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चुनावी माहौल में भगवान की याद

महान विचारक मार्क्‍स ने कहा था, ‘मुनाफा जितना बढ़ता जाता है, मुनाफा उतना ही दुस्साहसी होता जाता है और मुनाफा जब अत्यधिक बढ़ जाता है तो एक समय ऐसा आता है कि मुनाफा अपने मालिक की हत्या करने से भी नही हिचकता.’ मार्क्‍स की इन बातों को भाजपा के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री […]

महान विचारक मार्क्‍स ने कहा था, ‘मुनाफा जितना बढ़ता जाता है, मुनाफा उतना ही दुस्साहसी होता जाता है और मुनाफा जब अत्यधिक बढ़ जाता है तो एक समय ऐसा आता है कि मुनाफा अपने मालिक की हत्या करने से भी नही हिचकता.’ मार्क्‍स की इन बातों को भाजपा के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हर्षवर्धन की टिप्पणी ‘मोदी रथ को भगवान भी नहीं रोक सकता’ ने साबित कर दिया.

जिस भगवान के नाम पर भाजपा ने दो से 184 सीटों तक का सफर तय किया, आज सत्ता के मद में उसी भगवान को एक तरफ ये चुनौती दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी अपने हरेक भाषण में भगवान का गुणगान करते हैं. घर से निकलने के पहले भगवान का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते.

रथ निकाल कर हिंदुत्व की रक्षा की बात करने वाले, बाबरी मसजिद ध्वस्त कर श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की बात करने वाले, अयोध्या तो झांकी है, मथुरा काशी बाकी हैं का नारा लगाने वाले भाजपाई आखिर आज हर्षवर्धन द्वारा भगवान को चुनौती पर चुप क्यों हैं? कहीं कोई हलचल क्यों नही है? क्या चुनाव को देख कर यह खामोशी है?

इन्हें लगता है कि इस मामले को उठाने से वोटों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. अगर ऐसा है तो यह खतरनाक है और देश के 80 करोड़ से भी ज्यादा हिंदुओं की श्रद्धा और आस्था से खिलवाड़ है. इससे एक बात और सिद्ध होती है कि इन वोटबाजों को भगवान से कोई लेना-देना नहीं है. सिर्फ चुनाव के समय इनको भगवान की याद आती है और भगवान के नाम पर वोट लेकर सत्ता सुख भोगते हैं और सत्ता मिलने के बाद फिर भगवान को भूल जाते हैं. 1992 से लेकर अब तक हर चुनाव में इन राजनीतिज्ञों को भगवान जरूर याद आते हैं.

गणोश सीटू, ई-मेल से

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