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कंप्यूटर पर आवारागर्दी

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार उन्होंने कंप्यूटर पर घंटा भर तीन-पत्ती गेम खेला. फिर दो घंटे शराब के नये ब्रांडों की विस्तृत समीक्षा पढ़ी. कुल पांच घंटे वह कंप्यूटर पर कर्मरत रहे. कंप्यूटर को आम तौर पर कामकाजी और ज्ञानी मशीन माना जाता है. कामकाज क्या करता है और ज्ञान किस किस्म का बांटता है, यह […]

आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
उन्होंने कंप्यूटर पर घंटा भर तीन-पत्ती गेम खेला. फिर दो घंटे शराब के नये ब्रांडों की विस्तृत समीक्षा पढ़ी. कुल पांच घंटे वह कंप्यूटर पर कर्मरत रहे. कंप्यूटर को आम तौर पर कामकाजी और ज्ञानी मशीन माना जाता है.
कामकाज क्या करता है और ज्ञान किस किस्म का बांटता है, यह सवाल अलग है. वैसे ज्ञान तो ज्ञान है चाहे किसी भी क्षेत्र का हो. दर्शन के परम स्तर पर ज्ञान-ज्ञान का भेद मिट जाता है. कंप्यूटर इस तरह से दार्शनिक बना देता है, सन्नी लियोनी की वेबसाइट वाली फोटो और इंडियन स्पेस रिसर्च आॅर्गनाइजेशन की वेबसाइट समान भाव से खोलता है.
कंप्यूटर सिर्फ कामकाजी और ज्ञानी मशीन ही नहीं, दार्शनिक मशीन भी है. एक मां मिलीं परेशान, बोलीं- बेटा नौवीं क्लास में है- दिनभर कंप्यूटर पर बैठ कर प्रोजेक्ट बनाता रहता है. फिर भी फेल हो जाता है.
बेटा कंप्यूटर पर बैठ कर प्रोजेक्ट बनाता है, क्या बनाता है, मम्मी को बनाता है, टीचर को बनाता है, कैसे बनाता है, यह अलग शोध का विषय है.
कंप्यूटर मांओं को तक बेवकूफ बना रहा है. कंप्यूटर तीन पत्ती खिला रहा है, पहले यह काम मुहल्लों के ठलुए अंकल लोग करते थे. ठलुए अंकल जब यह काम करते थे, तो समाज के खासे उलाहने मिलते थे उन्हें.
अब कंप्यूटर ठलुआ अंकल हो लिया है. फिर भी यह नहीं भूलना चाहिए कि कंप्यूटर कामकाजी और ज्ञान बांटने की मशीन है. तीन पत्ती खेलावक ठलुआ अंकल के यहां जाकर थोड़ी नेटवर्किंग हो जाती थी. उदीयमान जेबकट, उदीयमान रहजन से मिल लेता था, बाद के सालों में दोनों मंत्रिमंडल में सहयोगी हो जाते थे. कंप्यूटर अकेले को ही तीन पत्ती खिलाता है, कोई नेटवर्किंग नहीं होती. कंप्यूटर ये सारे काम ठीक नहीं कर रहा है.
कंप्यूटर आवारागर्दी का व्यवस्थित टूर कराता है. कंप्यूटर-पूर्व युग की आवारागर्दी में बंदा इतनी व्यवस्थित तरीके से आवारा नहीं हो सकता था. पर, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कंप्यूटर कामकाजी और ज्ञान बांटनेवाली मशीन है.
पापा बेटे को डपटते हैं कि कंप्यूटर पर कुछ लिखा-पढ़ा कर, स्काॅलरशिप, फैलोशिप देखा कर. बाद में पापा कई ऐसी रोचक वेबसाइटों के भ्रमण पर निकल लेते हैं, जिन्हें बाद में देख कर कोई यह भी कह सकता है कि हाय कैसी-कैसी वेबसाइटें देखता है इनका बेटा.
वक्त अद्भुत है- बाप और बेटे की वेबसाइटों की पसंद एक सी हो रही है. पर, किसी भी हाल में हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि कंप्यूटर कामकाजी और ज्ञान बांटनेवाली मशीन है.

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