सबसे बड़ा लोकतंत्र बने रहें हम!

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री चीन के साथ-साथ भारत को भी समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा. जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है, जिससे लोगों को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. लगभग 70 करोड़ लोग अपने नेता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 25, 2014 5:58 AM

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

अर्थशास्त्री

चीन के साथ-साथ भारत को भी समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा. जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है, जिससे लोगों को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें.

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. लगभग 70 करोड़ लोग अपने नेता को शीघ्र चुनेंगे. हमें जतन करके अपनी इस श्रेष्ठ स्थिति को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए. जनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयास के स्थान पर सादगी से जीवनयापन करनेवाले मनुष्यों को पैदा करना चाहिए. आर्थिक विकास की दृष्टि से भी बढ़ती जनसंख्या लाभदायक दिखती है. मेरीलेंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जुलियन साइमन बताते हैं कि हांगकांग, सिंगापुर, हालैंड एवं जापान जैसे जनसंख्या-सघन देशों की आर्थिक विकास दर अधिक है, जबकि जनसंख्या न्यून अफ्रीका में विकास दर धीमी है. सिंगापुर के प्रधानमंत्री के अनुसार देश की जनता को अधिक संख्या में संतान उत्पन्न करने को प्रेरित करना देश के सामने बड़ी चुनौती है. इस आशय से उनकी सरकार ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, हाउसिंग अलाउंस तथा मैटर्निटी लीव में सुविधाएं बढ़ायी है.

दक्षिणी कोरिया ने दूसरे देशों से इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया है. इंग्लैंड के सांसद केविन रूड ने कहा है कि द्वितीय विश्व युद्घ के बाद यदि इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया होता, तो इंग्लैंड की विकास दर न्यून रहती. स्पष्ट है कि जनसंख्या का आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मनुष्य ही उत्पादन करते हैं. जितने मनुष्य होंगे, उतना उत्पादन हो सकेगा और आर्थिक विकास दर बढ़ेगी.

इस तर्क के विरुद्घ संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड का कहना है कि जनसंख्या अधिक होने से बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती है और उनकी उत्पादन करने की क्षमता का विकास नहीं होता है. यह तर्क सही नहीं है. शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए जनसंख्या घटाने के स्थान पर दूसरी अनावश्यक खपत पर नियंत्रण किया जा सकता है.

अर्थव्यस्था में शिक्षित लोगों की संख्या की जरूरत तकनीकों द्वारा निर्धारित हो जाती है. देश में शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा मात्र से उत्पादन में वृद्घि नहीं होती है. संयुक्त राष्ट्र का दूसरा तर्क है कि बढ़ती जनसंख्या से जीवन स्तर गिरता है. यह भी सही नहीं. बढ़ती जनसंख्या यदि उत्पादन में रत रहे, तो जीवन स्तर सुधरता है. समस्या लोगों को रोजगार दिलाने की है न कि जनसंख्या की अधिकता की.

चीन के अनुभव से भी सिद्घ होता है कि बढ़ती जनसंख्या लाभदायक होती है. यहां 1979 में एक संतान की नीति लागू की गयी थी. एक से अधिक संतान उत्पन्न करने पर दंपती को फाइन अदा करना पड़ता था. फाइन न चुका पाने की स्थिति में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था. इस कठोर नीति से चीन की जनसंख्या वृद्घि नियंत्रण मे आ गयी और इनकी ऊर्जा संतानोत्पत्ति के स्थान पर धनोपाजर्न करने में लग गयी. इस कारण 1990 से 2010 के बीच चीन की आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत की अप्रत्याशित दर पर रही. 2010 के बाद कार्यक्षेत्र में प्रवेश करनेवाले वयस्कों की संख्या घटने लगी.

उत्पादन में पूर्व में हो रही वृद्घि में ठहराव आ गया चूंकि उत्पादन करनेवाले लोगों की संख्या घटने लगी. साथ ही वृद्घों का बोझ बढ़ता गया, जबकि उसको वहन करनेवाले लोगों की संख्या घटने लगी. वर्तमान में चीन में वृद्घों की संख्या की तुलना में पांच गुना कार्यरत वयस्क है. अनुमान है कि इस दशक के अंत तक कार्यरत वयस्कों की संख्या केवल दोगुना रह जायेगी. कई विश्लेषकों का आकलन है कि 2010 के बाद चीन की विकास दर में आ रही गिरावट का कारण कार्यरत वयस्कों की यह घटती जनसंख्या है.

स्पष्ट होता है कि जनसंख्या नियंत्रण का लाभ अल्पकालिक होता है. संतान कम उत्पन्न होने पर कुछ दशक तक संतानोत्पत्ति का बोझ घटता है और विकास दर बढ़ती है. परंतु कुछ समय बाद कार्यरत श्रमिकों की संक्ष्या में गिरावट आती है और उत्पादन घटता है. साथ-साथ वृद्घों का बोझ बढ़ता है और आर्थिक विकास दर घटती है. जनसंख्या के आर्थिक विकास पर उपरोक्त सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए चीन सरकार ने एक संतान नीति में परिवर्तन किया है. पहले केवल वे दंपती दूसरी संतान उत्पन्न कर सकते थे, जिनमे पति और पत्नी दोनों ही अपने पेरेंट्स की अकेली संतान थे. लेकिन अब वे दंपती भी दूसरी संतान पैदा कर सकेंगे, जिनमें पति अथवा पत्नी में से कोई एक अपने पैरेंट्स की अकेली संतान थी. यह सही दिशा में कदम है.

चीन के साथ-साथ भारत को समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा. जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है, जिससे लोगों को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें. पर्यावरण पर बढ़ते बोझ को सादा जीवन अपना कर मैनेज करना चाहिए, न कि जनसंख्या में कटौती करके. इसलिए हमें बढ़ती जनसंख्या को अभिशाप न समझ कर अपना सौभाग्य समझना चाहिए और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बने रहना चाहिए.

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