथ हुमायूं रोड के जूदेह हयम सिनेगॉग के रब्बी एजिकिल आइजेक मलेकर, ब्रदर जॉर्ज सोलोमन वगैरह भी सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लेंगे. ये सब यहां लगातार आते हैं. तीस जनवरी मार्ग से बाहर निकलते ही ये सब दिल्ली के शोरगुल में खो जाते हैं.