संविदा पर नियुक्त कर्मियों को आये दिन धमकाया जाता है. नौकरी से निकालने का अल्टीमेटम दिया जाता है. एक सरकारी कर्मी अपनी मर्जी से दफ्तर आये और जाये, कोई फर्क नहीं पड़ता, जबकि संविदा पर नियुक्त एक कर्मी को हमेशा भय बना रहता है कि समय पर काम नहीं किया, तो निकाल दिया जाऊंगा.
उसे किसी सरकारी पदाधिकारी या जनप्रतिनिधि की शिकायत पर निकाल दिया जाता है. समझ में नहीं आता कि सरकार संविदा पर नियुक्ति करती ही क्यों है? अगर यह कहा जाये कि सरकारी कर्मी अपनी नाकामी का ठीकरा संविदा कर्मी के माथे फोड़ने में तनिक भी देर नहीं करते, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. सरकारी पदाधिकारी को चाहिए कि संविदाकर्मी को हतोत्साहित न कर, प्रोत्साहित करे.
खालिक अंसारी, कैरो, लोहरदगा