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किसानों की दुर्दशा देख रोना

आजादी के लगभग सात दशक बाद भी भारतीय किसान की दुर्दशा देखकर रोना आता है. आज अधिकतर किसान न केवल रोने को विवश हैं, बल्कि आत्महत्या तक कर रहे हैं. अब तक लगभग तीन लाख किसानों द्वारा आत्महत्या किया जाना दर्शाता है कि आज भी उनकी क्या स्थिति है. अधिकतर सरकारों ने खेती-किसानी को एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 12, 2017 6:22 AM
आजादी के लगभग सात दशक बाद भी भारतीय किसान की दुर्दशा देखकर रोना आता है. आज अधिकतर किसान न केवल रोने को विवश हैं, बल्कि आत्महत्या तक कर रहे हैं. अब तक लगभग तीन लाख किसानों द्वारा आत्महत्या किया जाना दर्शाता है कि आज भी उनकी क्या स्थिति है. अधिकतर सरकारों ने खेती-किसानी को एक घाटे का उद्योग समझा है.
एक किसान का बेटा होने के कारण कह सकता हूं कि अब कृषि कार्य फायदेमंद नहीं रहा. प्रेमचंद ने कई दशक पूर्व ही यह साबित कर दिया था कि कैसे होरी किसान से मजदूर बन बैठता है. आज देश के अधिकतर भागों में किसान आंदोलनरत हैं. यह किसी एक दिन का परिणाम नहीं है. समाज और सरकार को चाहिए कि उन्हें मेहनत का वाजिब मूल्य और सम्मान मिले क्योंकि किसान ही वास्तविक अन्नदाता है.
जयदेव कुशवाहा, इ-मेल से

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