Loading election data...

भारत-इजराइल संबंध मजबूत

डॉ सलीम अहमद असिस्टेंट प्रोफेसर, गलगोटियास यूनिवर्सिटी s.ahmad982@gmail.com नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद से ही भारत-इजराइल के संबंधों का तेजी से बहुआयामी विकास हो रहा है. दोनों ही देशों की सरकारें घोर राष्ट्रवादी हैं, और विचारों का समान होना दोनों राष्ट्रों के संबंधों को मजबूती प्रदान करता है. आगामी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 21, 2017 6:13 AM

डॉ सलीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर, गलगोटियास यूनिवर्सिटी

s.ahmad982@gmail.com

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद से ही भारत-इजराइल के संबंधों का तेजी से बहुआयामी विकास हो रहा है. दोनों ही देशों की सरकारें घोर राष्ट्रवादी हैं, और विचारों का समान होना दोनों राष्ट्रों के संबंधों को मजबूती प्रदान करता है. आगामी जुलाई के प्रथम सप्ताह में मोदी इजराइल के आधिकारिक दौरे पर जा रहे हैं. किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यहूदी राष्ट्र की यह प्रथम यात्रा होगी. यह सिर्फ इजराइल की आधिकारिक यात्रा होगी. इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के मध्य रक्षा, कृषि, शिक्षा, जल सुरक्षा एवं प्रबंधन और सांस्कृतिक क्षेत्रों में समझौते होने की संभावना है. साथ ही भारतीय सेना के लिए स्पाइक टैंक रोधी मिसाइल एवं नौसेना के लिए बराक-8 मिसाइल संबंधी समझौता होने की संभावना है.

भारत और इजराइल के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं. भारत और इजराइल प्राकृतिक मित्र हैं, दोनों राष्ट्रों की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात हुई, दोनों ही प्रजातांत्रिक पद्धति अपनानेवाले देश हैं, दोनों को अपने पड़ोसी राज्यों के साथ युद्ध करना पड़ा, और दोनों ही घरेलू चुनौतियों एवं सीमापार से आ रहे आतंकवाद से पीड़ित हैं. भारत-इजराइल के मध्य कूटनीतिक संबंधों की बुनियाद 1992 से मानी जाती है.

लेकिन, विचारधारा में अंतर और पश्चिमी एशियाई मुस्लिम राष्ट्रों के साथ घनिष्ठ संबंध होने के कारण दोनों देशों के मध्य संबंध खुल कर विकसित नहीं हो सके. फिर भी भारत ने एक संतुलित कूटनीति का अनुसरण करते हुए अरब राष्ट्रों के साथ संबंधों को भी बनाये रखा और इजराइल के साथ भी. यह भारत की स्पष्ट संतुलित नीति का परिणाम है कि आज पश्चिम एशिया के सभी देशों के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध हैं, चाहे वह सऊदी अरब हो, ईरान हो, फििलस्तीन हो या इजराइल हो.

भारत ने फिलिस्तीन-इजराइल मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए यहूदी राज्य और फिलिस्तीन दोनों के साथ संबंधों को बनाये रखा. मजेदार बात यह है कि इन राष्ट्रों ने कभी भी भारत को अपनी नीति बदलने के लिए विवश नहीं किया. लेकिन, 2014 में जब यहूदी राज्य के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) द्वारा प्रस्ताव लाया गया, जिसके अंतर्गत इजराइल के द्वारा फिलिस्तीनियों के ऊपर गाजा संघर्ष में किये गये युद्ध अपराध का आरोप लगाया गया था, तो उस समय भारत ने अपनी परंपरागत नीति से पीछे हटते हुए इस प्रस्ताव को समर्थन नहीं दिया. भारत की इस नीति से जहां एक ओर फिलिस्तीन को जोरदार झटका लगा, वहीं दूसरी ओर भारत-इजराइल संबंधों को बल मिला. क्योंकि, इससे पहले भारत ने सदैव फिलिस्तीनियों का समर्थन किया.

अक्तूबर 2015 में, भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इजराइल की आधिकारिक यात्रा पर गये, जो कि दोनों देशों के लिए लाभकारी साबित हुई. इसके बाद नवंबर 2016 में इजराइल के राष्ट्रपति रयूवें रिवलिन आधिकारिक यात्रा पर भारत आये थे.

साल 1992 से ही दोनों राष्ट्रों के मध्य साझा रणनीतिक क्षेत्रों में संबंध तेजी से विकसित हो रहें है. इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से, सैन्य एवं रक्षा, खुफिया, नौसेना सुरक्षा संबंधित, कृषि क्षेत्र, खाद्य सुरक्षा, जल प्रबंधन, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा, असंयमित युद्ध और मेक इन इंडिया मिशन आदि शामिल हैं.

इजराइल भारत को रक्षा संबंधित उपकरण बहुत अधिक मात्रा में निर्यात करता है, जिनमें मुख्य रूप से जहाज, रक्षा मिसाइलें, और मानव रहित विमान आदि हैं. भारत और इजराइल ने संयुक्त रूप से बराक-8 मिसाइल को विकसित किया है. यह मिसाइल सतह-से-हवा में मार कर सकती है. यह भारत की बाहरी सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत ही उपयोगी है. भविष्य में दोनों देश मिल कर शोध और विकास, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, पर्यटन आदि संबंधित क्षेत्रों के लिए कार्य कर रहे हैं. दोनों राष्ट्रों के मध्य लगभग 4.5 बिलियन डाॅलर का व्यापार हो रहा है. हाल ही में, भारत और इजराइल के मध्य एक बड़ा रक्षा समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत भारत इजराइल से 63 करोड़ डाॅलर में अत्याधुनिक हवाई एवं मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदेगा.

हाल ही में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आये, जिसका उद्देश्य भारत-फिलिस्तीन के मध्य संबंधों में फिर से गर्माहट लाना था. मोदी ने फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष के ‘जल्दी और स्थायी हल’ निकालने की उम्मीद दिलायी.

फिलिस्तीन हमेशा से चाहता है कि भारत फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष को हल करने के लिए हस्तक्षेप करे, लेकिन भारत ने संतुलित विदेश नीति का अनुसरण किया है और इस मामले से अपनी उचित दूरी बनाये रखी है. जाहिर है, भारत को अल्पावधि लाभ के लिए अपनी विचारधारा के साथ समझौता नहीं करना चाहिए, बल्कि दीर्घकालिक लाभ को केंद्रित करते हुए अपनी विचारधारा का मजबूती के साथ पालन करना चाहिए.

Next Article

Exit mobile version