कौन बनेगा राष्ट्रपति

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in राष्ट्रपति चुनाव का बिगुल बज गया है. इसके लिए 17 जुलाई को मतदान होगा और 20 जुलाई को देश को नया राष्ट्रपति मिल जायेगा. राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम को लेकर भारी अटकलों का दौर चल रहा है. मीडिया में आये दिन नये नाम सामने आ रहे हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 12, 2017 6:27 AM
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
राष्ट्रपति चुनाव का बिगुल बज गया है. इसके लिए 17 जुलाई को मतदान होगा और 20 जुलाई को देश को नया राष्ट्रपति मिल जायेगा. राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम को लेकर भारी अटकलों का दौर चल रहा है. मीडिया में आये दिन नये नाम सामने आ रहे हैं. उम्मीद की जा रही है कि कुछ ही दिनों में एनडीए और विपक्ष के उम्मीदवारों के नाम सबके सामने आ जायेंगे. वैसे तो राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया बेहद नीरस होती है, लेकिन राजनीतिक गहमागहमी ने इसे दिलचस्प बना दिया है. स्थिति यह है कि अब हर अहम मुलाकात को राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में देखा जा रहा है. 29 मई को भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से नागपुर में मुलाकात की थी. उसके बाद इन चर्चाओं को बल मिला कि उन्होंने नये राष्ट्रपति के बारे में चर्चा की है.
विपक्ष इसे एकता की पहल के रूप में भी देख रहा है. विपक्ष की ओर से यह पहल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की थी. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर विपक्ष की एकजुटता का सुझाव दिया था. इसके बाद सक्रिय हुईं सोनिया गांधी ने विपक्षी नेताओं को भोज पर आमंत्रित किया. नीतीश कुमार ने प्रणव मुखर्जी को दोबारा उम्मीदवार बनाने की बात भी कही. लेकिन, वह उत्साहित नहीं लगते. यही वजह है कि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने विदाई प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. उनके करीबी अधिकारी अपने मूल कैडर में वापस जाने लगे हैं. राष्ट्रपति भवन में मीडिया का कामकाज संभाल रहे वेणु राजमणि वापस विदेश सेवा में चले गये हैं. उन्हें नीदरलैंड में भारत का राजदूत बनाया गया है.
विपक्ष के लिए यह चुनाव सांकेतिक महत्व का है. माना जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में भले ही विपक्ष हार जाये, लेकिन इससे 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी एकता का सूत्रपात हो सकता है. मौजूदा स्थिति में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए उम्मीदवार की जीत तय लग रही है.
यूपी विधानसभा चुनावों में भारी जीत ने भाजपा की स्थिति मजबूत कर दी है. इसके अलावा जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, तेलगांना में तेलंगाना राष्ट्र समिति और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के दोनों धड़ों के समर्थन ने एनडीए की स्थिति खासा मजबूत कर दी है. भाजपा नेताओं को तो ओड़िशा के नवीन पटनायक की बीजेडी से भी समर्थन की उम्मीद है, जबकि राज्य में दोनों दल आमने-सामने हैं.
राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार का बहुत महत्व है. कई बार गठबंधन के दल उम्मीदवार के हिसाब से अपना रुख तय करते हैं. ऐसे उदाहरण हैं, जब सहयोगी दलों ने उम्मीदवार के कारण अपना रुख बदला है. 2007 में भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भैंरोसिंह शेखावत थे और कांग्रेस की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल थीं. भाजपा की सहयोगी शिव सेना ने महाराष्ट्र से संबंध होने के कारण भैंरोसिंह शेखावत की बजाये प्रतिभा पाटिल के समर्थन का फैसला किया.
हालांकि शिव सेना और अकाली दल से भाजपा के रिश्ते तल्ख चल रहे हैं, लेकिन लगता नहीं कि वे बिना किसी मजबूत वजह के भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ मतदान करेंगे. सबकी निगाहें भाजपा उम्मीदवार पर हैं. यह तो स्पष्ट है कि उम्मीदवार के चयन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अहम भूमिका होगी. हालांकि उम्मीदवार के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का नाम भी लिया जा रहा है. लेकिन, बाबरी मसजिद मामले में आरोप तय होने के बाद इनकी दावेदारी को लेकर संदेह है.
भाजपा की ओर से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, केंद्रीय सूचना प्रसारण और शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत का नाम भी चर्चा में है. झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम भी जोर-शोर से लिया जा रहा है. मूलरूप से ओड़िशा की और आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा समाज के वंचित तबकों की सकारात्मक संदेश दे सकती है. कुछ समय बाद गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक और फिर ओड़िशा में भी विधानसभा चुनाव होने हैं और इनमें से कुछेक राज्यों में आदिवासी मतदाता अच्छी खासी संख्या में हैं. कांग्रेस के लिए द्रौपदी मुर्मू का विरोध करना राजनीतिक रूप से काफी मुश्किल होगा.
बीजेडी के सामने तो समर्थन के अलावा कोई विकल्प ही नहीं होगा. लेकिन, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौंकाने वाले फैसलों में यकीन करते हैं, इसलिए उम्मीदवार को लेकर दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता.
लगता यही है कि भाजपा के उम्मीदवार के बाद ही कांग्रेस की ओर से विपक्षी उम्मीदवार की घोषणा की जायेगी. हालांकि ममता बनर्जी का सुझाव था कि सरकार सभी दलों को स्वीकार्य हो सकने वाले किसी नेता का नाम प्रस्तावित करे. लेकिन न तो भाजपा की इस प्रस्ताव में कोई दिलचस्पी है और न ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इससे इत्तेफाक रखते हैं.
अभी तक विपक्षी उम्मीदवार के रूप में गोपाल गांधी का नाम ही सामने आया है. विपक्ष में कांग्रेस, जनता दल-यू, आरजेडी, सपा, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और वामपंथी दल मजबूती से खड़े हैं. हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि वह विपक्षी दलों से भी एनडीए उम्मीदवार के समर्थन के लिए बात करेंगे, लेकिन उन्होंने आम सहमति से उम्मीदवार की बात नहीं कही.
वैसे तो इस चुनावों से उलटफेर की कोई उम्मीद नहीं है. लेकिन 1969 में ऐसा हो चुका है. जाकिर हुसैन के निधन के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका में थे. इंदिरा गांधी का सिंडिकेट के वर्चस्व वाली कांग्रेस कार्यसमिति से संघर्ष चल रहा था.
कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए घोषित कर दिया. इंदिरा गांधी ने अपने दल के सांसदों और विधायकों से अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील कर दी. लगभग साफ हो गया था कि वह निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरी को जितवाना चाहती हैं. इंदिरा गांधी की अपील की वजह से वह नीलम संजीव रेड्डी को बेहद कम अंतर से हराने में सफल रहे थे.

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