वैश्विक बाजार में दमदार मौजूदगी के सपने को साकार करने की भारत की कोशिशों को एक बड़ी कामयाबी मिली है. वैश्विक व्यापार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच आपका टिका रहना बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि विश्व के बड़े व्यापारिक केंद्रों पर आप अपने माल की ढुलाई कितनी तेजी से कर पाते हैं और इस ढुलाई पर खर्चा कितना कम लगता है, और भारत को कामयाबी उसी दिशा में मिली है.
विश्व के बड़े व्यापारिक केंद्रों तक माल ढुलाई के लिए विश्व सड़क परिवहन संगठन (आइआरयू) ने कुछ मानक बनाये हैं, जिन्हें संक्षेप में टीआइआर कन्वेंशन कहा जाता है. भारत वैश्विक स्तर पर माल ढुलाई के इन मानकों पर हस्ताक्षर करनेवाला 71वां देश बन गया है. इससे दक्षिण एशिया में भारत व्यापार के एक बड़े केंद्र के रूप में उभर सकता है. साथ ही, भारत से बाहर अपनी व्यापारिक मौजूदगी को पहले की तुलना में ज्यादा कारगर बनाने में भी खासी मदद मिलेगी. टीआइआर पर दस्तखत करने से भारत के लिए नेपाल और भूटान ही नहीं, बल्कि म्यांमार, थाइलैंड और बांग्लादेश से भी वैश्विक परिवहन-तंत्र के भीतर व्यापारिक मेल बैठाना आसान होगा, क्योंकि अब इन देशों में लगनेवाले अलग-अलग किस्म के परिवहन संबंधी शुल्कों से बचा जा सकेगा. भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय नार्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आइएनएसटीसी) बहुत महत्वपूर्ण है.
एक सर्वे के मुताबिक, आइएनएसटीसी से जुड़ने पर भारत के लिए इलाके में परिवहन 30 फीसदी सस्ता हो जायेगा और राह की लंबाई कम हो जाने से पहले की तुलना में माल ढुलाई में समय की 40 फीसदी बचत होगी. टीआरआइ पर दस्तखत करनेवाले देशों की बिरादरी में शामिल होने के कारण भारत के लिए इस आर्थिक गलियारे से जुड़ना बहुत आसान हो जायेगा. उसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर कई किस्म की चुंगी और करों का भुगतान नहीं करना होगा. लगभग सात हजार किलोमीटर लंबे रेल, सड़क और समुद्री मार्गों का संजाल भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी अहम है.
चीन अपनी ‘पर्ल ऑफ स्ट्रिंग’ योजना के अंतर्गत भारत के चारों तरफ रणनीतिक घेराबंदी कर रहा है. ‘वन बेल्ट-वन रोड’ नाम की उसकी बड़ी परिवहन परियोजना इस घेरेबंदी का हिस्सा है. आइएनएसटीसी को चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना की काट के रूप में देखा जाता रहा है. सो, माना जा सकता है कि टीआइआर पर दस्तखत कर भारत ने चीन की रणनीतिक बढ़त को थामने के लिए एक ढाल तैयार कर लिया है.